घर पर खुद कैसे बनाएं बोनसाई ट्री (WATCH PICS)

punjabkesari.in Tuesday, Apr 26, 2016 - 11:01 AM (IST)

हर इंसान का सपना होता है कि उसके घर में छोटा सा गार्डन हो, जिसमें उसके मनपसंद पौधे लगे हो लेकिन जमीनें इतनी महंगी हो गई हैं कि लोग छोटे घर और फ्लैट्स में रहने के लिए मजबूर हैं। ऐसे में बहुत सारे लोगों का गॉर्डन बनाने का सपना अधूरा रह जाता है पर इसमें निराश होने वाली बात नहीं है। ऐसे लोग घर में मनिएचर गॉर्डन और बोनसाई पेड़ लगाकर अपनी यह इच्छा पूरी कर सकते हैं। बोनसाई, छोटा ही सही लेकर होम गॉर्डन बनाने के बेस्ट कन्सेप्ट है।  

वैसे बोनसाई पेड़ लगाने की कला हजारों साल पुरानी है। इस कला का संबंध जापान से है। जापानी भाषा में बोनसाई का मतलब है "बौने पौधे", जिसमें पौधों को लघु आकार में ही आकर्षक रूप दिया जाता है। इस मॉडर्न जमाने की बात करें तो अब बोनसाई पेड़ों को सजावट और मनोरंजन के उद्देश्य से भी इस्तेमाल किया जाने लगा है। ठीक से देखभाल की जाएं तो बोनसाई आराम से सौ सवा सौ साल तक जीवित रह सकते हैं। 

बोनसाई ट्री कैसे बनाएं

बोनसाई ट्री आप 2 तरीकों से बना सकते हैं। एक छोटे पौधे से दूसरा बीज के द्वारा लेकिन बीज से बोनसाई बनने में बहुत समय लग सकता है इसलिए आप छोटे पौधे से ही बोनसाई बनाना शुरू करें।

सबसे पहले सावधानी से पौधे को मिट्टी से अलग करें और उसकी जड़ों पर लगी मिट्टी को हटाएं। अब उसके तनों और जड़ों की थोड़ी-थोड़ी कटाई करें ताकि वह पौधा बोनसाई गमले में फिट बैठ सकें। इस बात का ध्यान रखें कि पौधे को रखते समय गमले के किनारे से लगभग एक दो इंच की मिट्टी जड़ों से मुक्त होनी चाहिए।

अब गमले में मिट्टी डाले और दो-तीन इंच मोटी मिट्टी की परत बनाकर पौधे को रखें। फिर जड़ों के चारों और मिट्टी फैलाकर धीरे-धीरे से दबाएं। इसके बाद मिट्टी के ऊपर बजरी और कंकरी फैलाएं ताकि गमला साफ सुथरा लगे। कुछ दिनों बाद जब पौधा गमले में अच्छी तरह जम जाए तो उसकी टहनियों पर धातु की तार लपेटकर उसे मूल वृक्ष जैसी आकृति दें। वैसे टहनियों को नीचे की और झुकाने के लिए कुछ लोग वजन भी बांधते हैं। 

याद रखें ये बातें

-बोनसाई बनाने से पहले बाग-बागीचों में वृक्षों के सही आकृति को देख लें। इससे आपको बोनसाई के सही शेप देने में मदद मिलेगी।

-बोनसाई पेड़ों को पर्याप्त खाद युक्त पानी और धूप देते रहें ताकि उसका विकास अवरुद्ध रहे। पौधे के आकार देने के लिए समय-समय पर काट-छांट करते रहे।

- कुछ साल बाद गमले की मिट्टी जरूर बदलें क्योंकि उसमें पौष्टिकता कम हो जाती है। 

 

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