अपनी सैलरी से फ्री में फुटबॉल सिखा रही बिहार की ये कांस्टेबल

Monday, Sep 10, 2018 - 11:28 AM (IST)

वैसे तो सामान्य स्थिति में पद से ही व्यक्ति की पहचान की जाती है, लेकिन बिहार के मुंगेर में इससे अलग मामला है। यहां जिला पुलिस बल की आरक्षी (कांस्टेबल) रंजीता ने इसे गलत साबित कर दिया है। रंजीता ने अपनी मेहनत से 32 साल की उम्र में खुद का कद अपने पद से बड़ा कर लिया है।

दरअसल बिहार के भोजपुर जिले की रहने वाली रंजीता सिंह मुंगेर जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में जब कांस्टेबल के पद पर नियुक्त हुई थीं, तब यह कोई नहीं जानता था कि वह इस क्षेत्र में एक बेमिसाल कहानी रच डालेंगी। भारतीय महिला फुटबॉल टीम की सदस्य रह चुकीं रंजीता पिछले 10 साल से बच्चों को फुटबॉल का प्रशिक्षण दे रही हैं। अब यहां से प्रशिक्षित खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम में अपनी जगह बना रहे हैं। रंजीता मुंगेर जिला पुलिस बल में साल 2008 में कांस्टेबल के तौर पर शामिल हुई थीं। उनके लिए यह जगह नई नहीं थी, क्योंकि पिता की नौकरी के दौरान वह कुछ समय तक उनके साथ यहां रह चुकी थीं।

 

रंजीता का कहना है, 'जब मैं छोटी थी तो गंगा किनारे छोटे बच्चों को लोगों का सामान ढोते देखती थी. इसके बदले मिले पैसों से बच्चे नशा किया करते थे। कांस्टेबल की नौकरी मिलने के बाद मैंने इन बच्चों को इकट्ठा किया और इनका नामांकन स्कूल में कराया। कुछ दिन बाद उन्हें फुटबॉल का प्रशिक्षण देना शुरू किया। उसके बाद से यह काम बदस्तूर जारी है।'

 

मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए रंजीता ने उन्हें फुटबॉल का प्रशिक्षण देना शुरू किया और बाद में उन्हें पढ़ाई से भी जोड़ा। कूड़ा-कचरा बीनने वाले बच्चों को साथ लेकर रंजीता ने 'चक दे फुटबॉल क्लब' बनाया, जिसमें न सिर्फ बच्चों को फुटबॉल का प्रशिक्षण दिया, बल्कि सुबह और शाम में एक निजी शिक्षक की मदद से उन्हें ट्यूशन भी देना शुरू किया।

 
रंजीता इन दिनों भागलपुर के मिर्जाचौकी क्षेत्र के 35 आदिवासी बच्चों को प्रशिक्षित कर रही हैं। इन्हें वे मुंगेर स्थित अपने आवास पर नि:शुल्क आवासीय सुविधा तक उपलब्ध करा रही हैं। रंजीता बताती हैं कि मुंगेर के चार बच्चे पिछले वर्ष राष्ट्रीय फुटबॉल अंडर-13 टीम में, जबकि दो बच्चे राष्ट्रीय फुटबॉल टीम अंडर-19 में चयनित हुए हैं। सबसे बड़ी बात है कि रंजीता ने पुलिस में अपनी ड्यूटी करते हुए इन बच्चों को फुटबॉल का प्रशिक्षण दिया है।

रंजीता ऐसे बच्चों को प्रशिक्षण देती हैं जो आर्थिक रूप से बहुत कमजोर हैं। रंजीता का कहना है कि इस काम के लिए उन्हें न तो किसी औद्योगिक घराने से कोई मदद मिली और न ही सरकार से। अपने वेतन और समय-समय पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मदद से ही बच्चों को प्रशिक्षण दे रही हूं। उन्हें खेल सामग्री भी समय-समय पर पुलिस अधिकारी ही उपलब्ध कराते हैं।

रंजीता प्रशिक्षण के दौरान अपने बच्चों को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की उस पंक्ति को जरूर याद कराती हैं, जिसमें उन्होंने ऊंचे सपने देखने की बात कही थी। पिछले दिनों राज्य के पुलिस महानिदेशक अभयानंद ने अपने मुंगेर दौरे के दौरान रंजीता से मुलाकात की थी। पुलिस महानिदेशक ने इस काम के लिए शाबाशी देते हुए रंजीता को पांच हजार रुपए का पुरस्कार दिया था। साथ ही उन्हें भागलपुर में तिलकामांझी राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित भी किया गया।

Sonia Goswami

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