नवजात शिशु में संक्रमण
punjabkesari.in Tuesday, Jan 13, 2015 - 02:42 PM (IST)

न्यूटेलस सेप्टिसिमिया (नवजात में संक्रमण) : नवजात शिशुओं में गंभीर बीमारी एवं मृत्यु का एक मुख्य कारण है। नवजात शिशु में संक्रमण कहां से आता है? संक्रमण अधिकतर मां से आता है। मां को बुखार, योनि का संक्रमण, बार-बार असुरक्षित योनि परीक्षण, कुपोषण, इत्यादि से संक्रमण बच्चे में आता है। जन्म पश्चात (1) बच्चे की नाल को असुरक्षित औजार से काटना, बिना हाथ साफ किए बच्चे को छूना, प्यार करना आदि।
नवजात संक्रमण को कैसे पहचानें ? नवजात संक्रमण की कोई विशिष्ट पहचान नहीं होती। केवल शक की बुनियाद पर कार्य करना होता है।
साधारण चिन्ह : तापमान कम होना, दूध नहीं पीना, चिड़चिड़ा होना, अधिक रोना, शिथिल पडऩा, श्वास की गति एकदम कम/अधिक होना, दौरे आना, फोड़े-फुंसी होना, नाल का पकना।
संक्रमण की पुख्ता पहचान के लिए नवजात के कुछ रक्त, पेशाब, एक्स-रे एवं रीढ़ की हड्डी से पानी निकाल कर जांच करनी पड़ सकती है।
उपचार : नवजात में साधारणत: संक्रमण तेजी से फैलता है एवं जानलेवा हो सकता है इसलिए उन्हें दवाई इंजैक्शन के रूप में देनी चाहिए। इलाज कम से कम 10-21 दिन तक देना पड़ सकता है।
गंभीर लक्षण : बच्चे का शिथिल पडऩा, दौरे पडऩा, उल्टी, पेट फूलना, शरीर में सूजन, चमड़ी का अकडऩा, तापमान कम होना, अधिक बढऩा।
क्या बीमारी की रोकथाम संभव है? जी हां रोकथाम संभव है और उपचार की अपेक्षा बचाव ही ज्यादा हितकर है।
मां को गर्भावस्था के दौरान उपयुक्त आहार, आराम की आवश्यकता है।
मां को टेटनैस की सुई गर्भावस्था में दो बार अवश्य लगवाएं। पहली 4-6 माह के बीच और दूसरी पहली के 1 माह पश्चात।
मां को प्रशिक्षित दाई एवं डाक्टर को दिखाएं।
योनि को स्वच्छ रखें।
गर्भावस्था के आखिरी तीन महीनों में संभोग से परहेज करें।
मां के संक्रमण का तुरन्त उपचार करवाएं।
नवजात शिशु की सदैव साबुन से हाथ धोकर ही देखभाल करें।
नियमित स्नान कराएं और स्वच्छ वस्त्र पहनाएं।