हिसार के वैज्ञानिकों ने मकई दाना निकालने को तैयार की अनोखी मशीन

Wednesday, Dec 01, 2021 - 06:05 AM (IST)

चंडीगढ़,  (अर्चना सेठी)- चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के वैज्ञानिकों ने मकई दाना निकालने वाली एक अनोखी मशीन तैयार की है। इस पेडल ऑपरेटेड मेड शेलर मशीन को केंद्र सरकार द्वारा पेटेंट भी किया गया है। ऐसे  उपकरणों की डिजाइनिंग और पेटेंट से कृषि के क्षेत्र में शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्र शिक्षा पूरी करने के बाद उद्यमिता के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना सकेंगे। पेडल ऑपरेटेड मेज शेलर मशीन से वैज्ञानिकों का ‘‘लोकल से ग्लोबल’’ तक ले जाने का सपना साकार होगा। कृषि जगत के लिए ईजाद किए गए इस उपकरण की हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने सराहना की है। दत्तात्रेय ने वैज्ञानिकों के कार्य की सराहना करते हुए कहा कि कृषि के क्षेत्र में उपयोग होने वाले नई तकनीक के यंत्रों को बना कर छोटे व सीमांत किसानों के लिए किसानी कार्य को और सरल व कम लागत वाला बनाने पर कार्य किया है। राज्यपाल ने एच.ए.यू की इन उपलब्धियों पर कहा कि यह वैज्ञानिकों और उनके विद्यार्थियों को कौशल और मेहनत का अथक प्रयास है। भारत सरकार द्वारा किसी भी उत्पाद को पेटेंट देना यह विश्वविद्यालय की एक उपलब्धि है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन तथा नाबार्ड की योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ उठाकर किसानों को सस्ती व किफायती दरों पर उपकरण मुहैया करवाये जा सकते हैं जिससे किसानों की फसल लागत कम होगी और मुनाफा ज्यादा होगा।

मील का पत्थर होगा साबित

उन्होंने विश्वविद्यालय की इस उपलब्धि पर कहा कि यह अनुसंधान कार्य कृषि क्षेत्र के लिए विकास में एक मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने सभी वैज्ञानिकों का आहवान किया कि अपने संस्थानों में इस प्रकार के उपकरणों की अनुसंधान तकनीक विकसित करके मार्केट में उतारें और विश्व बाजार में भाग लेने के लिए आगे बढ़ें। यह निश्चित रूप से युवाओं के लिए रोजगारोन्मुखी कदम होगा। मशीन के डिजाइन और अनुसंधान करने में विश्वविद्यालय के कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के प्रसंस्करण एवं खाद्य अभियांत्रिकी विभाग के डॉ. विजय कुमार सिंह व सेवानिवृत्त डॉ. मुकेश गर्ग व छात्र इंजीनियर विनय कुमार का मु य योगदान रहा है। कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. अमरजीत कालरा के अनुसार इस मशीन का प्रयोग कम जोत वाले व छोटे किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद होगा। मशीन से मक्का का बीज तैयार करने में मदद मिलेगी क्योंकि इसके द्वारा निकाले गए दाने मात्र एक प्रतिशत तक ही टूटते हैं और इसकी प्रति घंटा की कार्यक्षमता भी 55 से 60 किलोग्राम तक की है और मशीन तैयार होने पर यह किसानों को मात्र 15 से 20 हजार रुपये मूल्य पर उपलब्ध होगी।

वैज्ञानिकों की मेहनत का नतीजा

विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बी.आर कंबोज ने कहा कि कृषि शोध कार्यों के लिए निरंतर केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आई.सी.ए.आर.) का सहयोग लिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि एचएयू को मिल रही लगातार उपलब्धियां यहां के वैज्ञानिकों द्वारा की जा रही अथक मेहनत का ही नतीजा है। वैज्ञानिकों के अनुसंधान से अब तक कृषि में प्रयोग होने वाले डेढ़ दर्जन से अधिक उपकरणों का डिजाईन पेटेंट हो चुका है। उन्होंने विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से भविष्य में भी इसी प्रकार निरंतर प्रयास करते रहने की अपील की है ताकि विश्वविद्यालय का नाम यूं ही रोशन होता रहे।

Archna Sethi

Advertising