हरियाणा में बदल रही लोगों की सोच, राज्यों के लिंग अनुपात में आया सुधार

Friday, Sep 14, 2018 - 11:52 AM (IST)

चंडीगढ़ : गर्भ में अपनी बेटियों को मारने के लिए देशभर में हरियाणा की 2011 जनगणना में 1,000 पुरुषों के खिलाफ 879 लड़किया थीं। इससे भी बदतर बात यह थी कि जनगणना के रिकॉर्ड के मुताबिक लिंग अनुपात (एसआरबी) में 834 पर था। इसके बाद 2012 पैदा हुए बच्चों का लिंग अनुपात 832 हो गया, लेकिन 2013 में इसमें कुछ सुधार हुआ और 1,000 पुरुषों के खिलाफ 868 लड़कियों ने जन्म लिया। 2014  के बाद 1,000 लड़कों के खिलाफ 871 लड़कियों के जन्म, 2015 में 1,000 लड़कों के खिलाफ 876 लड़कियों ने, 2016 में 1,000 लड़कों के खिलाफ 900 लड़कियों ने और 2017 में 1,000 लड़कों के खिलाफ 914 ने जन्म लिया। 

 

2018 के पहले चार महीनों में, राज्य में 928 का एसआरबी देखा गया जोकि हरयाणवी सोसाइटी के लिए एक पॉजिटिव बदलाव हैं। पिछले छह महीने (नवंबर 2017 से अप्रैल 2018) में 1,000 लड़कों के खिलाफ 963 लड़कियों के जन्म के साथ यमुनानगर नंबर एक स्थान पर है। इसके साथ ही सिरसा (930), सोनीपत (941), गुरुग्राम (948), कुरुक्षेत्र (949), हिसार (927), रेवारी (929), पानीपत (894), मेवाट (931), भिवानी (930), करनाल (906) जिंद (926), कैथल (940), अंबाला (910), फरीदाबाद (937), झज्जर (902 ), पलवल (921), पंचकुला (951), रोहतक (929), फतेहाबाद (900) और नारनौल (924) में भी अपने पिछले रिकॉर्ड से काफी सुधार दिखाई दिया हैं। 

 

इन अनुपात के लिए 22 जनवरी 2015 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए बेटी बचाओ बेटी (बीबीबीपी) अभियान को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। राज्य में यह अभियान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की स्पेशल निगरानी में चलाया जा रहा हैं। खट्टर के आलावा यह अभियान उनके एडिशनल प्रधान सचिव राकेश गुप्ता द्वारा मुख्यमंत्री कार्यालय में इनकी निगरानी में चलाया जा रहा हैं। गुप्ता का कहना हैं कि प्री-कॉन्सेप्शन और प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स एक्ट (पीसी और पीएनडीटी) और गर्भावस्था के मेडिकल टर्मिनेशन (एमटीपी) के प्रभावी इम्प्लीमेंटेशन के वजह से ही यह सब संभव हो पाया हैं। 

pooja verma

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