देश भर में 3 करोड़ 70 लाख से अधिक केस लम्बित

Monday, Aug 31, 2015 - 12:51 AM (IST)

कैथल (पराशर): निम्र अदालतों और न्यायिक अधिकारियों की संख्या में अनुपातिक तौर पर बढ़ौतरी करने में राज्य सरकारों की उदासीनता के कारण लम्बित केसों की संख्या में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समय-समय पर दिए गए फैसलों व केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के बावजूद न्यायिक अधिकारियों की भर्ती करने में राज्य सरकारों का लचर रवैया करोड़ों लम्बित पड़े मामलों का सबसे बड़ा कारण है। पूरे देश की बात की जाए तो पता चलता है कि सभी 24 उच्च न्यायालयों में जजों के 984 पद स्वीकृत हैं। सरकारी आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि 31 जुलाई 2015 तक सभी उच्च न्यायालयों में 382 न्यायाधीशों के पद खाली पड़े हैं। 

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में 31 पद खाली हैं। यह अलग बात है कि राष्ट्रीय ज्यूडीशियल नियुक्ति आयोग प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय में लम्बित होने के कारण फिलहाल उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति का काम रुका हुआ है। फैसला आने के बाद ही नए सिरे से इस दिशा में आगे बढ़ा जा सकेगा। जहां तक अधीनस्थ यानी जिलों या उपमंडलों में कार्यरत न्यायिक अधिकारियों के पदों का ताल्लुक है, के बारे में आंकड़े बताते हैं कि पूरे देश की इन अदालतों में 19756 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 4356 पद आज भी खाली पड़े हैं जबकि सरकारें निरंतर भर्ती करने के दावे भी करती रही हैं।

 सरकारी स्तर पर दुहाई तो यह दी जाती रही है कि अधिक सुगमता व सहजता से सस्ता न्याय शीघ्र मिले लेकिन न्यायपालिका में भर्ती करने की प्रक्रिया हमेशा ही ढीली रही है। कई बार तो पैमाने भी बार-बार बदल दिए जाते हैं जिससे ऐसा लगने लगता है कि सरकारों और न्यायालयों में कहीं न कहीं तालमेल का अभाव है जिस कारण इस भर्ती के काम में तेजी नहीं आती।

केंद्रीय विधि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 में अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा 1 करोड़ 90 लाख 19 हजार 658 मुक द्दमों का निपटारा किया गया, जबकि सर्वोच्च न्यायालय में 92722 तथा उच्च न्यायालयों में 17 लाख 34 हजार 542 केस निपटाए गए। आंकड़ों का रोचक पहलू यह है कि इस अवधि में 2 करोड़ के करीब मामलों फैसले आ जाने के बाद 3 करोड़ 70 लाख से अधिक मामले लम्बित रह गए थे। वर्ष 2015 में दायर हुए और निपटाए गए आंकड़ों की संख्या इनसे भिन्न है। 

सरकारी आंकड़ों के अनुसार उक्त वर्ष के दौरान देश की अदालतों में 3 करोड़ 70 लाख 5 हजार से अधिक मुकद्दमे लम्बित थे जिनमें से सर्वोच्च न्यायालय में पैंङ्क्षडग मामलों की संख्या 62791 तथा देश के 24 उच्च न्यायालयों में 41 लाख 53 हजार 957 केस विचाराधीन थे। सबसे अधिक संख्या अधीनस्थ न्यायालयों में लम्बित 2 करोड़ 64 लाख 88 हजार 405 मुकद्दमों की थी।

 
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