एक गांव ऐसा जहां बीड़ी-सिगरेट को नहीं लगाया जाता हाथ (Watch Video)

Wednesday, Jul 22, 2015 - 04:47 PM (IST)

जींद (भूपेंद्र मोर): जींद के खेड़ी बुल्ला गांव भी हरियाणा के दूसरे गांवों जैसा ही लगता है। जाट बाहुल्य वाला ये गांव धूम्रपान न करने के कारण दूसरे गांवों से अलग है। प्रदेश में जहां हुक्का-पानी देना सबसे बड़ी मेहमान नवाजी समझी जाती है। वहीं यहां के लोग मेहमान को अगर बीड़ी देनी पड़ जाए तो उसे चिमटे से उठा कर देते हैं।

इस रिवाज के चलते अधिकतर मेहमान गांव में आने के बाद बीड़ी या हुक्का पीते ही नहीं। सदियों पहले गांव बसाने वाले गुरदत सिंह (कैथल की रियासत के राजा उदयसिंह के वजीर) ने धूम्रपान न करने जो पहल की थी अब वह परंपरा बन गई है। गांव के युवा भी इसे बखूबी निभा रहे हैं। 1500 की आबादी वाले खेड़ी बुल्ला गांव में किसी भी मौके पर कोई भी सगा संबंधी या रिश्तेदार किसी के घर आता है तो उसकी खातिरदारी में ग्रामीण कभी भी हुक्का-बीड़ी या सिगरेट नहीं देते।

गांव की दो दुकानों पर बीड़ी-सिगरेट तो उपलब्ध हैं लेकिन ग्रामीण या दुकानदार उन्हें हाथ नहीं लगाते बल्कि चिमटे से उठाकर देते हैं। गांव के सबसे बड़े बुजुर्ग 98 वर्षीय चैतसिंह कहते हैं कि कभी बारात की खातिरदारी उन्होनें हुक्के से नहीं की। उसे महसूस हो रहा है कि शायद हुक्का-बीड़ी पीता तो इतने साल कभी नहीं जीता।

गांव के लोग कहते हैं कि बीड़ी-सिगरेट या हुक्का न पीने का किसी पर कोई दबाव नहीं है। पंचायत या ग्रामीणों ने इसके लिए कोई भी नियम-कायदा नहीं बनाया हुआ। हां इतना जरूर है। जिस भी गांव के व्यक्ति ने धूम्रपान किया है। उसके मौत सामान्य नहीं हुई। गांव की महिला सरपंच सरोज देवी कहती हैं कि शादी के बाद से 30 साल तो उसे गांव में रहते हुए हो गए हैं लेकिन कोई भी ग्रामीण आज तक उसे धूम्रपान करता हुआ नजर नहीं आया है।

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