इतिहास के पन्नों में खो रही प्राचीन इमारतें
punjabkesari.in Monday, Mar 02, 2015 - 02:28 AM (IST)

सिरसा (राम माहेश्वरी): जयपुर की तर्ज पर बसे सिरसा का इतिहास काफी प्राचीन है। सरस्वती नदी के तट पर बसा होने से बहुत समय पूर्व सिरसा का नाम सरस्वती नगर था। महाभारत के सभापर्व श्लोक में शैरिष्क नगर के नाम से सिरसा का जिक्र मिलता है। प्रचलित जनश्रुति के अनुसार हजारों साल पहले अपने वनवास काल के समय 5 पांडवों में से नकुल व सहदेव ने यहां वनवास काटा। 1173 में राजा सारस के वंशज पालवंशीय राजा कुंवरपाल सरस्वती नगर पर राज करते थे। अलबत्ता अब शहर में चंद ही प्राचीन इमारतें बची हैं। दरअसल सिरसा नगर देश के प्राचीन नगरों में से एक है और पुरातात्विक दृष्टि से इस नगर का बहुत महत्व है।
खास बात यह है कि ऐतिहासिक सिरसा नगर के तहस-नहस होने के बाद आधुनिक सिरसा नगर को जयपुर शहर के नक्शे पर बसाया गया। नगर में बहुत समय पहले लोहे का एक विशाल दुर्ग था, जिसे आज थेहड़ के रूप में जाना जाता है। यह दुर्ग करीब 4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला था और इसकी भूतल से ऊंचाई 130 फीट थी। समय के साथ कालांतर में यह दुर्ग रेत के बड़े टीलों में बदल गया। 1838 में आधुनिक सिरसा नगर की नींव रखी गई तो शहर में अधिकांश हवेलियों का निर्माण थेहड़ की ईंटों से ही किया गया। मेजर जनरल थोरस्वी ने नगर के लोगों को थेहड़ की ईंटों को उखाडऩे की अनुमति दी। लाखों ईंटें उखाड़ी गई और नगर में अनेक बड़ी-बड़ी हवेलियों का निर्माण किया गया।
जाहिर है कि थेहड़ की बदौलत ही वर्तमान सिरसा नगर की बुनियाद पड़ी। पुरातात्विक लिहाज से थेहड़ एक धरोहर है जिसकी खुदाई की जाए तो बहुत सी प्राचीन जानकारियां उपलब्ध हो सकती हैं। खास बात यह है कि इस विशाल थेहड़ के अलावा भी रसूलपुर, मिर्जापुर, सहित रानियां इलाके में अनेक थेहडऩुमा छोटे टीले थे जहां आज गांव बस गए हैं। थेहड़ पर इतिहासवेत्ता दिवंगत लीलाधर दु:खी ऐतिहासिक महत्व की अनेक वस्तुओं की तलाश कर चुके हैं जो यहां बने लीलाधर दु:खी संग्रहालय में रखी गई हैं। इसके अलावा सिरसा में अंग्रेजों के जमाने में रेलवे कालोनी में बनाए गए बंगले, अंटाघर, सैंट मैथोडिस्ट चर्च, नगर में बनी कुछ हवेलियां बेहद प्राचीन हैं और यह उस जमाने की सभ्यता की कहानी को बयान करती हैं।
चिंताप्रद स्थिति यह है कि ऐतिहासिक महत्व की इन धरोहरों को न तो जीर्ण-शीर्ण होने से बचाया जा रहा और न ही पुरातात्विक नजरिए से इनके ऊपर शोध कार्य किया जा रहा है। थेहड़ अब आबाद इलाका बन गया है। हजारों लोगों ने यहां मिट्टी के टीले को काट-काटकर घर बना लिए हैं। यहां पेयजलापूर्ति है, आने-जाने को रास्ते बना लिए हैं, सरकारी नलकूप लगा है, मंदिर भी है और पीर की समाधि भी है। थेहड़ को देखने भर से ही यह अहसास हो जाता है कि यह पुरातात्विक दृष्टि से काफी महत्व है। ऐसा इसलिए भी जाहिर होता है कि दिवंगत पतराम वर्मा ने अपनी पुस्तिका ‘सिरसा का इतिहास’ में थेहड़ के बारे में जिक्र किया है। इस किताब के अनुसार थेहड़ का इतिहास बहुत पुराना है। पुरातत्व विभाग ने अनेक दफा थेहड़ पर रिसर्च किए जाने की कवायद की जो सियासी एवं शासकीय अड़चन के चलते सिरे न चढ़ सकी। न्यायालय ने भी थेहड़ पर बने घरों को अवैध करार दिया। पर चिंताप्रद बात यह है कि अभी तक थेहड़ पर रिसर्च की कवायद शुरू न हो सकी।