कन्या भ्रूण हत्या के दुष्परिणामों को अनदेखा करते हैं लोग

punjabkesari.in Sunday, Jan 04, 2015 - 05:33 AM (IST)

नारनौल (पवन): बुद्धिजीवी किसी विषय को लेकर चिंतित होते हैं, तब उस विषय को समस्याओं या सामाजिक विकारों का परिणाम माना जाता है। कन्या भ्रूण हत्या के चलते समाज में लिंलग असंतुलन की समस्या को भू्रण हत्या का उपजा परिणाम माना जाता है। कन्या भू्रण हत्या करवाने वाले लोग कन्या भ्रूण हत्या के दुष्परिणामों को अनदेखा करते हैं। आगामी 22 जनवरी को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेटी-बचाओ, बेटी पढ़ाओ राष्ट्रीय कार्यक्रम का शुभारंभ पानीपत से करेंगे। गर्भ में कन्या की हत्या करने का फैशन करीब 20-30 साल पुराना हो गया है। यह सिलसिला तब प्रारंभ हुआ जब अल्ट्रासाऊंड मशीन का चिकित्सकीय उपयोग प्रारंभ हुआ। दरअसल पश्चिम के वैज्ञानिकों ने इसका अविष्कार पेट के दोषों की पहचान कर उसका इलाज करने की नीयत से किया था।


भारत के भी निजी चिकित्सकालयों में भी यही उद्देश्य कहते हुए इस मशीन की स्थापना की गई। यह बुरा नहीं था पर जिस तरह इसका दुरुपयोग गर्भ में बच्चे का लिंग परीक्षण कराकर कन्या भ्रूण हत्या का फैशन प्रारंभ हुआ उसने समाज में लिंग अनुपात की स्थिति को बहुत बिगाड़ दिया और आज उस बिगड़ी हुई स्थिति के परिणामस्वरूप ही लिंगानुपात की समस्या हमारे लिए भयावह स्थिति बनी हुई है। हम अपने धर्म और संस्कृ ति में माता-पिता तथा संतानों के मधुर रिश्तों की बात भले ही करें पर कहीं न कहीं भौतिक तथा सामाजिक आवश्यकताओं की वजह से उनमें जो कृत्रिमता है उसे भी देखा जाना चाहिए। आज महिलाओं की सुरक्षा व सम्मान के लिए महिला सैल व संरक्षण अधिकारी नियुक्त किए गए हैं।


अगर समय रहते इस पाप को नहीं रोका गया तो सामाजिक अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। राज्यों में लड़कों की शादी की जाती है, जिनसे हमारे रीति-रिवाज व खानपान भी विभिन्न है और रीति रिवाज व खानपान का मेल न होना भी विवाद का कारण बन जाता है। कन्या भ्रूण हत्या से भी सामाजिक त्यौहार जिसमें रक्षाबंधन व भैया दूज भी महत्वपूर्ण है वे भी धुंधले पड़ जाएंगे। आज आवश्यकता है उन योजनाओं पर अमल करने की। बेटी को सम्मान स्वरूप आगे बढऩे के लिए प्रेरित करने तथा कन्या भ्रूण हत्या के प्रति भयावह स्थिति पैदा करने की, जिससे की लोगों की मानसिकता में बदलाव हो और वे स्वयं बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान में शामिल हो सकें।


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