‘माइक्रोप्लास्टिक’ का पता लगाने के लिए ‘डिफ्यूज रिफ्लेक्शन’ पद्धति के इस्तेमाल पर जोर
punjabkesari.in Tuesday, May 23, 2023 - 10:06 AM (IST)

पणजी, 23 मई (भाषा) गोवा में सीएसआईआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी (एनआईओ) के शोधकर्ताओं के एक दल ने ‘माइक्रोप्लास्टिक’ का बेहतर तरीके से पता लगाने के लिए ‘डिफ्यूज रिफ्लेक्शन’ पद्धति के इस्तेमाल का सुझाव दिया है।
एनआईओ वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की घटक प्रयोगशालाओं में से एक है।
‘माइक्रोप्लास्टिक’ पौधों और जानवरों के लिए हानिकारक हैं। ये अधिकतर जटिल पर्यावरणीय क्षेत्रों जैसे मैला पानी वाले स्थान और तलछट पर पाए जाते हैं।
शोध दल के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि इस पद्धति के तहत एक सतह से प्रकाश का परावर्तन शामिल होता है, जहां एक किरण कई कोणों में दिखती है। यह छोटे आकार के ‘माइक्रोप्लास्टिक’ के परिमाणन के लिए सबसे प्रभावी, आसान और गैर-विनाशकारी तरीका है।
अध्ययन कैसे और क्यों शुरू हुआ, इसके बारे में बताते हुए शोधकर्ता ने कहा, ‘‘जटिल पर्यावरणीय क्षेत्र (मैट्रिस) में ‘माइक्रोप्लास्टिक’ का पता लगाना बेहद चुनौतीपूर्ण है और इससे भी अधिक चुनौतीपूर्ण कार्य ऐसे दिशा-निर्देश निर्धारित करना है, जिनका पालन हर कोई कर सकता हो और जो आसान, लागत प्रभावी एवं अधिक प्रामाणिक हों।’’
अध्ययन के अनुसार, ‘माइक्रोप्लास्टिक’ को लेकर शोध महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्लास्टिक संबंधी प्रदूषण विश्व स्तर पर सबसे बड़े पर्यावरणीय मुद्दों में से एक है।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
एनआईओ वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की घटक प्रयोगशालाओं में से एक है।
‘माइक्रोप्लास्टिक’ पौधों और जानवरों के लिए हानिकारक हैं। ये अधिकतर जटिल पर्यावरणीय क्षेत्रों जैसे मैला पानी वाले स्थान और तलछट पर पाए जाते हैं।
शोध दल के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि इस पद्धति के तहत एक सतह से प्रकाश का परावर्तन शामिल होता है, जहां एक किरण कई कोणों में दिखती है। यह छोटे आकार के ‘माइक्रोप्लास्टिक’ के परिमाणन के लिए सबसे प्रभावी, आसान और गैर-विनाशकारी तरीका है।
अध्ययन कैसे और क्यों शुरू हुआ, इसके बारे में बताते हुए शोधकर्ता ने कहा, ‘‘जटिल पर्यावरणीय क्षेत्र (मैट्रिस) में ‘माइक्रोप्लास्टिक’ का पता लगाना बेहद चुनौतीपूर्ण है और इससे भी अधिक चुनौतीपूर्ण कार्य ऐसे दिशा-निर्देश निर्धारित करना है, जिनका पालन हर कोई कर सकता हो और जो आसान, लागत प्रभावी एवं अधिक प्रामाणिक हों।’’
अध्ययन के अनुसार, ‘माइक्रोप्लास्टिक’ को लेकर शोध महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्लास्टिक संबंधी प्रदूषण विश्व स्तर पर सबसे बड़े पर्यावरणीय मुद्दों में से एक है।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।