समुद्र के अंदर बिछी इंटरनेट केबल आखिर काम कैसे करती है और इसका मालिक कौन है? जानें सबकुछ

punjabkesari.in Sunday, Sep 14, 2025 - 02:10 PM (IST)

नेशनल डेस्क : आज इंटरनेट हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। सोशल मीडिया, वीडियो कॉल, ऑनलाइन शॉपिंग, यूट्यूब से लेकर ऑफिस का काम, सब कुछ इंटरनेट के बिना अधूरा है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि यह इंटरनेट आखिर आता कहां से है? ज्यादातर लोग मानते हैं कि इंटरनेट सैटेलाइट या मोबाइल टावरों से आता है, लेकिन सच्चाई यह है कि दुनिया का 99 प्रतिशत इंटरनेट समुद्र के नीचे बिछी ऑप्टिकल फाइबर केबल्स के जरिए पहुंचता है। ये केबल्स हजारों किलोमीटर लंबी होती हैं और समुद्र की गहराइयों में बिछाई जाती हैं। आइए जानते हैं कि ये केबल्स क्या हैं, इनका मालिक कौन है और भारत में ये कैसे काम करती हैं।

समुद्री केबल्स का इतिहास
इंटरनेट केबल्स की कहानी 1830 के दशक से शुरू हुई, जब टेलीग्राफ का आविष्कार हुआ। उस समय संचार के लिए तारों का इस्तेमाल होता था। 1858 में अमेरिकी कारोबारी साइरस वेस्टफील्ड ने अटलांटिक महासागर के नीचे पहली टेलीग्राफ केबल बिछाई, जिसने अमेरिका और ब्रिटेन को जोड़ा। हालांकि यह केबल ज्यादा समय तक नहीं चली, लेकिन इसने एक नई शुरुआत की। 1866 में पहली स्थायी समुद्री केबल सफलतापूर्वक बिछाई गई। इसके बाद से टेलीग्राफ और फिर इंटरनेट के लिए समुद्र के नीचे केबल्स बिछाने का सिलसिला शुरू हुआ।

कितनी और कहां हैं ये केबल्स?
वर्तमान में दुनिया भर को जोड़ने वाली समुद्री केबल्स की कुल लंबाई 14 लाख किलोमीटर है। ये केबल्स दुनिया के 99 प्रतिशत इंटरनेट डेटा को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाती हैं। भारत में भी अधिकांश इंटरनेट इन्हीं समुद्री केबल्स के जरिए आता है। देश में लगभग 95 प्रतिशत अंतरराष्ट्रीय डेटा फाइबर ऑप्टिक केबल्स के माध्यम से प्राप्त होता है। भारत में कुल 17 अंतरराष्ट्रीय समुद्री केबल्स हैं, जो 14 समुद्री स्टेशनों से जुड़ी हैं। ये स्टेशन मुख्य रूप से मुंबई, चेन्नई, कोचीन, तूतीकोरिन और त्रिवेंद्रम में स्थित हैं। इन स्टेशनों से केबल्स देश के विभिन्न हिस्सों में इंटरनेट पहुंचाती हैं।

समुद्री केबल्स का मालिक कौन?
समुद्र के नीचे बिछी ये हजारों किलोमीटर लंबी फाइबर ऑप्टिक केबल्स किसी सरकार की संपत्ति नहीं हैं। भारत सरकार या अन्य देशों की सरकारों का इन पर सीधा स्वामित्व नहीं होता। इन केबल्स का मालिकाना हक निजी टेलीकॉम और टेक्नोलॉजी कंपनियों के पास होता है। ये कंपनियां अपने संसाधनों, तकनीक और पूंजी के दम पर केबल्स बिछाती हैं, उनका रखरखाव करती हैं और इंटरनेट डेटा को दुनिया भर में पहुंचाती हैं। भारत में टाटा कम्युनिकेशंस, रिलायंस जियो, भारती एयरटेल, सिफी टेक्नोलॉजीज और बीएसएनएल जैसी कंपनियां इन समुद्री केबल्स को बिछाने और संचालित करने का काम करती हैं। वैश्विक स्तर पर भी कई बड़ी टेक और टेलीकॉम कंपनियां इस काम में लगी हैं।

भारत के लिए क्यों जरूरी हैं ये केबल्स?
भारत जैसे तेजी से डिजिटल हो रहे देश में इंटरनेट की रीढ़ इन्हीं समुद्री केबल्स पर टिकी है। ये केबल्स न केवल देश को वैश्विक इंटरनेट नेटवर्क से जोड़ती हैं, बल्कि डेटा ट्रांसफर की गति और विश्वसनीयता भी सुनिश्चित करती हैं। इनके बिना ऑनलाइन सेवाएं, जैसे सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स और क्लाउड कंप्यूटिंग, संभव नहीं हो पातीं। समुद्री केबल्स को बिछाना और उनका रखरखाव एक जटिल और महंगा काम है। प्राकृतिक आपदाएं, जैसे भूकंप, या मानवीय गतिविधियां, जैसे मछली पकड़ने या जहाजों की गतिविधियां, इन केबल्स को नुकसान पहुंचा सकती हैं। फिर भी, ये केबल्स इंटरनेट की दुनिया का आधार बनी हुई हैं और भविष्य में इनकी संख्या और क्षमता में और इजाफा होने की उम्मीद है।


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Content Editor

Shubham Anand

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