"सात्यकि- द्वापर का अजेय योद्धा" - दुष्यंत प्रताप सिंह की अद्भुत कृति

punjabkesari.in Tuesday, Jun 17, 2025 - 02:37 PM (IST)

लेखक  : दुष्यंत प्रताप सिंह 
भाषा : हिन्दी 

मुंबई। सोशल मीडिया और सूचना क्रांति के दौर में हम किताबों से भले ही दूर हो गए हों लेकिन माइथोलॉजी पर आधारित कुछ अच्छी पुस्तकों ने पाठकों के बीच अलग ही पैठ बनाई है और काफी प्रसिद्धि भी हासिल की है। मसलन शिव ट्रायॉलॉजी, धर्मयोद्धा कल्कि, असुर और अन्य बहुत सी ऐसी पुस्तकें हैं जिनके नायक माईथोलॉजी और इतिहास से प्रेरित हैं। इंटरनेट और रील युग में किताबें पढ़ने का शौक भले ही कम हो गया हो लेकिन यदि पुस्तक अच्छी है तो लोग पढ़ने में दिलचस्पी दिखाते हैं। इसी क्रम में बाज़ार में एक नई पुस्तक आई है भारत के चर्चित व प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक दुष्यंत प्रताप सिंह की 'सात्यकि- द्वापर का अजेय योद्धा' जो द्वापर युग के एक ऐसे गुमनाम योद्धा की गाथा कहने का प्रयास करती है जिसे आज के युग में शायद ही कोई जनता हो। 

इंडी प्रेस द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक द्वापर युग के कालजयी योद्धा 'सात्यकि' की वीरता की कहानी बयान करती है। कुल 32 अध्यायों में समाहित इस योद्धा की कहानी लेखक के अनुसार स्वयं द्वापर के महायोद्धा सात्यकि के द्वारा लेखक को माध्यम बनाकर उन्ही के शब्दों में लिखी गई है। कहानी का प्रारंभ होता है इसके प्रथम अध्याय 'वासुदेव का वचन' से जिसमें एक अद्भुत घटना का वर्णन है जब लेखक की मुलाकात शांत हो चुके रक्तरंजित युद्ध के मैदान में सात्यकि से होती है जो लेखक को बताते हैं कि उनकी कहानी कलयुग में लोगों को सुनाने के लिए स्वयं भगवान कृष्ण ने चुना है। 

असल कहानी शुरू होती है दूसरे अध्याय 'द्वापर में मेरे जीवन का सबसे अमूल्य पल' से जिसमें सात्यकि का भगवान श्रीकृष्ण के साथ मथुरा में साक्षात्कार का वर्णन किया गया है। जिसमें  मथुरा के पापी राजा कंस का अंत करने के बाद श्रीकृष्ण जनता का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे तभी उनसे मिलने मथुरा के ही सैन्यदल अरिष्टनेमि का नेतृत्व कर रहे एक शालीन वृद्ध सात्यक आते हैं और अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। लेकिन सैन्य वेशभूषा में खड़े सात्यक के पुत्र सात्यकि पर जब वासुदेव की नज़र पड़ती है तो प्रभावित होकर वह उसको अपने पास बुलाते हैं और उसका परिचय जानते हैं। 

इसके अगले अध्याय में श्रीकृष्ण द्वारा महाराज उग्रसेन को मथुरा का राजा घोषित करने के बाद कंस के ससुर सम्राट जरासंध के द्वारा मथुरा पर आक्रमण की खबर मिलती है जो अपनी विशाल सेना के साथ मथुरा पर अपने दामाद कंस के वध का बदला लेने के लिए निकल पड़ा है। श्रीकृष्ण जरासंध की विशाल सेना से युद्ध करने और मथुरा को सुरक्षित करने की रणनीति तैयार करते हैं जिसमे मथुरा राज्य के 4 द्वारों में से एक पश्चिमी द्वार का नेतृत्व करने के लिए सात्यकि का चुनाव करते हैं।

इसी प्रकार कहानी लयबद्ध शब्दों से रोमांचक अंदाज़ में आगे बढ़ती है। आगे के अध्यायों में भीषण युद्ध का वर्णन पाठकों को रोमांचित करेगा। सात्यकि अपने युद्ध कौशल से कितना प्रभावित कर पाएगा, महाभारत के युद्ध में क्या था उनका योगदान, भगवान श्रीकृष्ण से क्या है उनका संबंध और क्या है उनकी कहानी यह जानने के लिए आपको यह पुस्तक पढ़नी पड़ेगी। 

दुष्यंत प्रताप सिंह ने कहानी को अलग ही अंदाज़ में लिखा है और वह कहानी के अंत तक शब्दों से खेलते हुए दिखाई पड़ते हैं। उनके शब्दों के चयन में सरलता के साथ द्वापर युग की गरिमा भी दिखाई पड़ती है। वर्तमान और भूत को एकसाथ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का उम्दा और अनूठा प्रयास किया है जिसमें वह सफल दिखाई पड़ते हैं। 
कहानी पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे कोई फिल्म देख रहे हों वही रोमांच वही अधीरता कि आगे क्या होगा? 
कहानी 32 अध्यायों की ज़रूर है लेकिन पढ़ते हुए कहीं भी थकाऊ नहीं लगती है। अंत तक रोमांच बना रहता है।

निष्कर्ष:
सात्यकि महाभारत के एक ऐसे योद्धा थे जिनका पराक्रम, निष्ठा और कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति उन्हें द्वापर युग के महानतम योद्धाओं की श्रेणी में ला खड़ा करती है। वे न केवल एक कुशल धनुर्धर थे, बल्कि एक बुद्धिमान रणनीतिकार और सच्चे मित्र भी थे, जिनकी गाथाएँ भारतीय पौराणिक कथाओं में सदैव प्रेरणा देती रहेंगी।
दुष्यंत प्रताप सिंह की 'सात्यकि- द्वापर का अजेय योद्धा'  ऐतिहासिक कथा साहित्य का एक उल्लेखनीय नमूना है जिसमें पौराणिक कथाओं, रोमांच, युद्ध कौशल, रणनीति और राजनीतिक का अद्भुत मिश्रण है। जो लोग साहसिक कहानियों और भारतीय पौराणिक कथाओं को पसंद करते हैं, उनको यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए।


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Content Editor

Diksha Raghuwanshi

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