सपनों की उड़ान, सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव एक प्रेरणादायक सिनेमाई यात्रा
punjabkesari.in Tuesday, Mar 04, 2025 - 10:53 AM (IST)

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव", रीमा कागती द्वारा निर्देशित और आदर्श गौरव, शशांक अरोड़ा, और विनीत कुमार सिंह अभिनीत, आज सिनेमाघरों में रिलीज़ हो गई है। यह फ़िल्म केवल सिनेमा के प्रति प्रेम का उत्सव नहीं है, बल्कि उन अनगिनत लोगों की कहानी भी है जो सीमित संसाधनों के बावजूद अपने सपनों को साकार करने का हौसला रखते हैं।
फ़िल्म जो भावनाओं के तार छेड़ती है
कुछ फ़िल्में केवल देखी नहीं जातीं, वे महसूस की जाती हैं "सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव" उन्हीं फ़िल्मों में से एक है। यह फ़िल्म देखने के बाद जो भावनात्मक प्रभाव दर्शकों पर पड़ता है, वह शब्दों में बयां करना कठिन है। हाल ही में आयोजित एक निजी स्क्रीनिंग में, जहाँ इंडस्ट्री से जुड़े कई अनुभवी लोग मौजूद थे, वहाँ कई लोगों की आँखों में आँसू देखे गए। रीमा कागती, जिन्हें आमतौर पर बेहद संयमित और दृढ़ माना जाता है, खुद भी इस फ़िल्म की गहरी संवेदनशीलता से अभिभूत हो गईं।
यह फ़िल्म न केवल मनोरंजन प्रदान करती है, बल्कि दर्शकों को भीतर तक झकझोरने की क्षमता रखती है। यह एक ऐसी सिनेमाई कृति है, जो आपको हंसाती भी है, रुलाती भी है और सिनेमा के प्रति आपके प्रेम को और गहरा कर देती है।
कहानी जो प्रेरित करती है
यह फ़िल्म 1994 के दौर की सच्ची घटनाओं से प्रेरित है और नासिर (आदर्श गौरव) की कहानी पर केंद्रित है, जो मालेगांव में एक छोटी सी मूवी पार्लर चलाता है और चार्ली चैपलिन जैसी क्लासिक अंग्रेज़ी फ़िल्में दिखाता है। लेकिन जब स्थानीय पुलिस उसके थिएटर को पायरेसी के आरोप में बंद कर देती है, तो नासिर हिम्मत नहीं हारता। वह एक अनोखा निर्णय लेता है अपनी खुद की फ़िल्म बनाने का।
इस सपने को साकार करने के लिए उसके दोस्त शफ़ीक़ (शशांक अरोड़ा), फ़रोग (विनीत कुमार सिंह) और अकरम (अनुज सिंह दुहान) उसका साथ देते हैं। वे मिलकर "मालेगांव का शोले" बनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन क्या वे सफल हो पाते हैं? यह सफर संघर्ष, जुनून और अटूट विश्वास से भरा हुआ है, जो हर सिनेमा प्रेमी को प्रेरित करेगा।
रीमा कागती की सर्वश्रेष्ठ कृति
यह कहना गलत नहीं होगा कि "सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव" रीमा कागती के करियर की सबसे बेहतरीन फ़िल्मों में से एक है। सिनेमा के प्रति उनके समर्पण और उनकी बारीक दृष्टि ने इस फ़िल्म को एक अलग ऊंचाई पर पहुंचाया है। यह फ़िल्म न केवल सिनेमा के महत्व को रेखांकित करती है, बल्कि उन अनगिनत सपनों की गूंज भी है, जो छोटे शहरों की गलियों में जन्म लेते हैं और सीमित संसाधनों के बावजूद उड़ान भरते हैं।
"सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव" केवल एक फ़िल्म नहीं, बल्कि उन सभी सिनेमा प्रेमियों के लिए एक प्रेरणा है, जो फिल्मों को सिर्फ़ मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि जुनून की अभिव्यक्ति मानते हैं। यह फ़िल्म दर्शकों को हंसाएगी भी, भावुक भी करेगी और अंत में सिनेमा के प्रति उनके प्रेम को और गहरा कर देगी।