कई मुश्किलों का सामना करने के बाद बनी है फिल्म दुकान: सिद्धार्थ-गरिमा

punjabkesari.in Wednesday, Apr 03, 2024 - 03:30 PM (IST)

नई दिल्ली। 'गोलियों की रासलीला राम-लीला','राब्ता', 'टॉयलेट: एक प्रेम कथा', 'बत्ती गुल मीटर चालू' जैसी फिल्मों की स्क्रिप्ट और कई हिट गानें लिख चुके सिद्धार्थ और गरिमा की जोड़ी फिल्म 'दुकान' से अपना डायरेक्टोरियल डेब्यू करने जा रही है। कर्मशियल सरोगेसी की अनदेखी दुनिया को दिखाती 'दुकान' प्रमुख तौर पर उन महिलाओं के बारे में कई सवाल उठाती हैं, जो सरोगेसी को एक पेशे के रूप में चुनती हैं। इस फिल्म में मोनिका पंवार मुख्य किरदार निभा रही हैं। उनके अलावा सोहम मजूमदार, सिकंदर खेर, मोनाली ठाकुर और व्रजेश हिरजी भी फिल्म में अहम किरदार में नजर आएंगे। यह फिल्म 5 अप्रैल 2024 को सिनेमाघरों में दस्तक देने के लिए तैयार है। इस बारे में सिद्धार्थ और गरिमा ने पंजाब केसरी/नवोदय टाइम्स/जगबाणी/हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश:

 

सवाल: फिल्म दुकान से आप पहली बार डायरेक्शन की दुनिया में कदम रख रहे हैं, ऐसे में आपके सामने क्या चुनौतियां आई?
जवाब:
पहली बार डायरेक्शन कर रहें हैं तो ऐसे में डायरेक्टर बनने के लिए चुनौतियां तो हमेशा से ही रहती हैं। पहले स्क्रिप्ट लिखो फिर कास्टिंग करो। उसके बाद फिर अपनी फिल्म के लिए प्रोड्यूसर ढूढ़ो तो चुनौतियां तो शुरु से ही थीं और इसके अलावा ऐसे विषय पर फिल्म बनाना थोड़ा मुश्किल भी हो जाता है। पहली चुनौती स्क्रिप्ट लिखना था फिर फिल्म के लिए प्रोड्यूसर ढूंढ़ने में काफी समय लगा क्योंकी कोई भी इस फिल्म को बनाना नहीं चाहता था तो कई तरह कि मुश्किलों का सामना करना पड़ा तब जाकर यह फिल्म बन पाई।


सवाल: कमर्शियल सेरोगेसी जैसे मुद्दे को लेकर फिल्म का आईडिया कैसे आया।
जवाब: 
ये आईडिया हमने सबसे पहले 2010 में सोचा था उसके बाद हमने सोचा कि हमें इस पर कुछ करना है तब तक तो हमने कोई फिल्म लिखी भी नहीं थी। इस आईडिया को हमने पनपने दिया। फिर साल 2014-15 में हमने इस पर रिसर्च की। 3, 4 साल हम लोग गुजरात जाते रहे जहां हमने इसके लिए रिसर्च करनी शुरु की। वहां जाकर हमें तथ्य पता चले और जैसा हमने हमारे ट्रेलर में भी कहा कि सत्य घटनाओं पर आधारित है। यह बहुत सारी सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानी है जिसे हमने जोड़ कर एक फिल्म बनाई है।

 

फिल्म का नाम दुकान ही क्यों?
जवाब: 
फिल्म का नाम दुकान ही क्यों एक व्यंग्य की तरह है कि मतलब क्या एक दुकान है तो फीलिंग नहीं हैं। आप इस फिल्म में देखेंगे कि जिस तरह किसी दुकान से लेन देन होता है वस्तुओं का ऐसे ही यहां बच्चों का हो रहा है लेकिन इसमें दुकान तो है पर साथ में एक इमोशनल जुड़ाव भी है। तो कहीं न कहीं ऐसा कह सकते है दुकान शब्द का प्रयोग एक तंज की तरह इस्तेमाल किया है।

 

सवाल: जब दो लोग साथ में काम करते हैं तो कई बार मतभेद भी होते हैं, आप दोनों उससे कैसे निपटते हैं?
जवाब: 
कभी भी कोई भी क्रिएटिविटी दो लोगों में बिना किसी मतभेद के हो ही नहीं सकती। साथ काम करने में दोनों के विचार महत्वपूर्ण होते हैं। हम दोनों साथ में जब भी कुछ लिखते हैं तो एक दूसरे की तारीफ और कमियां दोनों निकालते हैं। कभी कुछ में लिखती ही तो उसका अगला पार्ट सिद्धार्थ लिखते हैं और हम दोनों एक दूसरे को टोकते भी है और साथ में अप्रूव भी करते हैं अपने काम को। तो बस इसी तरह ही एक हेल्थी पार्टनरशिप चलती है।

 


सवाल: आपने कई हिट गाने भी लिखे हैं  तो एक फिल्म की script और गाने को लिखने में क्या कुछ अलग होता है।
जवाब: 
फिल्म लिखना और एक गाना लिखना दोनों ही काफी अलग हैं और दोनों को ही लिखना आसान नहीं है। मैं कहूंगी की स्क्रिप्ट लिखना एक खतरनाक प्रक्रिया है। क्योंकि उसमे आपको हर सीन का ध्यान रखना है। कब दर्शक हंसेंगे कब रोयेंगे या कब वह कहानी को रिलेट कर पाएंगे। मन में एक डर होता है स्क्रिप्ट लिखना ही हमारा असली टेस्ट होता है। स्क्रिप्ट लिखना एक अलग स्किल है और गाना लिखना एक अलग स्किल है। गाना लिखते समय उसकी सिचुएशन जानती होती है। लिरिक्स ऐसे होने चाहिए कि जो फिल्म में नहीं कहा जा रहा वो आपका गाना कह दे। ये अलग चुनौती है कि पूरी फिल्म का सार आपको एक गाने में कहना होता है।

 

सवाल: किसी भी सामाजिक विषय पर फिल्म लिखने में जिम्मेदारी कितनी बढ़ जाती है।
जवाब: 
हां जब भी हम किसी सामाजिक मुद्दे पर फिल्म बनाते हैं तो हमारी जिम्मेदारी कहीं ज्यादा बढ़ जाती है। क्योंकि आपको एक संदेश देने के साथ साथ दर्शकों को मनोरंजन भी देना है। इसके साथ ही प्रोड्यूसर को अपना पैसा भी कमाना है। और सबसे बड़ी बात ये कि अगर कोई सामाजिक मुद्दा है तो उसके हर पहलु पर बात हो जिसमे पूरी रिसर्च और तथ्य हों। ऐसे टाइम पर आप हवा में बाते नहीं कर सकते हैं क्योंकी आपको फिल्म के जरिए एक संदेश देना है। सभी दृष्टिकोण के आधार पर हम फिल्म की कहानी को लिखते हैं।

 

सवाल: फिल्म की कास्टिंग में किस तरह की मुश्किलों का सामना किया?
जवाब:
  हम बस हमेशा से चाहते थे कि पूरी ईमानदारी के साथ हमारी फिल्म दर्शकों तक पहुंचे। हम अपनी फिल्म को ओटीटी पर नहीं थियेटर्स में लाना चाहते थे। और थियेटर्स में लाने का मतलब कहीं न कहीं बड़ा स्टार का होना भी होता है। तो कास्टिंग में हमें काफी मुश्किलें आईं क्योंकि कोई भी मेन स्ट्रीम की हीरोइन प्रेगनेंट महिला का किरदार निभाने को तैयार नहीं थी। इसके बाद हमने मोनिका पवार को कास्ट किया जिन्होंने फिल्म में कमाल का अभिनय किया है।

 

सवाल: इस फिल्म को बड़े पर्दे पर लाने का आपका मुख्य उद्देश्य क्या है?
जवाब: 
हम चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देखें। क्योंकि हम बड़े पर्दे पर कोई कहानी ला रहे हैं तो लोग सभी दर्शकों तक फिल्म पहुंचे। हम इस फिल्म को सिनेमाघरों में इसलिए भी लाना चाहते हैं क्योंकी कोई भी इंसान जिसने काम किया है लेकिन वो अदृश्य है उसकी बात हो। दुकान में हम सेरोगेट की बात करते हैं जो हमेशा अदृश्य ही रह जाती हैं। तो उनकी भी बात हो क्योंकी बच्चा  लेने के बाद कौन जानता है कि उसको किसने जन्म दिया। 


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Content Editor

Varsha Yadav

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