किरदार निभाते वक्त शुद्धता और ईमानदारी सीधे दर्शकों के दिल में उतरती है : सान्या मल्होत्रा
punjabkesari.in Friday, Feb 07, 2025 - 06:32 PM (IST)
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नई दिल्ली। फिल्म ‘Mrs.’ महिलाओं के संघर्ष और ताकत को दर्शाती है। साथ ही समाज की पुरानी सोच को चुनौती भी देती है। निर्देशक आरती ने महिलाओं के प्रति समाज के नजरिए पर अपनी राय दी, जबकि सानिया मल्होत्रा ने अपने किरदार के जरिए महिलाओं की असल ज़िंदगी के मुश्किलों को बखूबी पेश किया। दोनों ने फिल्म के किरदारों की गहराई, महिलाओं पर समाज के दबाव और फिल्म इंडस्ट्री में बने रहने की चुनौतियों पर बात की। फिल्म के बारे में आरती और सान्या मल्होत्रा ने पंजाब केसरी/ नवोदय टाइम्स/ जगबाणी/ हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश...
सान्या मल्होत्रा
Q. मिसेज का किरदार निभाते हुए आपको डर महसूस हुआ कि यह सब फेस करना पड़ेगा?
जब मिसेज का किरदार निभाने की तैयारी की तो डर नहीं था कि मैं ऐसी मिसेज बनूंगी। मेरे मन में साफ था कि कभी भी ऐसे रिश्ते में नहीं रहूंगी, जहां इज्जत ना मिले। मुझे हमेशा से विश्वास था कि रिश्ते में सम्मान होना चाहिए। दुख की बात यह है कि फिल्म जो दिखा रही है, वह अब भी सच्चाई है। कई महिलाएं किरदार और फिल्म से खुद को जोड़ पा रही हैं। यह देख दुख होता है कि अभी भी पुरानी बातें सुनने को मिल रही हैं, जो बचपन में मम्मी से सुनती थी। जैसे आप अपने करियर में सफल हो जाएं, फिर भी आपकी रोटियां ठीक से नहीं बन सकतीं, या ‘दाल नहीं बनानी आती’। मुझे कोई ऐसा सवाल पूछे तो मैं उनसे पूछूंगी कि ‘आपको क्या आता है?’ मुझे लगता है कि यह समानता का मुद्दा है। मैं खुशनसीब हूं कि मेरी जिंदगी में अच्छे लोग हैं, जो सही रास्ता दिखाते हैं। लोग समझते हैं कि औरतों पर जो दबाव डाला जाता है, वह बदलने की जरूरत है।”
Q. ‘कटहल’ जैसी बेहतरीन फिल्मों में काम किया है। किस तरह से इन फिल्मों के लिए तैयार होती हैं?
मुझे लगता है कि मेरी सफलता का राज कड़ी मेहनत और सही टीम के साथ काम करने में है। मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि आरती जैसी डायरैक्टर्स और क्रिएटर्स के साथ काम करने का मौका मिला, जो नई और अलग सोच रखते हैं। स्क्रिप्ट पढ़ती हूं तो सशक्तिकरण वाली कहानी का हिस्सा बनना चाहती हूं। मैं स्क्रीन पर किरदार निभाती हूं, तो एहसास होता है कि मेरा काम उन युवा लड़कियों तक पहुंचना चाहिए जो मुझे देख महसूस करें कि वह भी कुछ ऐसा कर सकती हैं। मैं चाहती हूं कि मेरी फिल्में समाज में बदलाव की ओर कदम बढ़ाएं और हर व्यक्ति को क्षमता का अहसास कराएं। मेरे लिए अभिनेता के तौर पर जरूरी है कि मैं अपनी जिम्मेदारी समझूं और वह फिल्में करूं, जो वैल्यूज को दर्शाती हों। साथ ही, मैं अपनी सच्चाई और सरलता को बरकरार रखती हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि किरदार को निभाते वक्त शुद्धता और ईमानदारी सीधे दर्शकों के दिल में उतरती है। यह शुद्धता कैमरे के सामने अपने आप झलकती है और मेरे किरदारों को और भी प्रभावशाली बना देती है।
Q. मुंबई जैसी तेज रफ्तार वाली इंडस्ट्री में खुद को सही रास्ते पर रखना कितना मुश्किल है?
इंडस्ट्री में टिकना मुश्किल हो सकता है, लेकिन मुझे अच्छे लोग मिले, जो सही रास्ते पर रखते हैं। यहां खुद को खोना बहुत आसान होता है, क्योंकि बहुत दबाव होता है। हाल ही में मैंने एक इंटरव्यू सुना था, जिसमें वह कह रही थीं कि वह सिर्फ तीन दिन सोशल मीडिया पर रही थीं और फिर महसूस हुआ कि वह दूसरों की जिंदगी देख रही थीं और सोच रही थीं कि उनके पास जो चीजें हैं, वह भी मुझे चाहिए।
इससे असर पड़ता है, क्योंकि ऐसा लगता है कि हम जो कर रहे हैं, वह काफी नहीं है। मेरे अच्छे दोस्त और मेरे आसपास के लोग मुझे हमेशा याद दिलाते हैं कि जिंदगी में इससे भी बहुत कुछ है। मुझे यह भी समझ आता है कि जो भी अभी हो रहा है, वह हमेशा के लिए नहीं रहेगा।
Q. शाहरुख खान के साथ काम करके उनसे क्या सीखने को मिला, जो आप अब भी अपने करियर में फॉलो कर रही हैं?
फन फैक्ट, जब मैं ‘मिसेज’ की तैयारी कर रही थी, तो ‘जवान’ के सैट पर बैठकर मैंने बहुत कुछ किया। ब्रेक्स के समय मैं अपनी वैनिटी में बैठकर आरती को वीडियो कॉल करती थी और रिचा के लिए जर्नल लिखती थी।
‘जवान’ के शूट के बीच में ही हमने ‘मिसेज’ का शूट किया था, तो उस समय मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। शाहरुख सर से जो सबसे बड़ी बात सीखी, वह यह है कि वह बहुत ही ईजी गोइंग हैं। वह जो काम करते हैं, उसमें पूरी तरह से पैशनेट होते हैं और उनका पैशन उनके काम में दिखता है। वह हमेशा यही सोचते रहते हैं कि कैसे अपने ऑडियंस को एंटरटेन किया जाए। एक बार उन्होंने मुझे कहा था, ‘ज्यादा मत सोचो, बस आराम से करो,’ और मुझे यह बात हमेशा याद रहती है।
मैंने बहुत सीरियस एक्टिंग पर ध्यान दिया था, लेकिन शाहरुख सर ने मुझे यह बताया कि मैं बहुत ज्यादा सोच रही हूं, और मुझे एक ‘चिल पिल’ लेनी चाहिए। यहां तक कि खुद से भी यह सवाल किया, ‘क्या मैं सच में इतनी सीरियस हूं?’ और मुझे समझ में आया कि मैं अगर चाहूं तो हल्के-फुल्के तरीके से भी काम कर सकती हूं।
‘क्रिएटिविटी और इनोवेशन पर निर्भर करता है काम’ : आरती
Q. महिला को कुकिंग स्किल्स और अच्छी मां-पत्नी होने के आधार पर ही आंका जाता है। ऐसा क्यों?
यह सोच पुरानी कंडीशनिंग का हिस्सा है। पहले पुरुष शिकार पर जाते थे और महिलाएं घर संभालती थीं, लेकिन अब समाज बदल चुका है। अब काम शारीरिक ताकत से ज्यादा क्रिएटिविटी, इंटेलिजेंस और इनोवेशन पर निर्भर करता है, जिसे कोई भी कर सकता है। फिर भी, अब भी धारणा बनी हुई है कि बाहरी काम पुरुषों और घर का काम महिलाओं का है।
यह बस एक जैंडर की कंडीशनिंग है, न कि कोई जैविक सच्चाई। बड़े-बड़े शेफ्स भी आदमी होते हैं, लेकिन फिर भी हमने कुकिंग को महिलाओं का काम मान लिया है। असल समस्या यही है कि हम व्यक्ति की पसंद देखने के बजाय उसे तयशुदा भूमिकाओं में बांध देते हैं। समाज बदल रहा है, तो संस्कृति भी बदलनी चाहिए। जैसे सती प्रथा खत्म हुई, वैसे ही यह सोच भी बदलेगी। जरूरी है कि मानसिकता और व्यवहार में बदलाव आए। हमारी फिल्म इसी बदलाव को दर्शाती है, जिससे लोगों की सोच खुले और वो महसूस करें कि यह असल में होता है।
Q. आप इस फिल्म में स्ट्रांग और सेंसिटिव इमोशन को कैसे एंगेजिंग तरीके से पेश करती हैं?
-मैं बहुत खुश थी कि फिल्म दर्शकों को स्टोरीटेलर के तौर पर रिलेट करवा सकूं। फिल्म में तीन लेयर होती हैं। पहली लेयर स्टोरी, दूसरी इमोशनल कनेक्शन और तीसरी में मैसेज होता है। बहुत लकी महसूस हुआ कि सानिया जैसी अद्भुत एक्ट्रैस साथ थीं। उन्होंने बेहद प्यारे तरीके से किरदार को निभाया। जब सानिया जुड़ी तब स्क्रिप्ट पूरी तरह से तैयार नहीं थी, इसलिए हमने बहुत सारी चीजें सानिया के स्वभाव और उसके टैलेंट को ध्यान में रखते हुए स्क्रिप्ट में डालीं।
मुझे लगा कि सानिया जिस तरह से एक्साइटेड होती है और जिस तरह से हर चीज को अपनाती है, वही किरदार में दिखानी चाहिए। यह फिल्म उस लड़की की ‘कमिंग ऑफ एज’ स्टोरी है, जो अपनी खुशियों को ढूंढने की कोशिश करती है, लेकिन कभी खुश नहीं हो पाती। हमने इसे बहुत दिलचस्प तरीके से पेश किया। सानिया की परफॉर्मेंस ने इस फिल्म को इतना रिलेटेबल बना दिया कि दर्शक इसके किरदार के साथ खुद को जोड़ पाते हैं और फिल्म की स्टोरी उनके दिलों तक पहुंच जाती है।