धुरंधर से रक्तबीज 2 तक, ये हैं वो मोनोलिंगुअल फिल्में जिन्होंने अपने दम पर सिनेमाघरों में तहलका मचाया

punjabkesari.in Tuesday, Dec 30, 2025 - 03:38 PM (IST)

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। ऐसे दौर में, जब मल्टीलैंग्वल रिलीज़ को अक्सर किसी फिल्म की सफलता का सबसे बड़ा पैमाना माना जाता है, वहीं अलग-अलग भाषाओं की कई मोनोलिंगुअल फिल्मों ने यह साबित कर दिया कि दमदार कहानी और सांस्कृतिक जड़ें अपने दम पर भी ज़बरदस्त बॉक्स ऑफिस नंबर ला सकती हैं। गुजरात से बंगाल, महाराष्ट्र से पंजाब तक इन फिल्मों ने बिना पैन-इंडिया रिलीज़ के अपने-अपने इलाकों में दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींचा और लोकल फिनॉमिना बनकर उभरीं।

धुरंधर
हिंदी सिनेमा में कंटेंट की जीत का सबसे बड़ा उदाहरण बनी धुरंधर। आदित्य धर के निर्देशन में बनी यह फिल्म बिना किसी मल्टीलैंग्वल रिलीज़ के भी घरेलू के साथ-साथ ग्लोबल और इंटरनेशनल मार्केट्स में शानदार प्रदर्शन कर रही है। इसकी इंटेंस कहानी, लेयर्ड परफॉर्मेंसेज़, सटीक कास्टिंग और दमदार विषयवस्तु ने यह साबित कर दिया कि फोकस्ड रिलीज़ आज भी थिएटर तक दर्शकों को खींचने की पूरी ताकत रखती है।

लालो 
गुजराती सिनेमा में लालो एक बड़ी सफलता के रूप में सामने आई। भावनात्मक गहराई और बेहद रिलेटेबल कहानी के चलते फिल्म ने दर्शकों के साथ गहरा जुड़ाव बनाया। मजबूत वर्ड-ऑफ-माउथ और सांस्कृतिक कनेक्ट के दम पर फिल्म ने सिनेमाघरों में लंबी पारी खेली, यह दिखाते हुए कि लोकल सेंसिबिलिटी से जुड़ी गुजराती फिल्में आज भी बॉक्स ऑफिस पर मजबूती से टिक सकती हैं।

दशावतार 
मराठी सिनेमा में दशावतार ने प्रभावशाली थिएट्रिकल परफॉर्मेंस दी। आध्यात्मिक और दार्शनिक सोच से भरपूर यह फिल्म मराठी दर्शकों के बीच गहराई से जुड़ी। बड़े पैमाने के प्रचार से ज्यादा, आस्था, परंपरा और मजबूत कहानी के सहारे फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही।

रक्तबीज 2 
नंदिता रॉय और शिबोप्रसाद मुखर्जी की बंगाली ब्लॉकबस्टर रक्तबीज 2 ने इस ट्रेंड को और मजबूती दी। पश्चिम बंगाल के बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ने लगातार हाउसफुल शो के साथ दबदबा बनाए रखा। लोकल राजनीतिक सच्चाइयों और दमदार अभिनय से सजी इस थ्रिलर ने साबित किया कि क्षेत्रीय सिनेमा में भी दर्शकों की दिलचस्पी जबरदस्त स्तर तक पहुंच सकती है।

गोड्डे गोड्डे चा 2 
पंजाबी सिनेमा की ओर से नेशनल अवॉर्ड विनिंग गोड्डे गोड्डे चा 2 ने भी इस लिस्ट में अपनी जगह बनाई। हास्य, सांस्कृतिक अपनापन और फ्रैंचाइज़ की लोकप्रियता के दम पर फिल्म ने शानदार थिएट्रिकल रन दर्ज किया। इसकी सफलता ने एक बार फिर दिखाया कि पंजाबी फिल्मों का अपने कोर ऑडियंस के बीच कितना मजबूत और वफादार दर्शक वर्ग है।
 
इन सभी फिल्मों की सफलता यह साफ संकेत देती है कि भारतीय सिनेमा में एक अहम बदलाव आ चुका है। अब क्षेत्रीय फिल्मों के लिए पैन-इंडिया लॉन्च ज़रूरी नहीं रह गया है। सच्ची कहानियां, सांस्कृतिक जुड़ाव और दर्शकों की निष्ठा जब ये तीनों साथ हों, तो लोकल कहानियां भी बॉक्स ऑफिस पर असाधारण इतिहास रच सकती हैं।


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Content Editor

Jyotsna Rawat

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