Srikanth Review: बेहद शानदार है श्रीकांत बोल्ला की बायोपिक, राजकुमार राव की एक्टिंग के हो जाएंगे कायल

punjabkesari.in Wednesday, May 08, 2024 - 11:20 AM (IST)

फिल्म- श्रीकांत (SRIKANTH)
निर्देशक- तुषार हीरानंदानी (TUSHAR HIRANANDANI)
स्टाकास्ट- राजकुमार राव (RAJKUMMAR RAO),ज्योतिका (JYOTIKA), अलाया एफ (ALAYA F),शरद केलकर (SHARAD KELKAR),जमील खान (JAMEEL KHAN)
रेटिंग- 3.5

SRIKANTH:  श्रीकांत फिल्म दृष्टिबाधित इंडियन इंडस्ट्रीलिस्ट श्रीकांत बोला की जीवनी पर आधारित फिल्म है, जिसे तुषार हीरानंदानी ने जिसे डायरेक्ट किया है। फिल्म में राज कुमार राव, अलाया फर्नीचरवाला, ज्योतिका, और शरद केलकर जैसे कुछ बड़े नाम है। श्रीकान्त फिल्म एक रियल लाइफ बेस्ड फिल्म होने की वजह से युवाओं को कुछ कर गुजरने और कभी भी हार ना मानने की सीख देती है। आइए बताते हैं इसकी कहानी... 

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कहानी
श्रीकांत एक ऐसा लड़का है जिसे दिखाई नहीं देता है लेकिन वो देखता सब कुछ है, अपने समझ और टैलेंट की आँखों से। फिल्म श्रीकांत के शुरूआती दिनों यानी कि स्कूल से शुरू होती है। फिल्म में आमिर खान की फिल्म “कयामत से क़यामत तक” का गाना “पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा” को भी शामिल किया गया है। इस गाने के बोल की तरह ही श्रीकांत भी बड़ा नाम करने के लिए अपने स्कूल में अच्छे नंबर से पास होता है। जिसके बाद श्रीकांत आगे की पढ़ाई के लिए साइंस स्ट्रीम लेना चाहता है लेकिन इंडियन एजुकेशन सिस्टम की वजह से उसे दाखिला नहीं मिलता। इसलिए श्रीकांत अपनी टीचर की मदद से इंडियन एजुकेशन सिस्टम पर केस कर देता है। क्या श्रीकांत यह केस जीत पाएगा? क्या उसे अपने पसंदीदा कॉलेज में एडमिशन मिल पाएगा? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी। 

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एक्टिंग
श्रीकांत की पूरी जिम्मेदारी राजकुमार राव के कंधे पर है, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया भी है। राजकुमार राव ने श्रीकांत के किरदार को जिया है और तरीके से उसे बेहतर बनाने की कोशिश की है। अलाया एफ ने भी बढ़िया काम किया है लेकिन उनका स्क्रीनस्पेस कम है। वहीं ज्योतिका ने भी अपने किरदार को अच्छे से निभाया है। शरद केलकर के बारे में तो क्या ही कहना। इस बार भी उन्होंने हमेशा की तरह दमदार एक्टिंग की है।

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डायरेक्शन
फिल्म में टू लाइनर्स अच्छे हैं। जैसे- 'अंधा हूं लेकिन गन्दा नहीं'। 'आप हमारे चक्कर में ना फंसना, आपको बेच कर खा जायेंगे हम'। कुल मिलाकर फिल्म आपको मोटिवेट करती है और एक सीख देती है कि नेत्रहीन या शारीरिक रूप से विक्लांग लोगों को अपने बीच का समझो और कंधे से कन्धा मिलाकर चलो। फिल्म में ठहराव कम है। फिल्म लगातार एक सीन से दूसरे सीन में भागती रहती है। जिसकी वजह से दर्शकों के इमोशन से कनेक्ट होने से पहले ही फिल्म आगे बढ़ जाती है।

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Content Editor

Jyotsna Rawat

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