Movie Review: सिस्टम पर कटाक्ष है मनोज बाजपेयी की Joram

Friday, Dec 08, 2023 - 10:52 AM (IST)

फिल्म: जोरम (Joram)
लेखक एंव निर्देशक : देवाशीष मखीजा (Devashish Makhija)
स्टार कास्ट : मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee), जीशान अयूब (Zeeshan Ayyub), स्मिता तांबे (Smita Tambe), तनिष्ठा चटर्जी (Tannishtha Chatterjee)
रेटिंग : 3.5  

Joram: एक हताश आदमी अपनी तीन महीने की बेटी के साथ ऐसी व्यवस्था से भाग रहा है, जो उन्हें कुचलना चाहती है और वह अपनी और अपनी बेटी की जान बचाने के लिए शहर-शहर भाग रहा है। इसी कहानी पर आधारित है फिल्म ‘जोरम’, जो 8 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। अपनी रिलीज से पहले ही फिल्म इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, रोटरडम (नीदरलैंड्स), सिडनी फिल्म फेस्टिवल, डर्बन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल और शिकागो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जा चुकी है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना बटोर चुकी है। सर्वाइवल थ्रिलर ड्रामा जॉनर की इस फिल्म का थ्रिल इतना जबरदस्त है कि दर्शक को सीट पर चिपके रहने पर मजबूर कर देती है।

कहानी
दसरू केरकेट्टा (मनोज बाजपेयी) अपनी पत्नि वानो (तनिष्ठा चटर्जी) के साथ एक गांव में रह रहा है।  उसके जीवन में ऐक ऐसी घटना घटती है कि वह अपने गांव से भागकर मुंबई आ जाता है। अपनी और अपनी बेटी जोरम की जान बचाने के लिए लिए वह भागा-भागा फिरता है। मुंबई आकर वह एक कंस्ट्रक्शन साइट पर श्रम करने लगता है। एक पुलिस अधिकारी रत्नाकर (जीशान अयूब) उसे किसी भी कीमत पर पकड़ने के लिए उसके पीछे पड़ा हुआ है। क्या रत्नाकर उसे पकड़ पाने में सफल होता है। ऐसी कौन-सी वजह है जो उसे गांव छोड़कर शहर भागने पर मजबूर कर देती है। कहानी एक ऐसे सिस्टम पर भी प्रहार है जो सिर्फ पूंजीपतियों के हितों के लिए काम करता है, फिर चाहे वह वैध हो या अवैध। हर एक चीज के लिए जोरम एक रूपक की तरह भी है जिसे लालच और शत्रुता से बचाने की जरूरत है।

एक्टिंग
मनोज बाजपेयी ने दसरू का किरदार निभाया है। किरदार को उन्होंने इस कदर जीया है कि देखकर लगता है मानो यह किरदार उन्हीं को ध्यान में रखकर लिखा गया हो। जीशान अयूब ने भी पुलिस अधिकारी रत्नाकर का किरदार पूरी शिद्दत से निभाया है। मनोज बाजपेयी फिल्म इंडस्ट्री के ऐसे एक्टर हैं, जिन्हें कोई भी रोल दो, वे अपना 100 फीसदी देते हैं। ‘सत्या’ के भीखू मात्रे के किरदार से लेकर अब तक उनकी एक्टिंग लगातार बुलंदियां हासिल कर रही है। हर फिल्म के साथ वे एक एक्टिंग की नई मिसाल सामने लाते हैं। यही एक शानदार एक्टर की निशानी है। अपनी बच्ची को बचाने के लिए एक पिता के दर्द, मायूसी और हताशा जैसी भावनाओं का शानदार प्रदर्शन उन्हें संजीव कुमार जैसे अग्रिम कलाकारों की पंक्ति में स्थान देता है।

निर्देशन
निर्दशक देवाशीष मखीजा और कलाकार मनोज बाजपेयी इससे पहले भी ‘भोंसले’ और शॉर्ट फिल्म ‘तांडव’ में साथ काम कर चुके हैं। देवाशीष मखीजा के निर्देशन में मनोज बाजपेयी की यह तीसरी फिल्म है। देवाशीष मखीजा कलाकारों का मादा परखने में जौहरी के समान पैनी नजर रखते हैं। यही कारण है कि वे मनोज बाजपेयी जैसे हीरे की परख करना जानते हैं। फिल्म में हर कलाकार से उन्होंने बेहतरीन काम लिया है। अपनी पटकथा को उन्होंने स्क्रीन पर साक्षात करके दिखा दिया है। कहानी को उन्होंने पर्दे पर भी स्टीक पेश किया है। कहीं भी कहानी को धीमा नहीं पड़ने दिया। दर्शकों की नब्ज को भी उन्होंने बड़ी कुशलता से पहचाना है और अंत तक रोमांच को बरकरार रखने में सफल रहे। इस फिल्म को देखकर लगता है कि वे न केवल लेखन पक्ष के बल्कि तकनीकी पक्ष के भी धनी हैं।

म्यूजिक 
हालांकि ऐसी फिल्मों में गीत और संगीत से ज्यादा फिल्म की कहानी अहमियत रखती है लेकिन फिल्म का संगीत भी शानदार बना है। बैकग्राउंड म्यूजिक, कहानी, रफ्तार के साथ-साथ चलता है और परिस्थितियों के अनुरूप है। म्यूजिक मंगेश धाकड़े का है।

Jyotsna Rawat

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