जटाधारा भले ही शुद्ध पौराणिक कथा नहीं लेकिन इसमें भगवान शिव से एक गहरा आध्यात्मिक संबंध: प्रेरणा
punjabkesari.in Saturday, Nov 01, 2025 - 03:36 PM (IST)
नई दिल्ली/टीम डिजिटल। 7 नवंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही ‘जटाधारा’ में धन पिशाचिनी की रहस्यमय कहानी को बड़े पर्दे पर दिखाया जाएगा। फिल्म में सोनाक्षी सिन्हा, शिल्पा शिरोडकर, सुधीर बाबू अहम भूमिकाओं में नजर आएंगे। ‘जटाधारा' सिर्फ एक रहस्यमय और आध्यात्मिक फिल्म नहीं बल्कि यह महिला शक्ति, आस्था और भावनाओं का सुंदर संगम है। इसमें सोनाक्षी सिन्हा एक शक्तिशाली ‘धन पिशाचिनी’ का किरदार निभा रही हैं जबकि शिल्पा शिरोडकर अपने करियर की दमदार वापसी कर रही हैं। फिल्म की प्रोड्यूसर प्रेरणा अरोड़ा जो हमेशा चुनिंदा और प्रभावशाली कहानियों को पर्दे पर लाने के लिए जानी जाती हैं, बताती हैं कि ‘जटाधारा’ उनके लिए सिर्फ एक फिल्म नहीं बल्कि एक दिव्य अनुभव है। इस फिल्म का निर्देशन वेंकट कल्याण और अभिषेक जयसवाल ने किया है। फिल्म के बारे में सोनाक्षी सिन्हा, शिल्पा शिरोडकर और प्रोड्यूसर प्रेरणा अरोड़ा ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश...
सवाल: जब ‘जटाधारा’ की स्क्रिप्ट ऑफर हुई, तो रीडिंग से साइनिंग तक का सफर कैसा रहा?
सोनाक्षी सिन्हा: बहुत ही कम वक्त लगा जब हमारी प्रोड्यूसर प्रेरणा अरोड़ा ने मुझे यह फिल्म ऑफर की और कहा कि मुझे आपको ‘धन पिशाचिनी’ का किरदार निभाना है, तो मैंने चौंककर कहा पिशाचिनी? मैं?। लेकिन जब मैंने स्क्रिप्ट सुनी, तो उसमें आधुनिकता, स्पिरिचुअलिटी, माइथोलॉजी और फोकलोर सब कुछ इतनी खूबसूरती से पिरोया गया था कि मैंने तुरंत हां कह दिया।
शिल्पा शिरोडकर: मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। बिग बॉस खत्म करने के तुरंत बाद प्रेरणा का फोन आया। उन्होंने बताया कि फिल्म हिंदी और तेलुगु दोनों भाषाओं में बन रही है और मेरे लिए एक बहुत खास रोल है। मैंने जब स्क्रिप्ट सुनी तो मुझे लगा वाह, ये मौका दोबारा शायद मिले ना यह फिल्म मेरे लिए इंडस्ट्री में वापसी का सही मौका थी।
सवाल : सेट पर इतनी सारी महिलाएं प्रोड्यूसर, एक्टर्स क्या फर्क पड़ा वर्क एनवायरमेंट में?
सोनाक्षी सिन्हा: सबसे बड़ा फर्क तो ऑर्गनाइजेशन में पड़ा! जब सेट पर महिला प्रोड्यूसर या टीम में ज़्यादा महिलाएं होती हैं तो सब कुछ बहुत स्ट्रीमलाइन्ड और संतुलित हो जाता है। सब चीज़ें टाइम पर होती हैं।
शिल्पा शिरोडकर: बिलकुल। महिलाएं नैचरली मल्टी टास्कर्स होती हैं वो काम भी संभालती हैं, लोगों को भी समझती हैं और हर स्थिति में शांत रहती हैं। ‘जटाधारा’ की शूटिंग फरवरी में शुरू हुई और कुछ ही महीनों में फिल्म तैयार हो गई क्योंकि हमारे पास एक मजबूत और संगठित टीम थी।
सवाल : फिल्म का कौन-सा सीन सबसे मुश्किल था लेकिन शूट के बाद लगा हां, हमने कर दिखाया?
सोनाक्षी सिन्हा: फिल्म का वह सीन जिसमें धन पिशाचिनी प्रकट होती है बहुत कठिन था। उसमें बहुत सारे कलाकार, बड़े सेट्स और कई कैमरा एंगल्स थे। पर जब रिज़ल्ट देखा तो लगा मेहनत रंग लाई।
शिल्पा शिरोडकर: मैं भी वही कहूंगी। वो सीन बहुत टेक्निकल और इमोशनल दोनों स्तर पर चुनौतीपूर्ण था। लेकिन टीम ने जिस स्पीड और सटीकता से उसे शूट किया, वह काबिले तारीफ था।
सोनाक्षी सिन्हा
सवाल : आपने इतने इंटेंस कैरेक्टर निभाए, क्या कभी घर तक ले आईं किरदार को?
जवाब: नहीं, कभी नहीं! मैं अपना काम घर नहीं लाती। मेरे लिए काम, काम की जगह पर ही रहता है। ज़िंदगी सिर्फ फिल्मों के इर्द-गिर्द नहीं घूमनी चाहिए। मैं बहुत आसानी से स्विच ऑन और स्विच ऑफ कर लेती हूं।
सवाल : आपने कॉमेडी से लेकर इंटेंस ड्रामा तक हर तरह की फिल्में की हैं। अब ‘जटाधारा’ जैसे रोल के बाद खुद को कहां पाती हैं?
जवाब: मुझे गर्व है कि आज मैं वही काम कर रही हूं जो मैं करना चाहती हूं। ये अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। मैंने इस मुकाम तक जल्दी पहुंचकर खुद को खुशनसीब समझा है। 15 साल हो गए इंडस्ट्री में और आज भी मैं यहां हूं, यही सबसे बड़ी बात है। मुझे अपने काम से प्यार है और मैं इसे बहुत सम्मान देती हूं।
शिल्पा शिरोडकर
सवाल : आप इंडस्ट्री के पुराने दौर से हैं। आज के प्रोफेशनल माहौल में उस वक्त की कौन सी बात सबसे ज़्यादा याद आती है?
जवाब: पहले फिल्मों में रिश्ते बनते थे दोस्ती और भरोसे पर। एक फिल्म बनने में दो-तीन साल लगते थे, तो यूनिट परिवार बन जाती थी। कभी-कभी अगर मैं कोई फिल्म नहीं कर पाती थी, तो मैं खुद किसी दूसरी एक्ट्रेस का नाम सुझा देती थी। जैसे मेरी फिल्म ‘बेवफा सनम’ मुझे इसलिए मिली क्योंकि मेरी एक समकालीन अभिनेत्री ने वह फिल्म छोड़ी और मेरा नाम सुझाया। आजकल एजेंसियां और मैनेजर्स के जरिए काम होता है जो अच्छा भी है, लेकिन पहले जैसा अपनापन कम हो गया है।
सवाल : अब ‘जटाधारा’ के बाद क्या आने वाला है?
शिल्पा शिरोडकर: अभी मैं आदि शंकराचार्य पर बन रही एक वेब सीरीज कर रही हूं जो अगले साल रिलीज होगी।
सोनाक्षी सिन्हा: मैं ‘दहाड़’ के सीज़न 2 की शूटिंग शुरू करने वाली हूं। तब तक थोड़ा ब्रेक ले रही हूं क्योंकि सच कहूं तो अभी कुछ नहीं करना चाहती।
प्रेरणा अरोड़ा (प्रोड्यूसर)
सवाल: जब आपने ‘जटाधारा’ की स्क्रिप्ट सुनी, तो इसे प्रोड्यूस करने का फैसला क्यों किया?
जवाब: जी, मैंने बहुत कम स्क्रिप्ट्स सुनी है क्योंकि मैं हर साल सिर्फ एक फिल्म पर फोकस करती हूं। मुझे जो भी फिल्म करनी होती है वह जैसे ईश्वर की ओर से एक तोहफा बनकर मेरे पास आ जाती है। ‘जटाधारा’ के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। मैं हैदराबाद गई थी किसी और काम से वहां मुझे इस फिल्म की स्क्रिप्ट सुनाई गई और सुनते ही मुझे लगा कि यही वो कहानी है जो मुझे बनानी चाहिए। यह फिल्म भले ही शुद्ध पौराणिक कथा नहीं है लेकिन इसमें भगवान शिव से एक गहरा आध्यात्मिक संबंध है। इसमें दिखाया गया है कि जब भी बुराई बढ़ती है ईश्वर किसी न किसी रूप में आकर रक्षा करते हैं। कहानी में माता-पिता के दर्द और उनके त्याग को भी बहुत संवेदनशील तरीके से दिखाया गया है।
सवाल: आज के दौर में जब Gen Z ऑडियंस का टेस्ट बहुत मॉडर्न है, तो क्या आपको लगा कि आध्यात्मिक विषय चुनना थोड़ा रिस्की होगा?
जवाब: नहीं, बिल्कुल नहीं। आज की पीढ़ी भी ब्लैक मैजिक, मिस्ट्री और स्पिरिचुअल टॉपिक्स को बहुत पसंद करती है। जैसे कांतारा या भूत जैसी फिल्में लोगों को आकर्षित करती हैं। दरअसल, हमारे देश के दर्शक भावनाओं और संस्कृति से जुड़े विषयों से अब भी गहराई से कनेक्ट करते हैं। ‘जटाधारा’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक फैमिली ड्रामा और इमोशनल जर्नी है जो हर उम्र के दर्शकों को छू जाएगी।
सवाल: साउथ सिनेमा में इन दिनों पौराणिक और सांस्कृतिक फिल्में काफी सफल हो रही हैं। इस पर क्या कहेंगी?
जवाब: मुझे लगता है कि ये हमारी संस्कृति की गहराई और आस्था की जड़ों को दर्शाने का एक तरीका है। साउथ में अभी भी पारिवारिक मूल्य, परंपराएं और सरल जीवनशैली लोगों के जीवन का अहम हिस्सा हैं। वहां लोग सिनेमा को सिर्फ एंटरटेनमेंट नहीं बल्कि इमोशनल अनुभव मानते हैं। मैंने खुद महसूस किया कि साउथ में सिनेमा हॉल में परिवार साथ बैठकर फिल्में देखते हैं बिना किसी दिखावे के सच्चे दिल से। यह चीज़ नॉर्थ की फिल्मों में अब कम देखने को मिलती है।
सवाल: आज के दौर में क्या दर्शक स्टार पावर देखते हैं या कंटेंट को ज्यादा महत्व देते हैं?
जवाब: दोनों जरूरी हैं। स्टार पावर से फिल्म को बिजनेस और शुरुआती पहचान मिलती है जबकि कंटेंट फिल्म को टिकाऊ बनाता है। आज इंडस्ट्री लगातार बदल रही है OTT प्लेटफॉर्म्स के आने से नए कलाकारों, डायरेक्टर्स और तकनीशियनों को बहुत काम मिला है। लेकिन अगर बड़े स्टार्स नहीं होंगे तो बड़े प्रोडक्शन हाउस फिल्म में पैसा लगाने से हिचकिचाते हैं।
सवाल: सोनाक्षी सिन्हा, शिल्पा शेट्टी और सुधीर बाबू जैसे कलाकारों के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
जवाब: बहुत शानदार मैंने इस फिल्म की पूरी कास्टिंग खुद की है। सोनाक्षी को मैंने हैदराबाद से फोन पर कहानी सुनाई, और उन्होंने तुरंत हां कर दी। शिल्पा शिरोडकर जी को मैं लंबे समय से पसंद करती हूं। उनका कमबैक हम इस फिल्म के जरिए ला रहे हैं। वह जब बिग बॉस से बाहर आईं तो मैंने तुरंत उन्हें कॉल किया और अगले ही दिन फिल्म साइन हो गई।
सुधीर बाबू और डायरेक्टर चिदंबरम सर के साथ मेरी बहुत लंबी क्रिएटिव जर्नी रही हमने महीनों तक हर डिटेल पर काम किया।
सवाल: आज की ऑडियंस हर फिल्म में लॉजिक ढूंढती है। क्या इससे फिल्म मेकर्स पर दबाव बढ़ता है?
जवाब: बिलकुल आज के दर्शक बहुत जागरूक हो चुके हैं। कोविड के बाद लोग थिएटर में तभी आते हैं जब उन्हें कुछ नया अनुभव करना हो। अब सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि एक एक्सपीरियंस चाहिए। जब तक फिल्म में दमदार कहानी और इमोशनल इम्पैक्ट नहीं होगा दर्शक OTT पर इंतजार कर लेंगे।
सवाल: आपके आने वाले प्रोजेक्ट्स कौन-से हैं?
जवाब: मेरी अगली फिल्म भी तेलुगू में है और इसे भी हम V Studios के साथ बना रहे हैं। यह एक माइथोलॉजिकल थ्रिलर होगी जिसकी घोषणा जल्द की जाएगी। यह किसी सीक्वल की तरह है, लेकिन विषय पूरी तरह नया होगा। मैं चाहती हूं कि लोग हमारी संस्कृति और इतिहास को आधुनिक तरीके से देखें।
