देश के सबसे बड़े क्रांतिकारियों में से एक क्रांतिकारी की कहानी है वीर सावरकर : रणदीप हुड्डा

Tuesday, Apr 16, 2024 - 03:45 PM (IST)

नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। रणदीप हुड्डा की फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। एक्टर न केवल इस फिल्म में अभिनय किया बल्कि लेखक, निर्माता और निर्देशक की कुर्सी भी संभाली है। इस फिल्म के लिए रणदीप ने खूब पसीना बहाया है और जी-तोड़ मेहनत की है। वीर सावरकर के जीवन पर आधारित इस फिल्म में उनके अलावा अंकिता लोखंडे और अमित सियाल भी हैं। फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर' के बारे में रणदीप हुड्डा और अंकिता लोखंडे ने पंजाब केसरी/ नवोदय टाइम्स/ जगबाणी/ हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश...


रणदीप हुड्डा

Q. महात्मा गांधी और वीर सावरकर के रिश्ते को फिल्म में कैसे दिखाया गया है?
सावरकर जी के बारे में पढ़ते-पढ़ते मैंने गांधी जी के बारे में भी पढ़ा। गांधी जी के लिए मेरे मन में इज्जत और बढ़ी ही है घटी नहीं है। उन्होंने जिस तरह देश को एक सिंबल के साथ जोड़ा, उस तरह से कोई नहीं जोड़ सकता था। गांधी और सावरकर दोनों स्वतंत्र और अखंड भारत चाहते थे, उन दोनों की विचारधाराएं अलग थीं। एक हिंसावादी थे तो दूसरे अहिंसावादी। पर वो एक दूसरे की इज्जत करते थे। ये कहानी उस समय की है जब एम. के. गांधी बैरिस्टर थे, महात्मा या बापू नहीं बने थे। दोनों की तीन मीटिंग हुईं। गांधी जी लंडन हाऊस में सावरकर से मिलने आए, क्योंकि उन्हें पता था कि सावरकर समझदार, लोगों को एकत्रित करने वाले व्यक्ति हैं। फिर लंदन में एक डिबेट हुई, जिसके बाद 1927 में गांधी उनसे मिलने रत्नागिरी आए। सावरकर की लास्ट बेल प्ली का आईडिया गांधी जी का ही था। तो फिल्म में भी यही है कि दोनों की विचारधाराएं भले ही एक अलग हो, लेकिन दोनों का सपना स्वतंत्र भारत ही था।

Q. इस फिल्म के लिए रिसर्च में कितना समय लगा और यह कितना मुश्किल रहा?
जब मैंने यह विषय चुना तो कई बार मैं स्क्रीनप्ले में सोचता था कि अगला ड्रामेटिक प्वाइंट मैं कहा से लाऊं जो कि सच भी हो। तो मैं किताबों से घिरा बैठा रहता था और कुछ न कुछ मुझे मिलता था। रिसर्च बहुत पहले से कर रहे थे, लेकिन 2 साल से फिर मैंने इसके अलावा कुछ और किया ही नहीं। सावरकर जी की जो खुद की लिखाई है वह भी बहुत कठिन है। सभी तरह के तथ्य ढूंढ़ना उनके जीवन के कई पहलुओं को जानना यही सब हमारी रिसर्च का हिस्सा रहा।

 

Q. वीर सावरकर पर लगे आरोप को फिल्म में आपने किस तरह दिखाया है?
मेरी फिल्म एंटी-प्रॉपेगैंडा है। सावरकर पर जो इल्जाम लगाए गए हैं, उन्हें फिल्म के जरिए सच्चाई को लोगों के सामने लाएंगे और फिर लोग तय करेंगे कि असल सच क्या है। मैं दो साल से यह फिल्म बना रहा हूं और कई मुश्किलों का सामना भी किया। अपनी इस फिल्म में सावरकर को वीर भी नहीं कहा है। यह भी आप तय करेंगे, सिनेमा देखने के बाद कि वो वीर थे कि नहीं। मैं बस देश के सबसे बड़े क्रांतिकारियों में से एक क्रांतिकारी की कहानी को लेकर आना चाह रहा हूं।


 
Q. आप इस फिल्म के लेखक, निर्माता और निर्देशक हैं, तो क्या ये पहले ही सोच लिया था?
नहीं मैंने इतना सब नहीं केवल एक्टिंग का सोचा था। हुआ कुछ ऐसा कि एक्टर से राइटर बना, फिर डायरेक्टर और निर्माता। मुझे लगता है कि वीर सावरकर चाहते थे कि मैं न सिर्फ एक अभिनेता रहूं बल्कि एक निर्माता और निर्देशक भी बन जाऊं, ताकि सिनेमा में योगदान और बढ़ जाए। सावरकर सिनेमा से बहुत प्यार करते थे निर्माता और निर्देशक जैसे शब्द तो सिनेमा में उन्होंने ही लिखे थे।

 

Q. आप स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा होते तो हिंसा या अंहिसा, क्या चुनते?
मैं स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा होता तो अंहिसा का रास्ता ही चुनता, क्योंकि हम जिस जगह से आते हैं, वहां हमने बहुत हिंसा देखी है। मैं हिंसा को सपोर्ट नहीं कर रहा हूं। हिंसा बहुत ही गलत चीज है, लेकिन जब बात आत्मरक्षा की हो तो हिंसा गलत नहीं है। मैं यह भी कहूंगा कि जो अंहिसा वाले थे वह गोली से मरे और हिंसा वालों ने अमरण अनशन किया, आखिर में समाधि ली। कई लोगों ने आमरण अनशन किया, लेकिन कोई मरा नहीं, सिर्फ एक ही इंसान मरा, जिसका नाम है विनायक दामोदर सावरकर।


अंकिता लोखंडे

Q. जब इस रोल के लिए चुना गया तब आपको लगता था कि आप इस किरदार के साथ न्याय कर पाएंगी?
इस तरह के किरदार जो काफी मजबूत और वास्तविक होते हैं, उनके साथ मैं कितना न्याय कर पाऊंगी ये तो मुझे नहीं पता था, लेकिन मैं ऐसे किरदार करना चाहती हूं। मुझे लगता है कि यह एक ऐसा चैलेंज है, जो मैं लेना चाहती हूं और इसमें मेरी कोशिश अपना बेस्ट देने की होती है। मेरे इस किरदार को मैं अच्छे से निभा पाई, इस में रणदीप का बहुत हाथ है, क्योंकि उन्होंने मुझे बहुत विस्तार में कई चीजें सिखाई हैं। यमुनाबाई की 16 से 60 साल तक की उम्र की जर्नी निभाना मेरे लिए बहुत अच्छा अनुभव रहा।

 

Q.आपके लिए महिला सशक्तिकरण के क्या मायने हैं?
मेरा मानना है कि औरत कभी कमजोर नहीं थी, वो हमेशा से ही मजबूत रही है, चाहे आज का समय हो या फिर सालों पहले का। औरत हमेशा ताकतवर थी इसलिए ही शायद जब सावरकर जेल में थे और यमुनाबाई उनके बिना अपनी लड़ाई लड़ रही थी हर तरह की परिस्थिती का सामना किया। उस समय शायद औरतें खुलकर बाते नहीं करती थी, लेकिन अब हम उनकी बातें कर रहे हैं। उन्हें सामने ला रहे हैं, यही सशक्तिकरण हैं।


Q. जब आप किसी व्यक्ति का किरदार निभाते हैं तो उसे प्रमाणिक दिखाने की जिम्मेदारी कितनी बढ़ जाती है?
मैं जब भी कोई किरदार निभाती हूं तो कभी यह नहीं सोचती कि मुझे किसी के लिए करना हैं। मैं हमेशा अपने लिए किरदार निभाती हूं। मैं इस फिल्म के उद्देश्य के हिसाब से काम कर रही हूं। मुझे लगता है कि मुझे जो जिम्मेदारी दी गई है। वो मैं पूरी तरह निभाऊं उसमें कोई ऊंच-नीच नहीं होनी चाहिए। तो जब आप पर जिम्मेदारी आ जाती है तो आप खुद ये सोचते हो कि मुझे अच्छे से करना हैं और अपना सौ प्रतिशत देना है।


Q. आपका रणदीप हुड्डा के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
रणदीप हुड्डा के साथ काम करने का अनुभव बहुत ही बढ़िया रहा है। वो कमाल के एक्टर और उससे भी ज्यादा कमाल के डायरेक्टर हैं। वह हर चीज में बहुत अच्छे हैं। उनके साथ काम करके मैंने सीखा और देखा है कि एक सीनियर एक्टर कैसा होता है। वो बहुत समर्पित हैं, वो आपको हर चीज सिखाएंगे और कैसे करना है, वो भी बताएंगे। मेरे सीन्स में भी रणदीप का इनपुट होता था, तो मैं और अच्छे से अपनी भूमिका निभा पाई।

Varsha Yadav

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