भारत की मिट्टी, उसकी खुशबू, उसकी खूबसूरती फिल्म में महसूस होती है- ईशान
punjabkesari.in Wednesday, Oct 08, 2025 - 03:28 PM (IST)

जातिवादी भेदभाव, सामाजिक हाशिए और इंसानी गरिमा जैसे विषयों को जिस गहराई और संवेदनशीलता से निर्देशक नीरज घेवान पर्दे पर लाते हैं, वह उन्हें आज के सबसे जरूरी फिल्मकारों में शामिल करता है। मसान के बाद उनकी नई फिल्म होमबाउंड एक बार फिर यह साबित करती है कि सिनेमा सिर्फ कहानी नहीं, सामाजिक हस्तक्षेप भी होता है। होमबाउंड, जो भारत की ओर से ऑस्कर 2026 की आधिकारिक एंट्री बन चुकी है। फिल्म के बारे में ईशान खट्टर और विशाल जेठवा ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश...
ईशान खट्टर
सवाल: होमबाउंड का हिस्सा बनने की शुरुआत कैसे हुई? आपको सबसे पहले किसने इस प्रोजेक्ट के बारे में बताया?
सबसे पहले मुझे इस फिल्म के बारे में बताया था करण जौहर सर ने। सात साल पहले मैंने उनके साथ धड़क की थी। वो इंडस्ट्री में पहले व्यक्ति थे जिन्होंने मुझसे मिलने की इच्छा जताई थी। उन्होंने मुझे परखा, समझा कि मैं एक नौजवान हूं जो सिनेमा को लेकर कितना जुनूनी है और फिर सात साल बाद एक ऐसी फिल्म उनके साथ आई, जो मेरे दिल के बेहद करीब है। जब करण सर ने कहा कि नीरज भाई के साथ एक खूबसूरत कहानी बन रही है, उन्होंने मुझसे कहा पढ़ो, तुम्हें पसंद आएगी और मैं तो हमेशा से नीरज भाई के साथ काम करना चाहता था। मसान देखकर ही मैं प्रेरित हुआ था। स्क्रिप्ट पढ़ते ही मुझे महसूस हुआ कि ये सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक ज़िम्मेदारी है। ये कहानी हम सबसे बड़ी है।
सवाल: आपने इस किरदार के लिए किस तरह की तैयारी की और क्या आपने लोकल लोगों के साथ वक्त बिताया?
बिलकुल। तैयारी जून-जुलाई से शुरू हो गई थी। शृद्घर दुबे ने डायलॉग्स लिखे थे उन्होंने हमें Annihilation of Caste जैसे पढ़ने के लिए टेक्ट्स दिए ताकि हम सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भ समझ सकें। हम चार लोग (मैं, विशाल, नीरज भाई और टीम) बाराबंकी गए। गांवों में जाकर लोगों के साथ बैठे, उनके साथ खाना खाया, उनकी ज़िंदगी समझी। एक दिन तो ऐसा लगा जैसे वो मेरा ही गांव है। इतना कि मेरी चाल तक बदल गई थी। विशाल ने देखकर ही कहा शोएब! उस पल मुझे लगा, मैं किरदार में उतर चुका हूं।
सवाल: फिल्म में आपके लिए सबसे चैलेंजिंग या यादगार सीन कौन से थे?
कई हैं जो आपने जिक्र किया- इंडिया-पाकिस्तान क्रिकेट मैच वाला सीन, आखिरी सीन जब चिड़िया आकर बैठती है, वो बहुत खास हैं। एक सीन है जब शालिनी वत्सा का किरदार विरासत में मिली ‘नोकीली एड़ियों’ की बात करता है, और अंत में जब एक औरत आकर पानी देती है। ये प्रतीकात्मक दृश्य बेहद भावुक कर देने वाले थे। क्लाइमैक्स वाला ब्रिज वो मेरे लिए अब तक का सबसे मुश्किल सीन था – स्क्रिप्ट पर भी और शूटिंग के वक़्त भी।
सवाल: फिल्म के बाद दर्शकों की क्या प्रतिक्रिया रही और ऐसा कौन सा कॉम्प्लिमेंट रहा जो दिल को छू गया?
सबसे बड़ी बात ये रही कि लोग फिल्म को महसूस कर रहे हैं उससे जुड़ रहे हैं। नसीरुद्दीन शाह सर ने जो मैसेज भेजा वो बेहद खास था। उन्होंने जो कुछ बारीक बातें नोटिस कीं, वो किसी मास्टर एक्टर की ही नजर हो सकती है। वहीं, क्रिटिक राहुल देसाई ने लिखा कि आप उसकी आत्मा के टूटने और उसके दिल के टूटने के बीच का अंतर भी देख सकते हैं। इसने मुझे झकझोर दिया।
सवाल: इस फिल्म की शूटिंग भोपाल में हुई। कैसा अनुभव रहा?
भोपाल और उसके आसपास के गांवों में लगभग 90% शूटिंग हुई। बहुत सुंदर अनुभव रहा। भारत की मिट्टी, उसकी खुशबू, उसकी खूबसूरती -वो फिल्म में महसूस होती है। ऐसा लगता है जैसे आप उस जगह को सूंघ सकते हैं।
सवाल: अब ये फिल्म ऑस्कर की रेस में है। क्या जानकारी है आपके पास?
ऑस्कर शॉर्टलिस्ट नवंबर-दिसंबर में आएगी। करण सर इस फिल्म के बड़े चैंपियन रहे हैं। और मार्टिन स्कॉर्सेसे सर का नाम जुड़ना – ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है। उन्होंने नीरज भाई की पहले की फिल्मों की सराहना की थी और इस फिल्म को उन्होंने और निखारने में मदद की है। ये फिल्म उन कहानियों में से है जो हर किसी को देखनी चाहिए।
विशाल जेठवा
सवाल: फिल्म का नाम इंग्लिश में क्यों रखा गया?
सच कहूं तो जो नाम हम असल में चाहते थे, वो हमें नहीं मिल पाया। शुरुआत में फिल्म का नाम नीरज सर ने होमबाउंड रखा था, लेकिन वो नाम शायद सिर्फ अस्थायी (टेम्पररी) तौर पर रखा गया था। असल फैसला नीरज सर और प्रोडक्शन हाउस ने मिलकर लिया। हम सब मिलकर दूसरे नामों पर भी सोच-विचार कर रहे थे — जैसे परिंदे या बंदे जैसे कुछ हिंदी नामों पर भी चर्चा हुई थी। लेकिन शायद किसी वजह से वो नाम फाइनल नहीं हो पाए। इसके अलावा, फिल्म का इंटरनेशनल लेवल पर भी काम हो रहा है, इसलिए इंग्लिश टाइटल होमबाउंड ज़्यादा उपयुक्त और असरदार लगा। इसी वजह से आखिर में यही नाम रखा गया।
सवाल: क्या आप भी असल में होमबाउंड पर्सन हो?
हां, जैसे ही यहां से बाहर निकला, तो मुझे तुरंत घर की याद आने लगती है। घर से ज्यादा मतलब मुझे अपने परिवार की याद आने ही लगती है।मतलब मैं हूं थोड़ा फैमिली वाला ही बंदा हूं। दो तीन दिन बाहर हो गया, बस ठीक है होटल देख लिए मस्ती-मस्ती कर ली, हो गया बस, अब चलो घर।
सवाल: आपने शुरुआत गली बॉय जैसी फिल्म से की। अब काफी आगे आ चुके हैं। क्या अब इंडस्ट्री न्यूकमर्स को ज्यादा मौके दे रही है?
मुश्किल तो आज भी है, चाहे न्यूकमर हो या स्टारकिड। लेकिन जो लोग फिल्मी बैकग्राउंड से नहीं आते, उनके लिए सबसे बड़ी दिक्कत होती है मौका मिलना। अगर आपने शुरुआती 1-2 फिल्मों में कमाल नहीं किया या पैसा नहीं कमाया, तो अगला मौका मिलना बहुत मुश्किल हो जाता है। एक एक्टर सिर्फ अच्छा कलाकार नहीं होता, बल्कि उसे रोज़ रिजेक्शन झेलकर भी डटे रहना होता है। खासकर वो लोग जो दिल्ली, गुड़गांव या छोटे शहरों से मुंबई आते हैं, किराए पर रहते हैं और अनजाने माहौल में जीते हैं। जब आप उस संघर्ष से निकलते हैं और एक दिन फोटो खिंचवाने लायक पहचान बनाते हैं, तभी आपको सफल एक्टर माना जाता है।
सवाल: आपने टीवी में लीड रोल किए, क्या टीवी का अनुभव फिल्मों में मददगार रहा?
बिलकुल, टीवी ने मुझे बहुत सिखाया। मैंने करीब 10 साल टीवी में काम किया, तभी मर्दानी मिला। टीवी में स्क्रिप्ट सुबह मिलती थी और शूट उसी दिन होता था। कई बार 99 लाइनें होती थीं और बोलना भी ऐसे भाषा में होता था जो आसान नहीं थी – जैसे माइथोलॉजिकल या हिस्टोरिकल स्क्रिप्ट। उस ट्रेनिंग ने मुझे मजबूत बना दिया।
सवाल: ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने एक्टर्स को कितना सपोर्ट किया?
मैंने अब तक सिर्फ 2 ओटीटी शो किए हैं, लेकिन ओटीटी की सबसे बड़ी बात है तेज़ी से काम होता है और क्वालिटी भी रहती है। पहुंच आसान होती है। फिर भी मेरी ख्वाहिश है कि मैं थिएटर में ज़्यादा फिल्में करूं, क्योंकि बड़े पर्दे पर खुद को देखना एक अलग ही अनुभव होता है।
सवाल: होमबाउंड की कास्टिंग प्रोसेस कैसा रहा? क्या ये आसान था?
आसान बिल्कुल नहीं था। मर्दानी के बाद ये मेरा सबसे कठिन ऑडिशन था। पहले मुझे शोएब नाम के किरदार के लिए बुलाया गया, लेकिन मैं सेलेक्ट नहीं हुआ। फिर उन्होंने मुझे चंदन नाम के किरदार के लिए बुलाया। मैंने खुद रिक्वेस्ट की कि चाहे जितनी बार लेना हो, मेरा ऑडिशन दो, मैं रेडी हूं। इस दौरान मेंरा घर में एक्सीडेंट हुआ, कांच गिरा और टेंडन कट गया। ऑपरेशन हुआ, प्लास्टर लगा और मैं वॉकर के सहारे ऑडिशन देने गया। सीढ़ियां एक पैर से उल्टा चढ़ा। सीन में बॉडी मूवमेंट था और मैं दर्द में था, लेकिन हार नहीं मानी। फिर नीरज सर ने मुझे और इशान को बुलाया, हमारी केमिस्ट्री चेक की। फिर शायद करण जौहर सर और नीरज पांडे सर ने मिलकर डिसाइड किया कि मैं चंदन के रोल के लिए परफेक्ट हूं। और इस तरह मेरा सेलेक्शन हुआ।
सवाल: क्या आपको कभी ऐसा लगा कि आप टाइपकास्ट हो गए थे?
हां, टीवी में ऐसा बहुत हुआ। एक जैसे रोल मिलने लगे थे। जैसे ग्रीन आंखें हैं तो नेगेटिव रोल दे दो। फर्स्ट फिल्म में भी बहुत डार्क रोल किया, तो लगा कि फिल्म इंडस्ट्री में भी कहीं यही ना हो जाए। फिर सलाम रैंकी ने इससे निकलने का वो मौका दिया। रेवती मैम और मेकर्स ने मुझ पर भरोसा किया। फिर होमबाउंड जैसा पॉजिटिव और अलग रोल मिला। अब टाइपकास्ट का डर नहीं है अब लोग कहते हैं कि मैं वर्सटाइल एक्टर हूं। पहले एक्टिंग क्लास में सुनते थे वर्सटाइल एक्टर्स के बारे में, अब खुद को ऐसा कहते सुनना अच्छा लगता है।
सवाल: क्या कोई ऐसा रोल है जो आप अब करना चाहते हैं?
हां, कोई हिस्टोरिकल पीरियड ड्रामा या भंसाली सर की फिल्म करना चाहता हूं और इम्तियाज अली सर के साथ इंटेंस लव स्टोरी भी करना चाहूंगा।
सवाल: नीरज सर (फिल्म निर्देशक) की कौन सी बात सबसे ज्यादा पसंद है?
वो कहते हैं किरदार को जियो सिर्फ एक्ट मत करो। सेट पर पूरा माहौल उस सीन के मुताबिक बना देते हैं- जैसे इमोशनल सीन हो तो सेट पर भी शांति और उसी टोन का माहौल रहता है।
सवाल: क्या आप लार्जर दैन लाइफ साउथ टाइप फिल्म करना चाहेंगे?
जरूर करना चाहता हूं। अगर ऑफर आए तो मैं 48 की उम्र में भी कर लूंगा। मैनिफेस्ट किया है।