लगता था कि कॉर्पोरेट व पॉलीटिक्स से ऊपर आर्ट की दुनिया में जाऊंगा लेकिन यहां उससे भी ऊपर की पॉलीटिक्स : अमोल
punjabkesari.in Thursday, May 08, 2025 - 04:54 PM (IST)

नई दिल्ली। पंचायत बनाने वाले 'द वायरल फीवर' अब एक और मास्टरपीस के साथ दर्शकों के पास लौट आए हैं और उसका नाम है 'ग्राम चिकित्सालय', जिसमें एक बार फिर पिछड़े हुए गांवों का वही माहौल दिखेगा जो काफी मजेदार होने वाला है। ट्रेलर देखकर पता लगता है कि सीरीज की कहानी डॉ. प्रभात यानी कि अमोल पराशर के इर्द-गिर्द घूम रही है जो एक शहरी और यंग डॉक्टर हैं, जिन्हें एक दूरदराज के गांव में 'ग्राम चिकित्सालय' में तैनात किया गया है जहां लोगों को इलाज के लिए बुलाना ही अपने आप में चुनौती है। 'ग्राम चिकित्सालय' वैब सीरीज प्राइम वीडियो पर 9 मई को रिलीज होगी, जिसमें अमोल पराशर, विनय पाठक और आकांक्षा रंजन कपूर लीड रोल में नज़र आएंगे। सीरीज को दीपक कुमार मिश्रा ने क्रिएट किया है, जबकि इसकी कहानी वैभव सुमन और श्रेया श्रीवास्तव ने लिखी है और निर्देशन राहुल पांडे ने किया है। सीरीज के लीड एक्टर्स अमोल पराशर, आकांक्षा रंजन और आनंदेश्वर द्विवेदी ने नवोदय टाइम्स/पंजाब केसरी (जालंधर)/ जगबाणी/हिंद समाचार से खास बातचीत की और दिलचस्प बातें शेयर की...
मुंबई एक्टर बनने नहीं, थिएटर करने आया था : अमोल
Q सीरीज में आप ग्रामीण चुनौतियों का सामना करते हुए नजर आ रहे हैं लेकिन असल जिंदगी में कभी ऐसा हुआ कि आप कहीं गए और सिस्टम के कारण रुकना पड़ा और वो चीजें आपने यहां अप्लाई की हों?
-हो सकता है कि कभी हुआ हो लेकिन अभी सोचने पर एकदम से याद नहीं आ रहा लेकिन इतना जरूर है कि अब हर चीज समझ आती है और किसी से कुछ पूछने की जरूरत नहीं पड़ती।
Q जब आपने इंडस्ट्री में कदम रखा था तो सबसे प्रमुख संघर्ष कौन सा था?
-मुझे कॉलेज में थिएटर का शौक था। मैंने जॉब के साथ भी कोशिश की लेकिन नहीं हो पाया। मैं मुंबई एक्टर बनने नहीं आया था, थिएटर के लिए आया था मगर थिएटर करते-करते मैं यह समझ गया था कि थिएटर से मैं मुंबई का रैंट नहीं भर पाऊंगा। फिर मैंने ऑडिशन देने शुरू किए, वॉइस ओवर और डबिंग वगैरह भी की ताकि किराया निकल सके पर हां, मोटिवेशन स्टेज की तरफ ही थी। पहले मुझे लगता था कि कॉर्पोरेट और पॉलीटिक्स से ऊपर आर्ट की दुनिया में मैं जाऊंगा लेकिन यहां आकर मुझे समझ आया कि आर्ट में जो पॉलीटिक्स है, उससे ऊपर कोई पॉलीटिक्स नहीं होती। फिर धीरे-धीरे मुझे समझ आया कि इंसान, इंसान ही होते हैं तो आप जहां भी जाओ इंसान अपने जैसे ढूंढ लो और फिर आप अपना ही एक संसार बना लो।
Q विनय पाठक के साथ काम करने का एक्सपीरियंस कैसा रहा?
बहुत अच्छा था। बहुत गप्पें मारते थे हम। वो किस्से बहुत सुनाते थे। वैसे भी जब कोई यंग एक्टर पास हो तो हर एक्टर को किस्से सुनाने में तो मजा आता ही है। हम उनके शूट देखते थे और देखकर बहुत कुछ सीखते भी थे।
आकांक्षा रंजन
Q शूटिंग के दौरान चुनौती क्या रही?
मैंने इसके लिए बहुत सारी वर्कशॉप की, खासतौर पर लहजा पकड़ने के लिए। घंटों मैं राहुल के साथ बैठती थी। एक दिन शूटिंग के दौरान कई सारे टेक लेने के बाद भी राहुल खुश नहीं हुए। फिर अगले दिन दूसरा ही टेक ओके था तो वर्कशॉप काम तो बहुत आती है लेकिन मेहनत बहुत लगती है।
Q आपकी फिल्मी दुनिया की शुरुआत कैसे हुई व किन चुनौतियों का करना पड़ा सामना?
मुझे लगता है कि पहले चांस के लिए ही अपने आपको साबित करना बहुत ज्यादा मुश्किल होता है। हालांकि उसके बाद भी ये सिलसिला जारी ही रहता है और अभी तक काम मांग ही रहे हैं। ज्यादा मशहूर न होना भी इसके पीछे है लेकिन कई बार थक जाते हैं सोचते हैं कि छोड़ो और चिल्ल करो। ये मेरे साथ अकेली के साथ नहीं, कई सारे एक्टर्स के साथ होता है। पिछले कई वर्षों से मैं बस ऑडिशंस ही दिए जा रही हूं।
Q कई सारे अच्छे प्रोजैक्ट करने के बाद अब आप अपने आपको कैसे देखते हो और स्क्रिप्ट्स कैसे सिलैक्ट करते हो?
अभी तो मुझे लगता है कि सफर बहुत लंबा है। स्क्रिप्ट की बात करें तो अच्छी स्क्रिप्ट तो बहुत हैं लेकिन हां सारी मेरे पास तो नहीं आती। मैं खुद को चूजी भी नहीं कहूंगी मगर ये जरूर सच है कि इतना मुझे जरूर पता है कि कौन सी मुझे नहीं करनी। मैं ऐसे किरदार करना चाहती हूं जो दर्शकों और मेकर्स दोनों को पसंद आएं और मुझे और काम मिले।
आनंदेश्वर द्विवेदी
Q फिल्म में आपका सिर्फ फनी शेड ही है या कोई और भी?
मेरे ग्रे शेड हैं। मेरा किरदार कंपाऊंडर का है और उसका अपना ही एक सिस्टम और पैटर्न चल रहा है लेकिन प्रभात के आने से इसकी जिंदगी में उथल-पुथल मच गया। प्रभात नया सिस्टम लेकर आ गया जिसे ये डायरैक्टली चैलेन्ज नहीं कर सकता तो सारा चैलेंज इसकी जिंदगी में प्रभात के आने से आया।
Q जब आप एक्टर बनने मुंबई आए तो किस चीज ने सबसे ज्यादा परेशान किया?
मुझे लगता है कि मैं बहुत खुशनसीब हूं कि मुझे आते ही टीवीएफ मिल गया व मेरे दोस्त बैंकर्स थे तो स्ट्रगल इतना नहीं रहा तब हमारी सैलरी भी फिक्स हो गई थी।
Q मुंबई कई नए राइटर आते हैं, उनको क्या कहेंगे?
मैं यही कहना चाहूंगा कि ये टाइम उन्हीं का है। अगर आपके पास एक स्क्रिप्ट है तो बस अपने दोस्तों के साथ मिलकर उसे बना लो। एक्टर, कैमरामैन व एडिटर सब कुछ मिलकर करो व किसी भी फ्री मीडियम पर अपलोड कर दो, दुनिया खुद आपका टैलेंट देख लेगी।