आप नहीं जानते होंगे गूगल के बारे में ये बातें

Sunday, Feb 11, 2018 - 02:31 PM (IST)

नई दिल्ली : जब भी हमें किसी जगह या किसी के बारे में कुछ जानना हो सबसे पहले हम गूगल पर जाकर सर्च करते है । गूगल से हर तरह की जानकारी आप आसानी से ले सकते है । गूगल पर अपनी समस्या डालते ही गूगल बाबा आपको उसका हल निकाल कर दे देते हैं। गूगल को मुख्यत सर्च इंजन के रूप में जाना जाता है लेकिन इसकी कई मुख्य सेवाएं जैसे जीमेल ,यूट्युब आदि हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गए है। गूगल की स्थापना 4 सितंबर 1998 में हुई थी और कुछ ही वर्षों में यह इंटरनेट का  पर्याय बन गया। प्रतिवर्ष गूगल पर 2095100000000 सर्च किये जाते है यानि कि प्रति सेकंड गूगल पर 60,000 से भी ज्यादा सर्च किये जाते है। आपकी हर समस्या का हल गूगल के पास होता है। आइए जानते है गूगल के बारे में कुछ एेसी बातें जो शायद ही आपको पता हो 

पहला ट्वीट
ट्विटर दुनिया में मार्च 2006 में आ गया था और अगले एक दो सालों में पूरी दुनिया में इसके बारे हलचल थी , लेकिन गूगल ने 26 फरवरी 2009 में पहला ट्वीट किया था। ये ट्वीट कंपनी का सिम्बोलिक था।  जिसको देखने पर आपको सिर्फ नम्बर ही समझ आएंगे।  जो लोग इसे पढ़कर अपना सिर खुजा रहे हैं। उन्हें बता दें ये बाइनरी कोड लैंग्वेज है। जिसका मतलब‘I’m feeling lucky’ है।



 

गूगल फाउंडर
लैरी पेज और सेर्गेई ब्रिन ने गूगल सर्च इंजन 1996 में पीएचडी करते हुए शुरू किया था। गूगल का बर्थडे 15 सितंबर है जन्म का साल है 1997। 15 सितम्बर को ही गूगल.कॉम डोमेन रजिस्टर करवाया गया था।

गूगोल से बना गूगल
पेज और ब्रिन ने सर्च इंजन की खोज के बाद इसका नाम ‘बैकरब’ दिया था, क्योंकि इस सर्च इंजन का काम साइट्स के बैकलिंक की जांच करना था।इसके बाद 1 से लेकर 100 जीरो तक बनाने पर इसका नाम गूगोल खोज गया था। गूगोल को गलत लिखने पर गूगल का जन्म हुआ। जिसके बाद गूगल के नाम से नई खोज शुरू हुई। 90 के दशक में गूगल एक नया शब्द था, लेकिन आज गूगल किसी के लिए नया नहीं है। सबसे पहले स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर गूगल का इस्तेमाल किया गया था।

इतना साफ सुथरा क्यों हैं गूगल का होमपेज 
गूगल का होमपेज काफी सीधा और साफ है, लेकिन इसके पीछे की कहानी बड़ी शानदार है।  गूगल के इंजीनियर दुनिया के समझदार इंजीनियर हो सकते हैं, लेकिन गूगल फाउंडर्स को एचटीएमएल की कोई खास समझ नहीं थी। वे एक त्वरित इंटरफेस बनाना चाहते थे, जो कि एचटीएमएल ज्ञान की कमी के कारण स्वच्छ इंटरफेस में बदल गया।

पहला गूगल-डूडल
सभी को गूगल डूडल की क्रिएटिविटी बेहद पसंद है। गूगल डूडल बनाने का आइडिया कहां से आया था। इसके पीछे भी काफी रोमांचक किस्सा है। ब्रिन और पेज हर साल ‘बर्निंग मेन फेस्टिवल’ देखने हर साल नेवेडा जाते हैं। जिस साल गूगल की खोज हुई दोनों नवेडा गए हुए थे। अपनी साइट के विजिटर्स को बताने के लिए उन्होंने गूगल के होम पेज पर ‘बर्निंग मेन डूडल’ लगा दिया था। जिससे उनके यूजर्स को पता लग जाए कि दोनों ऑफिस में नहीं है और किसी भी टेक्निकल प्रॉब्लम के लिए उन्हें इंतजार करना चाहिए। जो कि दोनों के ऑफिस से बाहर होने के बारे में बता रहा था। 

गूगलर्स और नूगलर्स
ज्यादातर लोगों को गूगल के हेडक्वार्टर के बारे में पता है। गूगल के हेडक्वार्टर को गूगलप्लेक्स और गूगल कर्मियों को गूगलर्स के नाम से जाना जाता है, लेकिन बहुत कम ही लोगों को पता है जो लोग पहली बार गूगल जॉइन करते हैं उन्हें नूगलर्स कहा जाता है। उन्हें एक नूगलर हैट भी पहनना पड़ता है। गूगल के पूर्व कर्मियों को एक्सूगलर कहा जाता है। 



 

आई एम फीलिंग लकी
गूगल के होम पेज पर आई एम फीलिंग लकी भी नजर आता है।इस पर शायद ही आप कभी गए हों,लेकिन आप जानकर दंग रह जाएंगे कि इस पेज से गूगल को हर साल 110 मिलियन डॉलर का नुकसान होता है। ब्रिन का कहना है कि इस  पर गूगल सर्च के मात्र 1 फीसदी यूजर ही आई एम फीलिंग लकी पर क्लिक करते हैं। बावजूद इसके इससे होने वाला नुकसान 110 मिलियन डॉलर है। यह आंकड़ा 2007 का है। 

मोबाइल में आई एम फीलिंग लकी नहीं आता
मोबाइल ब्राउजर से गूगल सर्च करने पर आपको आईएम फीलिंग लकी नहीं नजर आता। वहीं अगर गूगल क्रोम ब्राउजर में ऑटो सर्च में भी आपको ये ऑप्शन नहीं मिलेगा। गूगल धीरे धीरे इस ऑप्शन को हटा रहा है।

200 बकरियां करती है नौकरी
गूगल के दफ्तर में 200 बकरियां नौकरी करती हैं। गूगल अपने दफ्तर के लॉन में घास की कटाई के लिए कटाई मशीन का उपयोग नहीं करता क्योंकि इससे निकलने वाले धुंए और आवाज की वजह से दफ्तर में इनोवेशन के काम कर रहे कर्मचारियों को परेशानी होती है इसीलिए गूगल  ने लॉन की घास की सफाई के लिए बकरियों को लगाया है। इससे घास की ट्रिमिंग होती है और बकरियों का पेट भी भर जाता है।

2005 में गूगल ने Android कंपनी को खरीद लिया। एंड्रॉइड की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज स्मार्टफोन के करीब 80 फीसदी बाजार पर इसका कब्जा है, यानी हर पांच में से चार स्मार्टफोन एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम पर चल रहे हैं। हर दिन 15 लाख से ज्यादा लोग नया एंड्रॉएड डिवाइस खरीद रहे हैं।

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