अनूठा स्कूल : घर पर ही स्कूली शिक्षा की बनने लगी है पैठ
Monday, May 07, 2018 - 10:17 AM (IST)
नयी दिल्ली: रुचिर राजू - दीप्ति वैसे तो कभी स्कूल नहीं गए , लेकिन कभी उन्होंने अपनी कक्षाएं भी नहीं छोड़ीं। अहमदाबाद के रहने वाले 29 वर्षीय अब रुचिर एक डिजिटल मीडिया कंपनी चलाते हैं।
अभिभावक , शिक्षक और छात्र अक्सर स्कूलों में परीक्षाओं और अन्य दबाव को लेकर चिंतित रहते हैं। लेकिन कई लोग अब इस प्रणाली से धीरे-धीरे निकलने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि यह नन्हे कंधों पर बोझ है।
रुचिर अपने माता पिता के नाम को उपनाम में इस्तेमाल करते हैं। उनकी पढ़ाई - लिखाई घर पर ही हुई , जहां उन्होंने तमाम औपचारिक शिक्षाएं हासिल कीं। उन्होंने कहा , ‘‘ मैंने वही चीजें सीखीं , जिन्हें मैं सीखना चाहता था - जैसे विज्ञान और गणित , जिसे मैंने अलग अलग लोगों और स्रोतों से सीखा। मुझे कभी स्कूल या कॉलेज जाने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। ’’ रुचिर की कंपनी में 10 लोग काम करते हैं। उन्होंने सिर्फ इसलिए राष्ट्रीय खुला विद्यालय से 12 वीं की परीक्षा दी ताकि वह ऐसी परीक्षाओं का विचार जान सकें।
उन्होंने कहा , ‘‘ मैंने महसूस किया कि स्कूल जाना मानव की सहज प्रवृत्ति नहीं है। मानव विकास में यह एक नया चलन है। ’’ रुचिर अपने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ‘222.’के माध्यम से कई तरह के डिजिटल मीडिया समाधान उपलब्ध कराते हैं। रुचिर कोई एकलौते ऐसे उदाहरण नहीं है।ऐसे कई मां - बाप हैं जो अपने बच्चों को औपचारिक स्कूल प्रणाली में नहीं भेजते और घर पर ही उन्हें पढ़ाते हैं।
अहमदाबाद की ही रहने वाली सुमित्रा भी ऐसी ही अभिभावक हैं जो अपने दोनों बच्चों को घर पर रहकर पढ़ाना ठीक समझती हैं क्योंकि उनका मानना है कि स्कूल तय पाठ्यक्रम से हटकर बच्चे की पसंद - नापसंद पर ध्यान नहीं देते। बहरहाल विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे उदाहरणों की संख्या भले ही गिनी चुनी हो , लेकिन इस कदम को अब आधार जरूर मिल रहा है।
ऐसे ही एक मंच ‘ शिक्षांतर आंदोलन ’ से जुड़ीं सामाजिक कार्यकर्ता विधि जैन इस बात पर जोर देती हैं कि अभिभावक बहुत अधिक गृहकार्य , भारी बस्तों और स्कूल में दी जाने वाली सजा जैसे अनेक वजहों के चलते अपने बच्चों को घर पर ही पढ़ाने को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह मंच स्कूल संस्कृति में बदलाव के लिये आंदोलन चला रहा है। विधि कहती हैं कि स्कूल मूलत : प्रकृति , शारीरिक कार्य , परिवार , समुदाय , स्थानीय भाषा , हमारी समझ बूझ और वास्तविक दुनिया के मुद्दों से हमारा नाता तोड़ देते हैं।