राष्ट्रीयता की भावना राख में छिपी ङ्क्षचगारी की तरह है: सिन्हा

Tuesday, Aug 01, 2017 - 04:56 PM (IST)

नई दिल्ली : गोवा की राज्यपाल एवं हिन्दी की प्रसिद्ध लेखिका मृदुला सिन्हा ने कहा है कि राष्ट्रीयता की भावना राख में छिपी ङ्क्षचगारी की तरह होती है और जब राष्ट्र पर कोई विपत्ति आती है तो वह चिंगारी भड़क कर आग बन जाती है । श्रीमती सिन्हा ने आज यहां राष्ट्रीय पुस्तक न्यास(एनबीटी) की स्थापना के 60 वर्ष पूरे होने के मौके पर‘साहित्य में राष्ट्रीयता के बोध’विषय पर आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए यह बात कही। संगोष्ठी का उद्घाटन मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने अपने वीडियो सन्देश के जरिये किया। पचपन पुस्तकों की लेखिका श्रीमती सिन्हा ने कहा कि लोगों में राष्ट्रीय भावना गीतों और मन्त्रों आदि के रूप में निहित है और यह राख में छिपी चिंगारी की तरह होती है तथा समय आने पर भड़क उठती है । उन्होंने भारत चीन युद्ध का जिक्र करते हुए बताया कि किस तरह लोगों ने देश के लिए गहनों को दान कर दिया था। 


उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि पाकिस्तान जब हमारे खिलाफ कोई कार्रवाई करता है तो सोशल मीडिया पर बहुत प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं लेकिन कितने लोग इस पर कवितायें लिखते हैं। उन्होंने जीवन और समाज में पुस्तकों के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि जिस तरह वृक्ष हमारे मित्र,पुत्र और गुरु होते हैं उसी तरह किताबें भी हमारी मित्र होती हैं और वो पूजनीय भी होती हैं,इतना ही नहीं वो हमारी संतान की तरह होती हैं। उन्होंने बताया कि 1959 में उनकी शादी के समय किताबों की एक पेटी देकर उनकी विदाई की गयी थी । इससे पहले श्री जावड़ेकर ने अपने वीडियो सन्देश में कहा कि देश में अमेरिका और ब्रिटेन के बाद दुनिया में अंग्रेजी की सबसे अधिक किताबें छपती हैं । इसके अलावा भारतीय भाषाओं में भी किताबें छपती हैं और शिक्षा के बढऩे से किताबों का प्रकाशन और बढेगा।


उन्होंने कहा कि डिजिटल पुस्तक के दौर में साठ लाख किताबें मोबाइल पर उपलब्ध हैं और अभी ऑडियो पुस्तक की भी काफी संभावनाएं हैं लेकिन छपी किताबों का इससे महत्त्व कम नहीं होगा और ये दोनों साथ साथ चलेंगे । उन्होंने एन बी टी को तीन साल साल की अग्रिम कार्य योजना बनाने, सात साल की रणनीति बनाने और 15 साल के विकान तैयार करने का सुझाव दिया। संगोष्ठी में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विचारक कृष्ण गोपाल जी और केन्द्रीय विश्विद्यालय धर्मशाला के कुलपति डॉ कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री ने राष्ट्र की अवधारणा पर विचार करते हुए भारतीय राष्ट्र को समावेशी बताया। उनका कहना था कि भारतीय राष्ट्र एक भाव है और इसी भाव से पूरा देश एक दूसरे से जुड़ा है भले ही सबकी भाषाएं और संस्कृतियाँ अलग हैं। श्री गोपाल जी ने कहा कि भारत पश्चिम के देशों से अलग है और उसका जन्म संघर्ष से नहीं हुआ था ,वह तो शरीर में आत्मा की तरह है।  संगोष्ठी में श्रीमती सिन्हा की बिहार के लोकजीवन पर लिखी पुस्तक का विमोचन भी हुआ । इसके अलावा श्यामा प्रसाद मुखर्जी, प्राचीन भारत में भौतिकी और वासुदेव शरण अग्रवाल की पुस्तक का भी विमोचन हुआ ।  
 

Advertising