मध्यप्रदेश चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग का सहारा
Monday, Oct 15, 2018 - 08:46 AM (IST)
इंदौरःअनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में संशोधनों के बाद मध्यप्रदेश में 28 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के समीकरण बदल गए हैं। इस मुद्दे पर अनारक्षित वर्ग के सिलसिलेवार विरोध प्रदर्शन जारी हैं। जातिगत गोलबंदी के मद्देनजर जानकारों का मानना है कि सियासी दलों को अलग-अलग समुदायों को साधने के लिए चुनावी टिकट वितरण से लेकर प्रचार अभियान तक में सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लेना पड़ सकता है।
जानकारों के मुताबिक, ग्वालियर-चम्बल इलाके, विंध्य क्षेत्र और मालवा-निमाड़ अंचल में जातीय समीकरण चुनाव परिणामों को काफी हद तक प्रभावित कर सकते हैं। सम्बद्ध कानूनी बदलावों के खिलाफ पिछले दिनों इन इलाकों में बड़े विरोध प्रदर्शन देखे गए हैं। जातिगत गोलबंदी के चुनावी खतरे का सत्तारूढ़ भाजपा को भी बखूबी अहसास है जो सूबे में लगातार चौथी बार विधानसभा चुनाव जीतने के लिये एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है।
भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों में शामिल पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा ने कहा, सबका साथ, सबका विकास के नारे के मुताबिक, सामाजिक समरसता के लिए हम पहले ही काम रहे हैं और तमाम तबकों का हित चाहते हैं। अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में संशोधनों को लेकर अनारक्षित समुदाय के आक्रोश के बारे में पूछे जाने पर झा ने संतुलित टिप्पणी की, लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी सबको है।
प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय के लिए आरक्षित हैं, जबकि 35 सीटों पर अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग को आरक्षण प्राप्त है। यानी सामान्य सीटों की तादाद 148 है। इस बीच, अनारक्षित समुदाय और आदिवासी वर्ग के दो नये संगठनों के मैदान में उतरने के कारण जातिगत वोटों के बंटवारे की चुनावी जंग और भीषण होती नजर आ रही है। इन संगठनों में शामिल सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण समाज संस्था (सपाक्स) ने सूबे की सभी 230 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है। इसके साथ ही, समाज के सभी तबकों के लोगों को शिक्षा संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाए।