14 साल का मुस्लिम लड़का बना इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर

punjabkesari.in Sunday, Sep 24, 2017 - 01:44 PM (IST)

नई दिल्ली : आमतौर पर इस उम्र के बच्चे पढ़ने के लिए स्कूल जाते है और इसके अलावा खाली समय में इनको गलियों या ग्राउंड में खेलते देखना आम बात है ,लेकिन किसी 14 साल के बच्चे को यूनिवर्सिटी जाते देखना और वहां जाकर अपने से बडे़ बच्चों की क्लास लेना कुछ खास होने की कहानी बयां करता है। जी हां एेसा ही कुछ हो रहा है इंग्लैंड की लेस्टर यूनिवर्सिटी  में जहां ईरानी मूल का 14 साल का मुस्लिम किशोर यूनिवर्सिटी में गणित का प्रोफेसर बन बच्चों की क्लास ले रहा है। 

इस मुस्लिम किशोर का नाम है याशा एस्ले, जो लेस्टर यूनिवर्सिटी में बतौर अतिथि शिक्षक के रूप में चयनित हुआ है। इतना ही नहीं वह इस यूनिवर्सिटी में छात्रों को पढ़ाने के साथ-साथ यहां से अपनी डिग्री भी ले रहा है। यूनिवर्सिटी ने उसकी इस काबिलियत को देखते हुए उसे सबसे कम उम्र के छात्र और सबसे कम उम्र के प्रफेसर का उपनाम दिया है। याशा के पिता मूसा एस्ले उसकी इस काबिलियत पर गर्व करते हैं और रोजाना उसे अपनी कार से छोड़ने यूनिवर्सिटी जाते हैं। याशा की गणित में बहुत रुचि है, गणित में अविश्वसनीय ज्ञान को देखते हुए उसके अभिभावकों ने उसे मानव कैलकुलेटर नाम दे रखा है। 

अतिथि शिक्षक के रूप में किया नियुक्त
याशा अपनी डिग्री कोर्स खत्म करने के करीब हैं और जल्द ही पीएचडी शुरू करने वाले हैं। याशा कहते हैं कि उन्होंने 13 साल की उम्र में यूनिवर्सिटी से इस बारे में संपर्क किया था। यूनिवर्सिटी ने उनकी कम उम्र को देख सवाल किए लेकिन जब जवाब उम्मीदों से आगे मिले तो गणित पैनल उनके ज्ञान को देखकर अंचभित हो गया, जिसके बाद यूनिवर्सिटी ने याशा को अतिथि शिक्षक के रूप में नियुक्त किया। 

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मानव संसाधन विकास विभाग से ली अनुमति
यूनिवर्सिटी को ईरानी मूल के याशा को अतिथि शिक्षक का पद देने के लिए मानव संसाधन विकास विभाग से विशेष अनुमति लेनी पड़ी। यूनिवर्सिटी ने जब यह अनुमति लेस्टर परिषद के सामने रखी तो परीषद को यकीन ही नहीं हुआ कि 14 साल के किसी बालक के पास इतना ज्ञान हो सकता है और वह क्लास में खड़ा होकर अपने से अधिक उम्र के बच्चों को पढ़ा सकता है लेकिन जब परिषद के अधिकारी याशा से मिले तो आश्चर्यचकित रह गए। 

यूनिवर्सिटी में नौकरी मिलने के बाद याशा एस्ले ने कहा कि यह साल मेरे जीवन का सबसे अच्छा साल है। याशा ने कहा, 'मुझे नौकरी मिलने से ज्यादा अच्छा यह लगता है कि मैं दूसरे छात्रों की मदद करूं और उनके ज्ञान को बढ़ाने में मदद करूं।' इतनी कम उम्र में याशा ने दुनिया के सामने एक नजीर पेश की है कि किसी के पास ज्ञान, दूसरों की मदद और आगे बढ़ने की लालसा हो तो दुनिया उसका साथ देने में पीछे नहीं हटती।


 


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