HRD मिनिस्टर के पास पहुंचा नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट, स्कूलों को फीस तय करने की मिली छूट

Saturday, Jun 01, 2019 - 10:11 AM (IST)

नई दिल्ली: नए एचआरडी मिनिस्टर रमेश पोखरियाल निशंक के पद संभालने के कुछ देर बाद ही नई एजुकेशन पॉलिसी बना रही कमिटी ने इसका ड्राफ्ट सौंपा। बता दें कि मानव संसाधन मंत्रालय के विशेषज्ञों की कमेटी ने सेमेस्टर सिस्टम की तर्ज पर बोर्ड परीक्षाएं भी साल में दो बार आयोजित करने की सिफारिश की है। इस पॉलिसी का इंतजार करीब दो साल से हो रहा था और आखिरकार यह तैयार होकर मंत्रालय में आ गई है। पॉलिसी में सबसे ज्यादा फोकस भारतीय भाषाओं पर किया गया है।

नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट
- इस ड्राफ्ट में बताया गया है कि 10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षा में बच्चों में तनाव कम करना चाहिए। छात्रों को बोर्ड परीक्षा में विषयों को दोहराने की अनुमति देने के लिए एक नीति बनाने को कहा गया है।

- जब परीक्षा सेमेस्टर में हो तो, इसके तहत छात्र को जिस सेमेस्टर में लगता है कि वह परीक्षा देने के लिए तैयार है, उस समय उसकी परीक्षा ली जानी चाहिए। बाद में अगर उसे लगता है कि वह और बेहतर कर सकता है तो उसे परीक्षा देने का एक और विकल्प देना चाहिए।

- कंप्यूटर व तकनीक के जमाने में कंप्यूटर आधारित परीक्षा और पाठ्यक्रम कौशल विकास पर आधारित हो। इससे कंप्यूटर तकनीकी में छात्रों का रुझाव बढ़ेगा और कंप्यूटर में और ज्यादा विकास होगा।
 

भारतीय भाषाएं सीखें

  • नई शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं पर जोर देने की बात कही गई है। बच्चों को प्री-प्राइमरी से लेकर कम से कम पांचवीं तक और वैसे आठवीं तक मातृभाषा में ही पढ़ाना चाहिए।
  • प्री-स्कूल और पहली क्लास में बच्चों को तीन भारतीय भाषाओं के बारे में भी पढ़ाना चाहिए जिसमें वह इन्हें बोलना सीखें और इनकी स्क्रिप्ट पहचाने और पढ़ें। तीसरी क्लास तक मातृभाषा में ही लिखें और उसके बाद दो और भारतीय भाषाएं लिखना भी शुरू करें।
  • अगर कोई विदेशी भाषा भी पढ़ना और लिखना चाहे तो यह इन तीन भारतीय भाषाओं के अलावा चौथी भाषा के तौर पर पढ़ाई जाए। अंग्रेजी के साथ भारतीय भाषाओं व संस्कृत या लिबरल आर्ट्स को बढ़ावा देने पर जोर दिया है।

निजी स्कूलों को हो फीस तय करने की मिली आजादी
नई एजुकेशन पॉलिसी के मुताबिक अब से स्कूलों को फीस तय करने की छूट होनी चाहिए लेकिन वह एक तय लिमिट तक ही फीस बढ़ा सकते हैं। इसके लिए महंगाई दर और दूसरे फैक्टर देख यह तय करना होगा कि वह कितने पर्सेंट तक फीस बढ़ा सकते हैं। हर तीन साल में राज्यों की स्कूल रेग्युलेटरी अथॉरिटी देखेगी कि इसमें क्या-क्या बदलाव करने हैं। फीस तय करने को लेकर राष्ट्रीय बाल आयोग भी पहले गाइडलाइन बना चुका है।

तीन और चार साल की डिग्री की सिफारिश
पैनल ने स्नातक प्रोग्राम में तीन और चार वर्षीय डिग्री का सुझाव दिया है। चार वर्षीय डिग्री प्रोग्राम में पढ़ाई करने के बाद छात्र एक साल में सीधे मास्टर डिग्री कर सकता है। एमफिल प्रोग्राम को खत्म करने की सिफारिश की गई है। लिबरल एजुकेशन इंस्टीट्यूशन के तहत बैचलर ऑफ लिबरल आर्ट्स, बैचलर ऑफ लिबरल एजुकेशन डिग्री विद रिसर्च शुरू करने का सुझाव दिया है।

 

Riya bawa

Advertising