शिक्षक पीछे हट, देश आगे बढ़

punjabkesari.in Friday, Feb 19, 2021 - 11:19 AM (IST)

नेशनल डेस्क: यह शीर्षक अपने आप में ही शिक्षकों की स्थिति के बारे में काफी कुछ कहता है। हम अपने देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं,लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कड़ी को पीछे छोड़कर। पहले भारत अपने शिक्षकों के सम्मान में दुनिया में 8 वें स्थान पर था, लेकिन धीरे-धीरे यह स्थिति दिन-ब-दिन दूर होती जा रही है। एक मशहूर कहावत है -शिक्षण एक ऐसा व्यवसाय है जो अन्य व्यवसायों का निर्माण करता है। अगर आज आप यह कॉलम पढ़ पा रहे हैं। सही और गलत का फर्क कर पा रहे हैं,अपनी आजीविका ईमानदारी से चला रहे हैं, और अगर आप एक अच्छे समाज में सांस ले रहे हैं, तो उसका सारा श्रेय शिक्षक वर्ग को ही जाता है।किसी भी सभ्य व समृद्ध समाज की शिक्षकों के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती। फिर इतना महत्वपूर्ण होने पर भी शिक्षकों का वर्तमान अंधकारमय क्यों है? क्या आपको नहीं लगता कि इसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैं?

कभी समय था जब भारत को गुरुओं की भूमि माना जाता था, जहां गुरु को सदैव सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। जहां एकलव्य जैसे छात्र ने गुरु दक्षिणा में अपने गुरु को अंगूठा काट कर दे दिया । परंतु अफसोस अब छात्र शिक्षकों को अंगूठा काटकर देने की बजाय अंगूठा दिखाते हैं और सिर्फ छात्र ही नहीं, हमारी शिक्षा और राजनीतिक प्रणाली भी शिक्षकों को अंगूठा दिखाती है। आज भारत में कोई भी व्यक्ति शिक्षक नहीं बनना चाहता है। शिक्षण सबसे अंतिम विकल्प होता है यानी कुछ और ना बन सके तब शिक्षक बनने पर गौर किया जाता है। इसका सबसे बड़ा कारण कम वेतन ही नहीं, अपितु शिक्षक के सम्मान में आई गिरावट और उस पर समाज और सरकार की उम्मीदों का जरूरत से ज्यादा बोझ भी है। सरकारी स्कूलों में काम करने वाले शिक्षकों को सरकार द्वारा गैर-शैक्षणिक कार्य आवंटित किए जाते हैं। और वे छात्रों को पढ़ाने के लिए अपनी प्राथमिक नौकरी को छोड़कर ऐसे काम करने के लिए बाध्य हैं। एक शिक्षक की नियुक्ति पूरी तरह से शैक्षणिक कार्यों के लिए ही होनी चाहिए।

एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, शिक्षकों को भुगतान करने के मामले में भारत 35 देशों में से 26 वें स्थान पर रहा है। अगर हम दूसरे देशों के साथ तुलना करें तो आंकड़े यह कहते हैं कि यूनाइटेड किंगडम में स्कूली शिक्षकों को करीब 24 लाख रुपए प्रति वर्ष मिलते हैं जबकि दक्षिण कोरिया, अमेरिका, जापान, जर्मनी में करीबन उन्नतीस लाख रुपये प्रति वर्ष व सिंगापुर में शिक्षकों को लगभग 3000000 रुपये प्रतिवर्ष वेतन मिलता है। हमारे यहां शिक्षक ना केवल  कम वेतन में पढ़ाता है बल्कि इसके साथ-साथ और भी कई तरह के कर्तव्य निभाता है,और उसके साथ ही उम्मीद का एक जबरदस्त बोझ भी ढोता है। 

भारत के शिक्षा नीति पर भी मुझे आपत्ति है, जहां सिर्फ बच्चा ही शिक्षा का केंद्र होना चाहिए। परंतु मेरी दृष्टि में शिक्षा की प्रक्रिया में बच्चे और शिक्षक दोनों की महत्वता बराबर है। एक की उपेक्षा दूसरे का नुकसान है। इसलिए बच्चे व शिक्षक दोनों को मनोविज्ञान के संदर्भ में गहराई से देखना अत्यंत आवश्यक है। हमें शिक्षा पद्धति रूपी पेड़ की शाखाओं व फल की तरफ ध्यान ना देकर उसकी जड़ पर ध्यान केंद्रित होना होगा। उस जड़ को सींचना होगा, उसे मजबूत बनाना होगा। शिक्षा पद्धति की जड़, यानी शिक्षक को मजबूत बनाना होगा। मैं यह नहीं कहती कि शिक्षक की चुनावी प्रक्रिया आसान होनी चाहिए। अपितु यह चुनावी प्रक्रिया भी बाकी व्यवसायों की तरह सख्त होनी चाहिए। लेकिन वेतन भी फिर अन्य व्यवसायों के बराबर होना चाहिए। तभी हमारी आने वाली पीढ़ी इस व्यवसाय को चुनेगी।अन्यथा जड़ कमजोर होने से पेड़ पर कभी भी मीठे फल नहीं लगेंगे। यही समय है शिक्षक को उसका उचित स्थान और सम्मान इस समाज में दिलाने का। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Anil dev

Recommended News

Related News