भारत में 158 साल पुराना है आयकर का इतिहास : शक्ति सिंह

Monday, Jul 23, 2018 - 04:32 PM (IST)

करनाल: भारत में 158 साल पुराने आयकर के इतिहास की जानकारी देते हुए अखिलभारतीय कर व्यवसायी संघ के सदस्य एवं करनाल के वरिष्ठ अधिवक्ता शक्ति सिंह ने बताया कि देश में 24 जुलाई 1860 में सबसे पहले एक शुल्क के तौर पर आयकर की शुरूआत हुई थी, जब भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल की परिषद में वित सदस्य सर जेम्स विल्सन ने आयकर कानून लागू किया। यह कर धनवानों, रजवाडों और देश में रहने वाले ब्रिटेन के नागरिकों पर लगाया गया था। पहले साल आयकर से सरकारी खजाने को 30 लाख रूप्ये मिले थे। ताकतवर लोगों को यह कानून पसंद नहीं था इसलिए 1865 में यह निरस्त कर दिया। 1867 में कुछ बदलावों के साथ इसे फिर से पेश किया गया। कर की दरें फौरी आकलन के आधार पर तय की जाती थी। ब्रिटेन और रूस युद्ध के समय अतिरिक्त संसाधन की जरूरत पडी। तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड डुफ्रिन ने नया आयकर कानून 1886 पेश किया। आधुनिक भारत का यह पहला व्यापक आयकर कानून था। इससे 1886-87 में 1.36 करोड रूप्ये की राजस्व वसूली हुई। वर्ष 1914-15 में 3.32 लाख आयकरदाता थे और कर वसूली 3.05 करोड रूप्ये रही। पहले विश्वयुद्ध के बाद धन की तंगी को देखते हुए 1916 में पहली बार कर की अलग-अलग दरें तय की गई। वर्ष 1917में
 युद्धप्रयासों के चलते ‘सुपरटैक्स‘ लगाया गया। वर्ष 1918-19 में आयकर वसूली 11 करोड रूप्ये रही।
 
 शक्ति सिंह एडवोकेट ने बताया कि असहयोग आंदोलन के समय पहली बार वर्ष 1922 में व्यापक आधार वाला आयकर कानून 1922 बनाया गया, इसी समय आयकर विभाग की विकास की कहानी शुरू हुई। वर्ष 1924 में केन्द्रीय राजस्व बोर्ड के हाथों कर प्रशासन दिया गया। 25 अप्रैल 1941 को आयकर अपीलीय न्याययधिकरनण अस्तित्व में आया। वर्ष 1939-40 में कुल आयकर वसूली 19.82 करोड रूप्ये रही थी। सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक दूसरे विश्व युद्ध और बढते कर बोझ के चलते कर चोरी बढने लगी, जिसके परिणाम स्वरूप वर्ष 1943 में विशेष जांच शाखाएं स्थापित की गई। 1945 में पहली बार आयकर अधिकारियों की सीधी भर्ती की गई। इसके लिए भारतीय लेखा और लेखापरिक्षक की परीक्षा रखी गई। बाद में इसे ही भारतीय राजस्व सेवा आईआरएस का नाम दिया गया। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पुनर्निर्माण और सामाजिक कल्याण के लिए राजस्व बढाने की जरूरत महसूस हुई और 1922 के आयकर कानून को ही सभी राज्यों में लागू किया गया। 1945-46 में आयकर वसूली बढकर 57.12 करोड रूप्ये थी। आजादी के बाद 1953 में भू-शुल्क अधिनियम अस्तित्व में आया। कैब्रिज के अर्थशास्त्री प्रो. निकोलस काल्डोर की सिफारिशों के आधार पर भारत सरकार ने संपति कर अधिनियम 1957, व्यय कर अधिनियम 1957 और उपहार कर अधिनियम 1958 पारित कराए। 1958 मेही नये आयकर अधिनियम पर कानून आयोग की रिपोर्ट सौंपी गई और इसी दौरान 1958 में प्रत्यक्ष कर प्रशासन जांच समिति भी स्थापित की गई। विधि आयोग और जांच समिति की सिफारिशों के आधार पर आयकर अधिनियम 1961 पारित किया गया जो पहली अप्रैल 1962 से प्रभावी होकर आज तक लागू है। इसमें करीब पांच हजार से अधिक संशोधन हो चुके हैं, जिससे इसका असल प्रारूप ही बिगड चुका है।1960-61 में प्रत्यक्ष कर वसूली 287.47 करोड रूप्ये थी। 1963 में केन्द्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम के जरिये केन्द्रीय राजस्व बोर्ड के स्थान पर दो अलग अलग केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड सीबीडीटी और केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड सीबीईसी बना दिए गए थे।
 
वित वर्ष 2010-11 में प्रत्यक्ष कर वसूली 446070 करोड रूप्ये तक पहुंच गई थी। कुल कर वसूली में अब प्रत्यक्ष करों का हिस्सा करीब 50 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। 2010 में पहला आयकर दिवस मनाया गया। इस अवसर पर भारत की राजधानी में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था जिसका उदघाटन तत्कालीन वित मंत्री प्रणब मुखर्जी ने किया था। वित वर्ष 2017-18 में कुल 67474904 आईटीआर दाखिल हुई।
 
सरकार ने अब नयी आवश्यकताओं को देखते हुए एक नया कर बनाने का निर्णय किया है और इसके लिए प्रत्यक्ष कर संहिता डीटीसी विधेयक संसद में पेश कर दिया गया है और इस पर स्थायी समिति विचार कर रही है।
 


 बाक्स-1
 
> एक अप्रैल से 30 जून, 2018 तक दाखिल आईटीआर का विवरण
 
> 1. महाराष्टर 1212780
 
> 2. गुजरात 959887
 
> 3. तमिलनाडू 631467
 
> 4. पश्चिम बंगाल 558839
 
> 5. उतर प्रदेश 558063

> 6. पंजाब 439154

> 7. राजस्थान 431791

> 8. दिल्ली 301258
 
> 9. आंध्रप्रदेश 298256

> 10. हरियाणा 277133

> मिजोरम 538
 
> कुल दाखिल रिटर्न 7724983
 

> प्रस्तुतिः शक्ति सिंह एडवोकेट, चैम्बर नं. 9, लाॅयर्स चैम्बर काॅम्पलैक्स,  करनाल।
 

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