शिक्षा क्षेत्र में सुधार का रास्ता गांव के प्राथमिक स्कूलों से होकर निकलता है : प्रो. जे एस राजपूत
Sunday, Jul 01, 2018 - 05:03 PM (IST)
नई दिल्ली : जाने माने शिक्षाविद एवं एनसीईआरटी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. जे एस राजपूत का कहना है कि राज्यों की सरकारें अपने सरकारी स्कूलों को समयबद्ध रूप से नवोदय विद्यालय और केंद्रीय विद्यालय के स्तर तक ले आएं, तो इससे बड़ा सुधार कोई और नहीं हो सकता है। यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड में भारत के प्रतिनिधि प्रो. राजपूत ने कहा,‘‘शिक्षा क्षेत्र में सुधार का रास्ता गांव के प्राथमिक स्कूलों से होकर निकलता है। जितने भी देशों ने तरक्की की है, उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पर विशेष रूप से ध्यान दिया। ’’उन्होंने कहा कि कुछ विकासशील देशों ने पश्चिमी देशों के विकास मॉडल की नकल कर अपनी व्यवस्था को नष्ट होने की कगार पर पहुंचाया । इसे ध्यान में रखने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा नीति में परिवर्तन के समय मुख्य रूप से भौतिक संसाधनों की कमी, अध्यापकों की कम संख्या, एक लचर व्यवस्था, शैक्षिक नेतृत्व का अभाव इत्यादि को लेकर चर्चा होती है । इसमें अध्यापक और विद्यार्थी के संबंधों पर गहन विचार-विमर्श कम ही हो पाता है जबकि यही नैतिकता का आधार बनता है। प्रो. राजपूत ने कहा कि हमारी शिक्षा व्यवस्था उत्साह, उद्यमिता और नवाचार पर अधिक ध्यान न पहले देती थी और न अब दे पा रही है। नीति निर्धारक भी अक्सर निरंतरता को बनाए रखने को ही अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं । इसमें बदलाव के लिए स्कूलों और अध्यापकों में उत्साहवर्धक वातावरण बनाना आवश्यक होगा ।
उन्होंने सवाल किया कि क्या केवल चार-छह नियमित अध्यापकों से कोई उच्च शिक्षा संस्थान अपनी प्रतिष्ठा स्थापित कर सकता है ? भावी पीढ़ी का यह नैर्सिगक अधिकार है कि उसे उचित स्तर पर ज्ञान और कौशल मिल सके ताकि उनकी सर्जनात्मकता और प्रतिभा विस्तार पा सके। एनसीईआरटी के पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि सुधार के प्रयासों में सफलता के लिए वास्तविकता को स्वीकार करना होगा। सबसे पहले सरकारें यह समझें कि शिक्षा में किया गया निवेश ही सर्वाधिक लाभांश देता है।
प्रो. राजपूत ने कहा कि यदि शोध और कौशल विकास के लिए अध्यापक नहीं होंगे, प्रयोगशालाएं संसाधन-विहीन होंगी, उनका नवीनीकरण नहीं किया जाएगा तो स्तरीय बौद्धिक कार्य कैसे हो सकेगा ? संस्थाओं की साख स्थापित करने के लिए नियुक्तियों में केवल प्रतिभा और योग्यता को पारर्दिशता के साथ अपनाना होगा। इसकी अनदेखी के परिणाम अब सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि 20वीं सदी परिवर्तन की सदी थी, तो 21वीं सदी च्च्परिवर्तन की गति की सदी’’ बनकर आयी है ।