आर्ट्स पढ़ने वाले नालायक,ये कहकर न करें Demotivate

Friday, Jun 29, 2018 - 02:55 PM (IST)

जालंधरः 10वीं पास की नहीं कि शुरु हो जाता है एक विषय को चुनने का चलन। पेरेंट्स परेशान बच्चे परेशान कारण दोनों की सोच मैच नहीं करती। कारण शिक्षा में विषयों को कर्म में बांटना है। कॉमर्स,मैडीकल,नॉन मैडीकल विषयों को लेकर सभी पेरेंट्स चाहते हैं कि उनके बच्चे इन विषयों को चुनें कयोंकि सोसायटी में वे यह नहीं सुनना चाहते कि उनका बच्चा आर्ट्स पढ़ रहा है। लोग बच्चे के इंटरेस्ट को नहीं देखते कि उनका बच्चा क्या पढ़ना चाहता है बस अपनी मर्जी उनपर थोपना चाहते हैं जिसके नतीजे आगे चलक उनके सामने आते भी हैं इसके बावजूद में बच्चों की बात नहीं सुनते।

 
पता नहीं क्यों लोगों ने इसमें में भी भेदभाव करना शुरू कर दिया है। यहां तक कि कुछ अध्यापक भी यह मानने लगे हैं कि आर्टस वाले बच्चे अच्छी तरक्की नहीं कर सकते। विज्ञान ज्यादा तरक्की का साधन है। नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। कई मुल्कों में विज्ञान से बेहतर ग्रामर शिक्षा मानी जाती है, भाव भारत में जिसे आर्टस कहा जाता है,वह अन्य देशों में बेहतर अंकों से दाखिला लेते हैं। फिर हमारे मुल्क में इस तरह की सोच आखिरकार क्यों है? क्यों कई टीचर आर्टस या कामर्स के विद्यार्थियों को कम लायक समझते हैं? क्या यह सोच कभी मिटेगी?

 
वास्तव में यह हमारी गलत सोच का ही नतीजा है जो हमने विषयों को कर्म में बांट दिया है। नहीं तो कोई विषय बेकार नहीं है, न ही ऐसा है कि आर्ट वाले तरक्की नहीं कर सकते या कम योग्यता वाले विद्यार्थी ही आर्टस  लेते हैं। जिसकी जिस विषय में रुचि हो, वह वही क्षेत्र चुने। अब मसला यह है कि इस किस्म की सोच से पिछा किस तरह छुडाया जाए। इस कार्य के लिए हमें विद्यार्थियों की रुचि बारे विश्लेषण करनी पड़ेगी। उनके इंटरेस्ट को ध्यान के साथ पढ़ना पड़ेगा। इसके साथ उस विद्यार्थी ही नहीं, उस के परिवार और मुल्क का सही विकास होगा। कई बार देखा है कि विज्ञान वाले विद्यार्थी आर्टस वाले विद्यार्थियों को टेढ़ी नजर के साथ देखते हैं। यह ठीक नहीं। यह सोच बदलनी चाहिए। बच्चे वही विषय चुने जिस में उन की रुचि हो। वह मां बाप, अध्यापकों या किसी रोज़गार अफ़सर के भाषण के आधार पर फैसला न करें। जो भी पेशा या कॅरियर आप इख्तियार करना है, वह खुद चुनें ।  

Sonia Goswami

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