इस फील्ड में करियर बना हर महीने कमा सकते हैं 1 लाख रुपये

Friday, Jan 20, 2017 - 03:12 PM (IST)

नई दिल्ली : तेज गति से बढ़ोतरी के बावजूद भारत में अच्छे क्लीनिकल प्रैक्टिस वाले प्रशिक्षित इन्वेस्टिगेटर्स, बायो-एनालिटिकल साइंटिस्ट और फार्माकोकाइनेटिक्स की काफी कमी है। इसके अलावा आप रिसर्च एग्जीक्यूटिव, क्लीनिकल रिसर्च एडवाइजर, प्रोजेक्ट मैनेजर, ग्रुप प्रोजेक्ट मैनेजर और आपरेशन डायरेक्टर के रूप में भी बेहतर रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। अपनी क्वालिफिकेशन के आधार पर आप इस क्षेत्र में कैरियर बना सकते हैं। क्लीनिकल रिसर्च एक ऐसा प्रोसेस है, जिसके माध्यम से तमाम नई दवाओं को बाजार में लांच करने से पहले उन्हें जानवरों और इनसानों पर टेस्ट किया जाता है। मोटे तौर पर किसी दवा को लैब से केमिस्ट की शॉप तक पहुंचने में 12 साल का वक्त लग जाता है।

जानवरों पर प्री-क्लीनिकल टेस्ट करने के बाद इन दवाओं को इंसानों पर टेस्ट किया जाता है, जिसके तीन फेज होते हैं। टेस्टिंग के लिए इन तीनों फेजों में पहले के मुकाबले ज्यादा संख्या में लोगों को शामिल किया जाता है। इन तीनों फेजों का टेस्ट हो जाने के बाद कंपनी सभी नतीजों को एफडीए या टीपीडी को सौंप देती है, जिसके आधार पर एनडीए (न्यू ड्रग अप्रूवल) मिलता होता है। एक बार एनडीए हासिल हो जाने के बाद कंपनी उस ड्रग को मार्केट में उतार सकती है। जब कोई नई दवा लांच करने की तैयारी होती है, तो दवा लोगों के लिए कितनी सुरक्षित और असरदार है, इसके लिए क्लीनिकल ट्रायल होता है। भारत की जनसंख्या और यहां उपलब्ध सस्ते प्रोफेशनल की वजह से क्लीनिकल का कारोबार तेजी से फलने-फूलने लगा है। यदि आप भी इस बढ़ते हुए बाजार का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो क्लीनिकल ट्रायल या क्लीनिकल रिसर्च से जुड़े कोर्स कर सकते हैं। भारत में क्लीनिकल ट्रायल इंडस्ट्री करीब 30 करोड़ डॉलर की है और वर्ष 2011 तक बढ़ कर यह इंडस्ट्री दो अरब डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। गौरतलब है कि दुनिया की प्रमुख दवा कंपनियां अब क्लीनिकल रिसर्च संबंधी जरूरतों के लिए भारतीय बाजार की ओर रुख कर रही हैं। 
                                                      
योग्यता   

क्लीनिकल रिसर्च के कोर्स में एंट्री के लिए विज्ञान में स्नातक होना जरूरी है। इसके अलावा, डी.फार्मा, बी.फार्मा, एम.फार्मा आदि के स्टूडेंट्स भी इस कोर्स में प्रवेश ले सकते हैं। कई प्रतिष्ठित संस्थानों से क्लीनिकल रिसर्च में डिप्लोमा, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा आदि किया जा सकता है।

कोर्सेज 
भारत में क्लीनिकल रिसर्च के क्षेत्र में बेहतर संभावनाएं हैं। जो छात्र इस क्षेत्र में कैरियर बनाना चाहते हैं, उनके लिए यह एक आकर्षक कैरियर विकल्प है। भारत में कई संस्थानों द्वारा क्लीनिकल रिसर्च से संबंधित कोर्स करवाए जाते हैं। क्लीनिकल रिसर्च के अंतर्गत आप एडवांस प्रोग्राम इन क्लीनिकल रिसर्च, डिप्लोमा इन क्लीनिकल रिसर्च, बीएससी इन क्लीनिकल लेबोरेटरी टेक्नोलाजी, बीएससी इन क्लीनिकल माइक्रोबायोलाजी, सर्टिफिकेट प्रोग्राम इन क्लीनिकल रिसर्च, इंटिग्रेटेड पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन क्लीनिकल रिसर्च, एमएससी इन क्लीनिक माइक्रोबायोलाजी, पीएचडी इन क्लीनिकल रिसर्च, कारेसपोंडेंट कोर्स इन क्लीनिकल रिसर्च, डिस्टेंस लर्निंग प्रोग्राम इन क्लीनिकल रिसर्च, प्रोफेशनल डिप्लोमा इन क्लीनिकल रिसर्च और बैचलर डिग्री इन क्लीनिकल रिसर्च आदि कोर्स कर सकते हैं।

रोजगार की संभावनाएं 
टेलेंटेड लोगों का एक बड़ा पूल और तमाम तरह के मरीजों की बढ़ती संख्या के चलते भारत में क्लीनिकल रिसर्च के क्षेत्र में अवसर तेजी से बढ़ रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर में क्लीनिकल रिसर्च के क्षेत्र में करीब अढ़ाई लाख से ज्यादा पद खाली हैं। वहीं योजना आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में क्लीनिकल रिसर्च के क्षेत्र में करीब 30 से 50 हजार प्रोफेशनल्स की कमी है। क्लीनिकल प्रोफेशनल्स की मांग और सप्लाई में भारी अंतर के कारण ही भारत में कई ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट शुरू किए गए हैं। इसकी प्रमुख वजह यह है कि यहां प्रशिक्षित कर्मियों और प्रशिक्षण संस्थानों की बेहद कमी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस उद्योग में बहुत अच्छा वेतन मिलता है, जो सालाना 40 हजार डॉलर से लेकर एक लाख डॉलर तक होता है। भारत में शुरुआती सालाना सैलरी 1.8 लाख से लेकर पांच लाख रुपए तक होती है।

भारतीय डाक्टर अपनी प्रैक्टिस छोडक़र क्लीनिकल ट्रायल के क्षेत्र में उतरना नहीं चाहते, क्योंकि यहां डाक्टरी का पेशा ज्यादा सम्मानजनक माना जाता है। बहुत से डाक्टरों को क्लीनिकल ट्रायल और इसमें उपलब्ध अवसरों के बारे में पता ही नहीं है। मंदी के चलते फार्मास्यूटिकल कंपनियां नए प्रोजेक्ट्स हाथ में भले ही न लें, लेकिन जो प्रोजेक्ट चल रहे हैं, उनको पूरा करने के लिए अभी भी बड़ी संख्या में कुशल प्रोफेशनल्स की जरूरत है। तेज गति से बढ़ोतरी के बावजूद भारत में अच्छे क्लीनिकल प्रैक्टिस वाले प्रशिक्षित इन्वेस्टिगेटर्स, बायो-एनालिटिकल साइंटिस्ट और फार्माकोकाइनेटिक्स की काफी कमी है। इसके अलावा आप रिसर्च एग्जीक्यूटिव, क्लीनिकल रिसर्च एडवाइजर, प्रोजेक्ट मैनेजर, ग्रुप प्रोजेक्ट मैनेजर और आपरेशन डायरेक्टर के रूप में भी बेहतर रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। अपनी क्वालिफिकेशन के आधार पर आप इस क्षेत्र में कैरियर बना सकते हैं। अगर आप क्लीनिकल आपरेशंस और प्रोजेक्ट के क्षेत्र में जाना चाहते हैं, तो आपके पास लाइफ साइंस (खासतौर से फार्माकोलाजी, बायोकेमिस्ट्री, बायोलाजी, इम्यूनोलाजी, फिजियोलाजी) में डिग्री होनी चाहिए। इस क्षेत्र से जुड़े लोग ही सीधे तौर पर क्लीनिकल रिसर्च के लिए जिम्मेदार होते हैं। जिन लोगों का केमिस्ट्री या इंजीनियरिंग बैकग्राउंड है, वे क्वालिटी एश्योरेंस या नए कंपाउंड को डिवेलप करने का काम कर सकते हैं। क्लीनिकल डाटा मैनेजर के रूप में काम करने के लिए आपके पास आईटी डिग्री होनी चाहिए।

सैलरी 
आजकल क्लीनिकल रिसर्च के क्षेत्र में रोजगार की बेहतर संभावनाएं हैं और इस क्षेत्र में योग्य प्रोफेशनल्स की मांग में भी वृद्धि हुई है। क्लीनिकल रिसर्च के क्षेत्र में एक फ्रेशर का वेतनमान 25000 या इससे अधिक प्रतिमाह हो सकता है।यदि आपके पास मास्टर डिग्री है, तो वेतनमान दोगुना हो जाता है। निजी कंपनियों में अनुभव मायने रखता है और इस आधार पर आप आकर्षक वेतनमान प्राप्त कर सकते हैं।

कोर्सेज
एडवांस प्रोग्राम इन क्लीनिकल रिसर्च
डिप्लोमा इन क्लीनिकल रिसर्च
बीएससी इन क्लीनिकल लैबोरेटरी टेक्नोलाजी
बीएससी इन क्लीनिकल माइक्रोबायोलाजी
सर्टिफिकेट प्रोग्राम इन क्लीनिकल रिसर्च
इंटिग्रेटेड पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन क्लीनिकल रिसर्च
एमएससी इन क्लीनिक माइक्रोबायोलोजी
पीएचडी इन क्लीनिकल रिसर्च      
कारेसपोंडेंट कोर्स इन क्लीनिकल रिसर्च
डिस्टेंस लर्निंग प्रोग्राम इन क्लीनिकल रिसर्च

संस्थान
इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज, शिमला
चित्कारा यूनिवर्सिटी, बरोटीवाला
मानव भारती यूनिवर्सिटी, सोलन
कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी, कुरुक्षेत्र
नेशनल इंस्टीच्यूट आफ आयुर्वेदिक फार्मास्यूटिकल रिसर्च, पटियाला
ढिल्लों आयुर्वेदिक चैरिटेबल हास्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, जालंधर
पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी, जालंधर
पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीच्यूट आफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़
गुरु गोबिंद सिंह इन्फार्मेशन टेक्नोलाजी एंड रिसर्च, बठिंडा
इंस्टीट्यूट आफ क्लीनिकल रिसर्च, दिल्ली
 

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