बजट 2018 : छात्रों व शिक्षाविदों के हाथ लगी निराशा

Saturday, Feb 03, 2018 - 01:22 PM (IST)

नई दिल्ली : केंद्रीय बजट में शिक्षा के लिए की गई घोषणाओं पर ज्यादातर शिक्षाविद यह मानते हैं कि सरकार से स्कूली शिक्षण व्यवस्था में बुनियादी तौर पर व्यापक सुधार अपेक्षित थे, जबकि सरकार ने निराश किया है। शिक्षा क्षेत्र में बजट आवंटित करते समय वित्तमंत्री ने अपने हाथों से जिस तरह से शिक्षा को धन आवंटित किया, उससे छात्रों व शिक्षाविदों को निराशा हाथ लगी है। शिक्षा क्षेत्र में कुल 85,010 करोड़ रुपए का आवंटन किया है, जो पिछले साल के संशोधित बजट से मात्र 3141 करोड़ रुपए ही अधिक है। जोकि सकल घरेलू उत्पाद का कुल 3.69 फीसदी है। जबकि माना जा रहा था कि वित्तमंत्री अपने आखिरी पूर्णकालिक बजट में इसे 4 फीसदी के पार पहुंचा देंगे।

बजट पर इग्नू के पूर्व कुलपति प्रो. रवीन्द्र कुमार का कहना है कि यह सराहनीय है कि बारहवीं तक की संपूर्ण शिक्षा प्रणाली को समेकित करने की प्रतिबद्धता है। अंतत: संपूर्ण शिक्षा को समेकित करने का शीघ्र-अतिशीघ्र प्रयास करना अभीष्ट होगा। एक लाख करोड़ का शोध व आधारिक संरचना केंद्रित प्रावधान सराहनीय है। प्रो. कुमार ने कहा कि यह विचारणीय विषय है कि शिक्षा की मौजूदा परिस्थिति पर इतनी गहन ङ्क्षचता व्यक्त करने के बाद इसके लिए शोध के एक लाख करोड़ की राशि के मुकाबले किसी निश्चित राशि का उल्लेख नहीं है। भारत को एक और श्रेष्ठ बनाने के लिये समान शिक्षा नीति का होना बहुत जरूरी है। बजट में घोषित की गई प्रारंभिक से माध्यमिक शिक्षा के लिये समान नीति करने का स्वागत किया जाना चाहिए।

बजट में है शिक्षा के लिए ये हैं खास
साल 2022 तक शिक्षा पर केंद्र देगी 1 लाख करोड़ 
चार साल में ब्लैकबोर्ड होंगे स्मार्ट बोर्ड
शिक्षा बजट 3.3 से बढ़कर पहुंचा 3.69 फीसदी
हर साल 1 हजार बीटेक स्टूडेंट्स को मिलेगी छात्रवृत्ति
बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई के लिए बनेगी शिक्षा नीति
आदिवासियों के लिए बनेंगे एकलव्य स्कूल
एकीकृत बीएड प्रोग्राम को हरी झंडी
आईआईटी और एनआईटी में 16 नए प्लान जुड़े
शिक्षा पर सेस 3 से बढ़ाकर किया 4

अर्थशास्त्री की नजर से शिक्षा बजट 
हर बात पर पिछले चार सालों से वित्तमंत्री एक ही बात कहते नजर आए कि जब हमारे पास आएगा तभी शिक्षा का बजट बढ़ाएंगे। नर्सरी से बारहवीं तक के लिए शिक्षा नीति की घोषणा की गई पर साफ नहीं बताया गया। ऐसे में शिक्षा की नीतियां बेमानी हैं। छात्र-शिक्षक खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
प्रो. आभास कुमार, अर्थशास्त्र विभाग, राजधानी कॉलेज (डीयू)

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