युवाओं में बढ़ी नापसंद नेताओं को नकारने की आदत

Saturday, Sep 15, 2018 - 08:41 AM (IST)

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनावों में पिछले दो बार से एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है। छात्रों में अपनी पसंद के प्रत्याशी नहीं होने पर सभी प्रत्याशियों को नकारने और पद योग्य नही मानते हुए नोटा का बटन दबावने का चलन बढ़ा है। इस साल पिछले साल के मुकाबले प्रति सीट पर लगभग एक हजार अधिक छात्रों ने नोटा के बटन का इस्तेमाल किया। 


छात्रों में बढ़ते नोटा के इस्तेमाल को देखते हुए जहां इसे छात्र राजनीति में नई शुरुआत माना जा रहा है,तो दूसरी तरफ नोटा के बढ़ते प्रयोग को देख छात्र छात्र संगठन चिंतित दिखाई दे रहे है और इसे नकारात्मक राजनीति मान रहे हैं। डूसू में अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज करने वाले अंकित बैसोया को जहां 20467 वोट मिले है,तो वहीं 6411 छात्रों ने नोटा का बटन दबाया है। वहीं बात उपाध्यक्ष पद की करें तो यहां एबीवीपी के विजेता शक्ति सिंह को 23,046 वोट मिले है, तो नोटा का बटन 6435 बार दबाया गया है, जबकि तीसरे नंबर पर रही सीवाईएसएस और आइसा गठबंधन की प्रत्याशी अंशिका को 7335 यानि नोटा से सिर्फ 900 वोट अधिक।
 
सचिव पद पर नोटा ने सीवाईएसएस और आइसा गठबंधन के प्रत्याशी चंद्रमणिदेव को पीछे छोड़ दिया है। चंद्रमणिदेव को जहां 4582 वोट मिले, तो वहीं नोटा का इस्तेमाल 6801 बार हुआ है। जबकि जीत दर्ज करने वाले एनएसयूआई के आकाश चौधरी को 20,298 और दूसरे नंबर रहे एबीवीपी के सुधीर डेढ़ा को 14,109 वोट। संयुक्त सचिव पद पर नोटा का सबसे अधिक इस्तेमाल किया गया है,संयुक्त सचिव पद पर 8271 छात्रों ने नोटा का बटन दबाकर सभी प्रत्याशियों को नकार दिया, जबकि पहला स्थान प्राप्त करने वाली एबीवीपी की ज्योति चौधरी 29,355 वोट पाकर विजेता बनी है, एनएसयूआई के सौरभ यादव 14,381 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे, तो तीसरे नंबर पर रहें सीवाईएसएस आइसा गठबंधन के उम्मीदवार सन्नी तंवर को नोटा से बस 928 वोट अधिक मिले हैं और वह 9199 पर सिमट गए। 

साफ है कि यदि नोटा दबाने वाले छात्रों ने किसी ना किसी प्रत्याशी को वोट दिया होता तो नतीजे अलग होते। नोटा के बढ़ते इस्तेमाल को लेकर छात्र संगठन भी चिंतित दिखाई दे रहे हैं। 
 

pooja

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