कबीर की शिक्षा में दुनिया को एकजुट करने की क्षमता : भारती बंधु

punjabkesari.in Monday, Jan 14, 2019 - 12:05 PM (IST)

 रायपुर: लोक कलाओं के लिए प्रसिध्द छत्तीसगढ़ से, कबीर की साखियों के गायन की ‘भारती बंधु शैली’’ पूरी दुनिया में अपनी तरह की एकमात्र शैली है। इस अनूठी शैली की सौगात देने वाले, पद्मश्री से सम्मानित भारती बंधु मानते हैं कि कबीर की शिक्षा में दुनिया को एकजुट करने की क्षमता है।  भारती बंधु, पांच भाई हैं जो कबीर को गाते हैं और कबीर को जीते हैं। वह देश दुनिया में इसी नाम से पहचाने जाते हैं। अपनी खास शैली से कबीर को घर घर पहुंचाने वाले भारती बंधु में से सबसे बड़े भाई कहते हैं ‘‘मैंने अपना नाम कबीर को सर्मिपत कर दिया है।’’     

यही वजह है कि लोग उन्हें पद्मश्री डॉक्टर भारती बंधु कहते हैं।  वह कहते हैं ‘‘मेरे नाम से मुझे कम लोग जानते हैं और मै अपने नाम का उल्लेख भी नहीं करना चाहता। नाम एक तरह का अहंकार ही है। नाम तो केवल परमात्मा का ही है। लोग मुझे जिस नाम से जानते हैं वही मेरा नाम है।’’ छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में ऐतिहासिक बूढ़ा तालाब के किनारे मारवाड़ी श्मशान घाट है। इस श्मशान घाट से लगे मोहल्ले में एक किराए के मकान में भारती बंधु का 22 सदस्यीय परिवार रहता है।      

भारती बंधु भक्ति संगीत की अपनी परंपरा की पांचवी पीढ़ी हैं। उनके पूर्वज निर्गुण गाते थे। दादा के समय सगुण की परंपरा भी समाहित हुई। पहले दादा सभी तरह के भजन गाते थे, लेकिन पिता और भारती बंधु ने कबीर को गाना शुरू किया। पिता विद्याधर गैना भारती उनके आध्यात्मिक और संगीत के प्रारंभिक गुरू भी हैं। भारती बंधु बताते हैं कि वर्ष 1984 में अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान उनकी मुलाकात आदिवासी लोककला परिषद के संचालक कपिल तिवारी से हुई तब इसमें नया मोड़ आ गया। तिवारी ने उनके भजन सुने और कहा कि वह कबीर को न छोड़ें। यह बात में दिल में बस गई।      

भारती बंधु कहते हैं कि तब किराना घराने के उस्ताद आशिक अली खां साहब गाते थे ‘‘मन लागा मेरा यार फकीरी में।’’ इसी फकीरी की खातिर कबीर की तलाश शुरू हुई और तब पता चला कि पूरा छत्तीसगढ़ ही कबीरमय है। कबीर को आत्मसात करते करते लगभग 10 साल की मेहतन के बाद‘भारती बंधु शैली’का जन्म हुआ। आज यह शैली दुनिया में कबीर को गाने वाली एकमात्र शैली है।      


भारती बंधु शैली में मूलत: कबीर तो हैं ही, साथ ही इसमें अन्य संतों सूर, तुलसी, नानक, मीरा, फरीद और बुल्लेशाह की भी वाणी है। यह शैली केवल शास्त्रीय नहीं है बल्कि इसमें लोक संगीत की भी मिठास है।  कबीर ही क्यों ? यह पूछने पर भारती बंधु कहते हैं कि कबीर सीधे शब्दों में सादगीपूर्ण तरीके से, सहजता में बहुत कुछ कह जाते हैं। कबीर ने समाज में समानता, समरसता, सदभावना और मानव मूल्य को समझाया है। कबीर की शिक्षा में दुनिया को एकजुट करने की क्षमता है।  खास शैली वाले भारती बंधु का पहनावा भी खास है। इस बारे में वह बताते हैं ‘‘मै किसी एक प्रांत का नहीं हूं। टोपी उत्तर भारत की है। मध्य भारत में रहता हूं। दक्षिण भारत की धोती पहनता हूं।’’      

श्मशान घाट के करीब रहने को लेकर वह कहते हैं - मेरे पिता ने कहा था कि जीवन का परम सत्य रोज यहां देखोगे। कबीर को गाते हो तो इस सत्य को जानना जरूरी है। लेकिन इसी सत्य से लोग भागते हैं।   भारती बंधु की गायन शैली को लेकर वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज कहते है कि कबीर को गाने वाले देश में कई महत्वपूर्ण गायक हैं। लेकिन भारती बंधु जिस सूफियाना अंदाज में कबीर को पेश करते हैं वह बहुत ही अलग अनुभव रहता है। वह कबीर को जिस तरह अपनी पंक्ति के माध्यम से खोलते और व्याख्यायित करते हैं, इससे कबीर आम लोगों तक आसानी से संप्रेषित हो जाते हैं।      दुबई, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका और रूस की यात्रा कर चुके भारती बंधु को अमेरिका और यूरोप से न्यौता मिला है। उन्हें वर्ष 2013 में पद्मश्री सम्मान मिला है और वर्ष 2015 में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी है।  
 


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pooja

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