बापू के आह्वान के 100 साल पूरे, लेकिन हिंदी नहीं बन सकी ''राष्ट्रभाषा''

Thursday, Mar 29, 2018 - 03:15 PM (IST)

नई दिल्ली:  जैसे अंग्रेज मादरी जबान (मातृभाषा) यानी अंग्रेजी में ही बोलते हैं और सर्वथा उसे ही व्यवहार में लाते हैं, वैसे ही मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का गौरव प्रदान करें। इसे राष्ट्रभाषा बनाकर हमें अपना कर्तव्य पालन करना चाहिये।  इंदौर इतिहास के गलियारे में गूंजते ये शब्द इंदौर में महात्मा गांधी के उस भाषण का हिस्सा हैं जिसमें उन्होंने ठीक एक सदी पहले हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का सार्वजनिक आह्वान किया था।      

 

हिन्दी के प्रसार से जुड़ी स्थानीय संस्था मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति के प्रचार विभाग के प्रमुख अरविंद ओझा ने आज मीडिया को बताया कि बापू ने यह भावुक अपील यहां 29 मार्च 1918 को आठवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन के दौरान अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में की थी ।

 

उस समय देश स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा था और हिन्दी के सम्मान में बापू के दिल से निकले बोलों ने जनमानस में मातृभूमि की आजादी के लिये नया जज्बा जगा दिया था। ओझा ने कहा, यह बेहद दुर्भाग्यूर्ण है कि राष्ट्रपिता की इस अपील के पूरे 100 साल गुजरने के बाद भी हिन्दी को अब तक राष्ट्रभाषा का संवैधानिक दर्जा नहीं दिया जा सका है, जबकि यह जुबान देश में सबसे ज्यादा बोली और समझी जाती है।       

 

इंदौर के मौजूदा नेहरू पार्क में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में महात्मा गांधी ठेठ काठियावाड़ी पगड़ी, कुरते और धोती में मंच पर थे। वर्ष 1910 में स्थापित मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति इस कार्यक्रम के आयोजन में सहभागी थी।

 

बापू ने अपने भाषण में हिन्दी की गंगा-जमुनी संस्कृति पर भी जोर दिया था। उन्होंने कहा था, हिन्दी वह भाषा है, जिसे हिन्दू और मुसलमान दोनों बोलते हैं और जो नागरी अथवा फारसी लिपि में लिखी जाती है। यह हिन्दी संस्कृतमयी नहीं है, न ही वह एकदम फारसी अल्फाज से लदी हुई है।

Punjab Kesari

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