PICS: आज भारत के इन मंदिरों में श्रीराम की नहीं रावण की होगी पूजा

Thursday, Oct 22, 2015 - 09:33 AM (IST)

विजय दशमी के दिन राक्षस राज रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले इसलिए जलाए जाते हैं ताकि आम जन मानस को स्मरण रहे कि बुरे काम का नतीजा भी बुरा ही होता है। इससे लोगों को सीख मिलती है कि वे बुरे काम न करें। बुराई पर अच्छाई की, असत्य पर सत्य की और रावणत्व पर रामत्व की जय का उद्घोष किया जाता है।

रावण के चरित्र पर विचार किया जाए तो हम पाते हैं की बाल्मीकि जी ने रामायण में रावण को महात्मा बताया है। उसकी बुद्धिमता, भक्ति और विलक्षणताओं की बजाय हमने उसके वे सारे अवगुण अपना लिए हैं जिनकी वजह से उस महापराक्रमी को धूल धुसरित होना पड़ा। रावण और उसके भाई व बेटे के पुतलों का दहन किया जाता हैं क्योंकि परंपरा चली आ रही है और हम उस परम्परा का हिस्सा हैं लेकिन भारत में बहुत से ऐसे मंदिर हैं जहां आज रावण के पुतले को जलाया नहीं जाएगा बल्कि रावण की पूजा की जाएगी। आइए जानें, आज भारत के किन मंदिरों में श्रीराम की नहीं रावण की होगी पूजा। 

मध्य प्रदेश के विदिशा के रावण गांव में बसे लोग मानते हैं की रावण कान्यकुब्ज ब्राह्मण था और वह सभी गांववासी रावण के वंशज हैं इसलिए वहां रावण बाबा की पूजा और उनके नाम की आरती भी होती है।

उत्तर प्रदेश के कानपुर में शिवाला क्षेत्र में अवस्थित है दशानन मंदिर। इस मंदिर के कपाट साल में केवल एक बार, दशहरे के दिन सुबह नौ बजे खुलते हैं। मंदिर के पुजारी सबसे पहले मंदिर की सफाई करते हैं, फिर रावण की मूर्ति का भव्य श्रृंगार और अंत में उनकी आरती उतारी जाती है। नवरात्र में बड़ी संख्या में यहां श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं।

मध्यप्रदेश के इंदौर में एक विशाल मंदिर है जहां बहुत से देवी-देवताओं के साथ महाभारत और रामयाण काल के खलनायको की भी मूर्तियां स्थापित हैं। इन्हीं मूर्तियों में एक मूर्ति रावण की भी है। रावण की इस मूर्ति का पूजन मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालु भक्ति भाव से करते हैं।

आंध्रप्रदेश के काकिनाडा में स्थित रावण मंदिर के मुख्यद्वार पर दस सिरों वाले रावण के दर्शन होते हैं। यहां रावण के अराध्य भोलेनाथ भी विराजित हैं और दोनों का पूजन किया जाता है।

बैजनाथ स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर का संबंध रावण की तपस्या से जोड़ा जाता है।

ऐसा माना जाता है कि यह वही शिवलिंग है, जिसे रावण तप कर लंका ले जा रहा था लेकिन तभी लघुशंका के दौरान रावण ने इस शिवलिंग को एक चरावाहे को पकड़ा दिया था और इस चरावाहे ने इस शिवलिंग को यहीं जमीन पर रख दिया तभी से यह शिवलिंग यही स्थापित हो गया। इसके बाद नौंवी शताब्दी में इस मन्दिर का निर्माण दो व्यापारी भाईयों ने करवाया था। लंकापति रावण की तपोस्थली के रूप में बैजनाथ मंदिर में अचम्भित करने वाली दो बातें है एक तो यह कि बैजनाथ कस्बे में लगभग 700 व्यापारिक संस्थान है परंतु कस्बे में कोई भी सुनार की दुकान नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि यहां सोने की दुकान करने वाले का सोना काला पड़ जाता है। दूसरी यह कि यहां दशहरा नहीं मनाया जाता और जो रावण का पुतला जलाता है उस व्यक्ति पर घोर विपति आन पड़ती है।

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