सूरज ढलने के बाद आज भी भगवान शिव स्त्री रूप में सजते हैं और फिर सुबह होने पर...

Sunday, Dec 27, 2015 - 12:01 PM (IST)

संसार में भगवान श्रीकृष्ण के बहुत सारे भक्त हुए हैं। उन्हीं में से भगवान शिव परम वैष्णव माने जाते हैं। उनकी श्री कृष्ण के प्रति अटूट भक्ति भावना को दर्शाता है वृंदावन का गोपेश्वर महादेव मंदिर। चाहे इस मंदिर का इतिहास वर्षों पुराना है लेकिन आज भी सूरज ढलने के बाद भगवान शिव के लिंग को स्त्री रूप में सजाया जाता है और मान्यता है की भोले बाबा रात को भगवान श्रीकृष्ण के साथ रास रचाने जाते हैं। फिर सुबह होने पर वो पुन: अपने लिंग रूप में आ जाते हैं और भक्त उनका जलाभिषेक करते हैं।

कामदेव ने जब भगवान शिव का ध्यान भंग कर दिया तो उसे खुद पर बहुत गर्व होने लगा। वह भगवान कृष्ण के पास जाकर बोला कि मैं आपसे भी मुकाबला करना चाहता हूं। भगवान ने उसे स्वीकृति दे दी लेकिन कामदेव ने इस मुकाबले के लिए भगवान के सामने एक शर्त भी रख दी। कामदेव ने कहा कि इसके लिए आपको अश्विन मास की पूर्णिमा को वृंदावन के रमणीय जंगलों में स्वर्ग की अप्सराओं-सी सुंदर गोपियों के साथ आना होगा। कृष्ण ने यह भी मान लिया। फिर जब तय शरद पूर्णिमा की रात आई, भगवान कृष्ण ने अपनी बांसुरी बजाई।

बांसुरी की सुरीली तान सुनकर गोपियां अपनी सुध खो बैठीं। कृष्ण ने उनके मन मोह लिए। उनके मन में काम का भाव जागा लेकिन यह काम कोई वासना नहीं थी। यह तो गोपियों के मन में भगवान को पाने की इच्छा थी। आमतौर पर काम, क्रोध, मद, मोह और भय अच्छे भाव नहीं माने जाते हैं लेकिन जिसका मन भगवान ने चुरा लिया हो तो ये भाव उसके लिए कल्याणकारी हो जाते हैं।

भगवान शिव कैलाश पर्वत पर अपनी समाधी त्याग कर वृंदावन आ गए। गोपियों ने उन्हें वहीं रोक दिया और कहां यहां भगवान कृष्ण के अतिरिक्त अन्य किसी पुरूष को आने की अनुमति नहीं है। फिर क्या था भगवान शिव अर्धनारिश्वर से पूर्ण नारी रूप में अपने पिया के लिए सज धज कर मानसरोवर में स्नान कर गोपी का रूप बना कर आ गए।

प्रवेश द्वार पर ललिता जी खड़ी थी वह सभी गोपियों के कान में युगल मंत्र का उपदेश दे रही थी। उनकी आज्ञा के बिना किसी को भी रास में आने की अनुमती नहीं है। भोलेबाबा भी गोपी बनकर रास में प्रवेश कर गए। भगवान कृष्ण उन्हें गोपी रूप में देख कर बहुत प्रसन्न हुए। तभी से उनका नाम गोपेश्वर महादेव हुआ।

गोपी का अर्थ है जो भगवान कृष्ण के प्रति कोई इच्छा न रखता हो, वह सिर्फ कृष्ण को ही चाहती हैं। उनके साथ रास खेलना चाहती है। उसकी खुशी सिर्फ भगवान कृष्ण को खुश देखने में है।

भगवान श्रीकृष्ण ने बंसी बजायी, क्लीं बीजमंत्र फूंका। 32 राग, 64 रागिनियां। शरद पूनम की रात, मंद-मंद पवन बह रही है। राधा रानी के साथ हजारों सुंदरियों के बीच भगवान बंसी बजा रहे हैं। उन्हीं में भगवान शिव भी भाव विभोर हुए नाच रहे हैं।

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