यहां तीन स्वरूपों में विराजित हैं बप्पा, दर्शन मात्र से होते कार्य पूर्ण

punjabkesari.in Monday, Sep 05, 2016 - 03:10 PM (IST)

उज्जैन से लगभग 6 कि.मी. दूर चिंतामन गणेश जी का मंदिर है। यहां एक ही छत के गणेश जी के तीन स्वरूपों के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। मंदिर में गणेश जी चितांमण, इच्छामण और सिद्धिविनायक के रूप में विराजमान हैं। श्री चिंतामणी गणेश की प्रतिमा अद्भूत और अलौकिक है। चिंतामणी गणेश चिंताअों को हरते हैं, इच्छामणी गणेश इच्छाअों की पूर्ति करते हैं। सिद्धिविनायक रिद्धि-सिद्धि देते हैं। चिंतामणी भगवान के स्वरुप में उनकी केवल मुख ही दिखाई देता है। मंदिर में स्थापित श्रीगणेश की तीनों प्रतिमाएं स्वयंभू हैं।

 

यहां श्रद्धालु पहले चिंतामणी गणेश के दर्शन करते हैं। उसके पश्चात इच्छामण गणेश के दर्शन करके इच्छा पूर्ति का वरदान मांगते हैं। फिर सिद्धिविनायक के दर्नश किए जाते हैं। कहा जाता है कि जब भगवान चिंतामण, इच्छामण और सिद्धिविनायक अपने ऊपर शुभकार्य का भार ले लेते हैं तो उसे अवश्य निर्विघ्न पूर्ण करते हैं। 

 

यहां चिंतामणी गणेश की स्थापना की कई कथाएं प्रचलित है। माना जाता है कि राजा दशरथ के उज्जैन में पिण्डदान के दौरान भगवान श्री रामचन्द्र जी ने यहां आकर पूजा अर्चना की थी। वनवास के समय श्रीराम, लक्ष्मण अौर मां सीता यहां आए थे। तब मां सीता को प्यास लगी थी तो लक्ष्मण ने अपने तीर से धरती पर मार कर पानी निकाला था और यहां एक बावडी बन गई थी। मां सीता ने इसी जल से अपना उपवास खोला था। तब भगवान श्री राम, लक्ष्मण अौर मां सीती ने चिंतामण, इच्छामण एवं सिद्धिविनायक की पूजा अर्चना की थी।

 

मंदिर के सामने यह बावड़ी आज भी स्थित है। महारानी अहिल्याबाई द्वारा लगभग 250 वर्ष पूर्व मंदिर का वर्तमान स्वरूप बनाया था।  इससे पूर्व परमार काल में मंदिर का जिर्णोद्धार हो चुका है। यह मंदिर जिन खंभों में टिका हुआ है वे परमार कालीन हैं।

 

यहां की परंपरा के अनुसार शादी का पहला निमंत्रण श्रीगणेश के इस मंदिर में आता है। वर-वधू के माता-पिता यहां आकर लग्न की तारीख लिखवाते हैं। शादी के पश्चात दोनों यहां आकर श्रीगणेश से आशीर्वाद लेकर नए जीवन की शुरुआत करते हैं अौर लग्न को चिंतामण जी के चरणों में छोड़कर जाते है। किसी भी शुभ कार्य का प्रथम निमंत्रण भगवान चिंतामन गणेश को ही दिया जाता है ।

 

गणपति के इस मंदिर में उनकी पूजा का विधिविधान भी कुछ अलग है। कहा जाता है कि किसी भी कार्य के शुरु होने से पूर्व यदि एक नारियल और मंगल कार्य का निमंत्रण गणपति के चरणों में रख दिया जाए तो कार्य निर्विघ्न पूर्ण होता है। चिंतामणि गणेश को प्रसन्न करना बहुत सरल है। मोतीचूर के लड्डू से उनकी आराधना करके मंदिर के पीछे की दीवार पर उल्टा स्वस्तिक बनाकर गणपति तक अपनी मन्नत पहुंचाई जाती है। मन्नत पूरी होने के पश्चात सीधा स्वस्थिक का चिन्ह बनाया जाता है। भक्त यहां मौली बांध कर भी गणपति से अपनी मन्नत कहते हैं।

 

सुबह मंदिर का द्वार खुलते ही चिंतामण, इच्छामण और सिद्धिविनायक के स्वरूपों की पूजा आरंभ हो जाती है। पंचामृत से चिंतामण, इच्छामण और सिद्धिविनायक का अभिषेक करने के पश्चात प्रतिमा पर घी और सिंदूर का लेप कर उनका भव्य श्रृंगार किया जाता है। यहां कई भक्त अपनी मन्नत पूर्ण होने के बाद भगवान चिंतामण का श्रृंगार करवाते हैं। आरती की मधुर गूंज सुनने के लिए भक्त बाप्पा के दरबार में घंटों खड़े रहते हैं।


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