Yulla Kanda: विश्व का सबसे ऊंचा कृष्ण मंदिर, सफर को ऊर्जा प्रदान करता है ये अभिवादन
punjabkesari.in Sunday, Oct 19, 2025 - 02:00 PM (IST)
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Tallest Krishna temple in the world: हिमाचल प्रदेश में तीर्थ यात्राएं अक्सर आपको मानव सभ्यता की हलचल से दूर ले जाती हैं। ये यात्राएं आपके विचारों, ज्ञान और आत्मिक शांति का नया आयाम देती हैं। किन्नौर जिले में स्थित युला कांडा एक ऐसा अद्भुत स्थान है, जहां विश्व का सबसे ऊंचा श्रीकृष्ण मंदिर मौजूद है। यह पवित्र मंदिर 12,000 फुट की ऊंचाई पर एक तालाब के बीच स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 12 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई करनी पड़ती है। यह यात्रा किन्नौर जिले के युला गांव से शुरू होती है। युला बस स्टैंड जो सड़क का आखिरी बिंदू है, तक आप बस, टैक्सी या अपनी गाड़ी से पहुंच सकते हैं। यात्रा युला गांव से शुरू होती है।

यह रास्ता हिमालय की ऊंची-ऊंची और पथरीली पहाड़ियों से घिरा हुआ है, जो इसे कैंपिंग और एडवैंचर प्रेमियों के लिए आदर्श बनाता है। पहले चार किलोमीटर का सफर आपको युला बस स्टैंड से गांव के आखिरी घर तक ले जाता है।
रास्ते में आपको लौटते हुए यात्री मिल सकते हैं, जो ऊर्जा और खुशी से भरे हुए जय श्री कृष्ण का नारा लगाते हुए आपका स्वागत करेंगे। कुछ ही देर में आप भी इसी तरह से उनका अभिवादन करना शुरू कर देंगे।

यह नारा इस यात्रा को आध्यात्मिक अनुभव में बदल देता है। देवदार के लम्बे-लम्बे पेड़ रास्ते में धूप से बचाते हैं और आपको एक ठंडा और शांत माहौल प्रदान करते हैं, जिससे आपकी थकान गायब हो जाती है। लगभग चार किलोमीटर की चढ़ाई के बाद एक छोटा गेट आपका स्वागत करता है जिस पर लिखा होता है युला कांडा में आपका स्वागत है’।
यहां से दृश्य पूरी तरह से बदल जाता है। पेड़ों की जगह बर्फ से ढकी और पथरीली चोटियों से घिरा पहाड़ नजर आता है। इस स्थान को बेस एक कहा जाता है, जहां आप रुक सकते हैं, आराम कर सकते हैं या कुछ खा सकते हैं। बेस एक से दो किलोमीटर आगे बेस दो है, जहां स्थानीय युवाओं द्वारा 10-15 टैंट लगाए गए हैं।

प्रति व्यक्ति 1200 रुपए के किराए में रहने, रात के खाने, नाश्ते और कभी-कभी बोनफायर की सुविधाएं शामिल हैं। वहां के प्रबंधकों ने बताया कि वे प्रकृति से बहुत प्यार करते हैं और हर दिन बोनफायर नहीं कर सकते क्योंकि इससे जंगल को नुकसान पहुंचेगा। यह देख कर हमें उनकी पर्यावरण के प्रति गहरी निष्ठा पर गर्व हुआ। यहां रात का तापमान -12 डिग्री सैं. तक पहुंच जाता है। बेस दो से अंतिम दो किलोमीटर की चढ़ाई सबसे चुनौतीपूर्ण है, लगभग 70 डिग्री की ढलान पर एक घंटे की कठिन चढ़ाई।
जैसे ही आप चोटी के पास पहुंचते हैं। तालाब से बहते पानी की आवाज आपका स्वागत करती है। मंदिर तिब्बती झंडों से सुसज्जित है और एक शांत तालाब से घिरा हुआ है। तालाब का पानी इतना साफ है कि इसमें आसपास की चोटियों की स्पष्ट छवि दिखाई देती है। कई यात्री पहले ही भगवान कृष्ण की पूजा कर चुके होते हैं और मंदिर के अंदर और बाहर धूपबत्तियां जलाते हैं। मंदिर के अंदर हमने भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की और मंदिर के समृद्ध इतिहास के बारे में जाना। एक कथा के अनुसार पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इस मंदिर का निर्माण किया था।

युला गांव के एक गडरिए ने सैंकड़ों साल पहले अपनी भेड़ों के झुंड के साथ यात्रा करते हुए सबसे पहले भगवान कृष्ण की मूर्ति देखी थी। उसने गांव वालों को इसकी जानकारी दी और उन्होंने मूर्ति के लिए एक छोटा मंदिर बनाया। बाद में सुरक्षा के लिए मूर्ति को गांव के बौद्ध मंदिर में स्थानांतरित कर दिया गया।
यह भी कहा जाता है कि पांडवों ने मंदिर के पास समतल भूमि पर चावल उगाए थे। हमने मंदिर में लगभग दो घंटे बिताए उसकी शांति और मनमोहक दृश्यों का आनंद लिया। इसके बाद हम बेस दो लौट आए और वहीं रात बिताई।

उस रात कैम्पसाइट में 18-20 मेहमान थे, जिनमें से अधिकांश दिल्ली से आए थे। बोनफायर के पास बातचीत में हमें पता चला कि कई यात्री केवल एक ट्रैक के लिए युला कांडा आए थे। कुछ ने इसे उम्मीद से अधिक चुनौतीपूर्ण पाया लेकिन मंदिर तक पहुंचने के बाद उनकी खुशी और संतोष साफ झलक रहा था।
रात बेहद ठंडी थी और तापमान 12 डिग्री तक गिर गया। सुबह 7.45 बजे सूरज उगने के बाद हमने बेस दो से युला गांव की ओर वापसी शुरू की। रास्ते में हमने नए यात्रियों का उसी जय श्री कृष्ण से अभिवादन किया जो कभी हमारे सफर को ऊर्जा प्रदान करता था। युला कांडा की यह यात्रा एक आत्मिक यात्रा थी, जिसमें प्राकृतिक सौंदर्य और अविस्मरणीय क्षणों का संगम था।
