Young age vs old age: न लौटेगी जवानी, न जाएगा बुढ़ापा

punjabkesari.in Thursday, Dec 12, 2024 - 07:46 AM (IST)

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Young age vs old age psychology: हम सभी जानते हैं कि गई हुई जवानी और आया हुआ बुढ़ापा लौटाया नहीं जा सकता। बालों को रंगकर बुढ़ापे को छिपाया तो जा सकता है, पर हटाया नहीं जा सकता। बुढ़ापा जीवन का जन्म जैसा ही सत्य है। राम हो या रहीम, कृष्ण हो या कबीर, महावीर हो या मोहम्मद हर किसी को जन्म, यौवन, रोग और बुढ़ापा इन चारों गलियारों से गुजरना पड़ता है। बुढ़ापे का कोई अपवाद या विकल्प नहीं है, इसलिए बुढ़ापे को समस्या न समझें, यह तो हकीकत है। हम हकीकत को स्वीकार करें। अगर हंसकर स्वीकारेंगे तो मृत्यु दस वर्ष दूर रहेगी और रोते-बिलखते काटेंगे तो मृत्यु दस वर्ष पूर्व ही आ जाएगी।

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हम पूछ सकते हैं : क्या मौत को आगे-पीछे किया जा सकता है? नहीं, यह तो संभव नहीं है लेकिन खुश रहकर आप हर ओर खुशियां बिखेर सकते हैं। तब सब आपके साथ होंगे और आपका जीवन खुशनुमा रहेगा और मृत्यु दूर ही दिखाई देगी। अन्यथा विलाप करने से आप तो दुखी होंगे ही, सबको दुखी कर डालेंगे और प्रतिपल मृत्यु की कामना करते हुए उसे नजदीक बुला लेंगे।

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सात वार में जीवन का सार
मृत्यु चाहे जब आए, जिस जीवन का प्रारंभ हुआ है उसका समापन तो होगा ही। दुनिया में सात ही वार होते हैं। इन्हीं में किसी एक दिन जीवन की शुरुआत होती है और इन्हीं में से किसी एक दिन जीवन का समापन होता है। सोमवार को हम जन्म लेते हैं तो मंगलवार को स्कूल जाते हैं। बुधवार को करियर बनाते हैं तो गुरुवार को शादी करते हैं, शुक्रवार को बच्चे होते हैं तो शनिवार को बूढ़े हो जाते हैं और इस तरह रविवार को कहानी खत्म हो जाती है। इन सात दिनों में से हम किसी भी दिन जीवन की यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं और किसी भी दिन बुढ़ापे के सत्य से रू-ब-रू हो सकते हैं।

बुढ़ापा समस्या नहीं, यह नैसर्गिक शारीरिक प्रक्रिया है। व्यक्ति ज्यों-ज्यों बूढ़ा होता है, उसमें अशांति, उद्वेग, तनाव और असुरक्षा की भावना हावी होती जाती है। बचपन में अज्ञान और अबोधता रहती है। युवावस्था में अशांति और उन्माद चढ़ जाता है तो बुढ़ापे में परिग्रह और असुरक्षा सबसे अधिक रहती है। मेरी समझ से बुढ़ापा उसकी परीक्षा है। अगर आप बुढ़ापे को समस्या समझेंगे तो हर उम्र एक समस्या है। बचपन भी, यौवन भी और बुढ़ापा भी पर अगर इसे प्रकृति की व्यवस्था समझें तो बुढ़ापा न कोई रोग है, न अभिशाप।
बुढ़ापा तो शांति, मुक्ति, समाधि और कैवल्य का द्वार है। एक बूढ़ा बुजुर्ग व्यक्ति तो परिपक्वता की निशानी है। वह ज्ञान और अनुभव का विशाल भंडार है। वह तो जीवन के उपन्यास का सार है, उपसंहार है।

बुढ़ापे से वही व्यक्ति घबराएगा जिसने बचपन और यौवन दोनों को कचरापेटी में डाल दिया। अब भला स्कूल जाने से आखिर वही बच्चा तो डरेगा न जिसने अपना होमवर्क पूरा नहीं किया। आयकर अधिकारियों से वही व्यापारी घबराएगा जिसके बही खाते ठीक नहीं होंगे और मौत को करीब आते देख कर वही रोएगा-धोएगा जिसने केवल भोग किया, पर योग का द्वार न खोला। जिसने जीवन की धन्यता के लिए कुछ न किया, उसका बुढ़ापा सूना है पर जो मंदिर दर्शन, गुरु सान्निध्य, सत्संग प्रेम और दूसरों की भलाई के लिए समर्पित रहा उसका तो बुढ़ापा भी सोना ही है।

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भुनभुनाने से अच्छा है गुनगुनाना
बुढ़ापे में बाल सफेद हो जाते हैं, जो निवृत्ति के प्रतीक हैं। यानी भोग और भोजन पूरा हुआ, अब नई यात्रा शुरू करें। अब प्रभु के रास्ते पर चले आओ, गाड़ी छूटने वाली है। अब संसार के पचड़े छोड़ो और स्वाध्याय, सत्संग, प्रभु भजन और आत्म ध्यान में खुद को समर्पित करो। सोचो अगर अब भी न किया तो क्या मरने के बाद करोगे ?

अपने बूढ़े तन में भी मन को मजबूत करो और शेष जीवन को पूरा सार्थक और आनंद भाव से जीकर जाओ। बुढ़ापे को लेकर रोओ मत, बुढ़ापे को सार्थक करो। कुछ ऐसा करो कि बुढ़ापा धन्य हो।

व्यस्त रहें और मस्त रहें
हमारा बुढ़ापा स्वस्थ भी हो, सार्थक भी हो सुरक्षित भी हो औरों के लिए आदर्श भी हो यह निहायत जरूरी है। बुढ़ापे में हमें किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, इसकी तैयारी अभी से कर लो। 

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Content Writer

Niyati Bhandari

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