Kundli Tv- आपने सुना है विश्व के सबसे पुराना मंदिर के बारे में

Thursday, Dec 20, 2018 - 05:49 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा(video)
भारत देश जिसे देवी-देवताओं की भूमि कहा जाता है यहां कण-कण में भगवान का वास है। यहां के लोगों का भगवान में अटूट विश्वास है। इस कलयुग में भी भारतवासियो की श्रद्धा मंदिरों में देखने को मिलती है। यहां लोग दुख हो या सुख हमेशा भगवान को याद रखते हैं। भारत में ही नहीं भगवान में विश्वास रखने वाले भक्तों की कमी विदेशो में भी नहीं है। ऐसे ही आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो कि भारत में नहीं विदेश में है। इस मंदिर को दुनिया का सबसे बड़े मंदिर का दर्जा प्राप्त है। आइए जानते हैं इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर के बारे में-

विष्णु जी को समर्पित अंकोरवाट नामक ऐतिहासिक मंदिर कंबोडिया में स्थित है। ये दुनिया का सबसे बड़ा और प्राचीन मंदिर हैं। इस मंदिर का नाम गिनीस बुक ऑफ वर्ल्ड में भी शामिल है। इस मंदिर का पौराणिक नाम यशोधपुर था। यह मंदिर 402 एकड़ में फैला है। फ्रांस से आज़ादी के बाद ये मंदिर कंबोडिया की पहचान बन गया। 12वीं शताब्दी के सूर्यवर्मन नामक राजा ने अंकोरवाट में विष्णु के इस विशाल मंदिर को बनवाया। इस मंदिर के चारों ओर एक बड़ी खाई है जिसकी चौड़ाई लगभग 700 फुट है। दूर से यह खाई झील के समान दिखती है। मंदिर के पश्चिम की ओर इस खाई को पार करने के लिए एक पुल बना हुआ है। पुल पार करने के बाद मंदिर में प्रवेश के लिए एक विशाल द्वार है जो लगभग 1000 फुट चौड़ा है। मंदिर की दीवारों पर बलि-वामन, स्वर्ग-नरक, समुद्र मंथन, देव-दानव युद्ध, महाभारत हरिवंश पुराण और रामायण से जुड़े अनेक शिलाचित्र हैं।

इस मंदिर की खास बात यह है इसकी हर दीवार रामायण और महाभारत जैसे पवित्र ग्रंथो की कहानिया बयां करती हैं। आज के समय में अंगकोर वाट दक्षिण एशिया के प्रख्यात और अत्याधिक प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों में से एक है। इस मंदिर के निर्माण में जिस कला का अनुकरण हुआ है वह भारतीय गुप्त कला से प्रभावित जान पड़ती है।

मान्यता के अनुसार इस मंदिर का जुड़ाव भारतीय संस्कृति से है इसलिए इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर एक ही दिन में अलौकिक शक्तियों के माध्यम से बना था लेकिन मान्यता के अनुसार राजा सूर्यवर्मन ने इस मंदिर का निर्माण किया था। निर्माण के बाद जहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा की थी। कहा जाता है कि राजा हिंदू देवी-देवताओं को खुश करके अमर होना चाहता था। इस मंदिर को देखने से ही लगता है कि विदेशों में जाकर भी भारतीय कलाकारों ने भारतीय कला को जीवित रखा है। यही नहीं इस मंदिर की दिलचस्प बात यह है इसकी तस्वीर कंबोडिया के रष्ट्रिय ध्वज पर छपी है।  
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