World earth day 2020: लॉकडाऊन ने बनाया धरती को जन्नत

Wednesday, Apr 22, 2020 - 06:51 AM (IST)

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World earth day 2020: कोरोना के कारण आखिरकार हमारी धरती को वह जरूर ‘ब्रेक’ मिल गया है जिसकी उसे न जाने कब से जरूरत थी। इंसान ने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए धरती का जमकर दोहन किया है और दिन-रात चलने वाली गतिविधियों की वजह से धरती का दम घुटने लगा था परंतु इस वक्त दुनिया के कई हिस्सों में लॉकडाऊन के कारण न केवल शहरों में प्रकृति की छटा फैली है, बल्कि खुद धरती के कम्पन भी कम हो गए हैं।

मुरम्मत में जुटी धरती
लॉकडाऊन झेल रहे दुनिया के कई हिस्सों से वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण के कम होने की सूचनाएं आने लगी हैं। एक ओर तो लगातार कोरोना वायरस के नए-नए मामले सामने आने के कारण लोगों को अपने जीवन और देशों को अपनी अर्थव्यवस्था की रफ्तार काफी कम करनी पड़ी है, वहीं दूसरी ओर इस अवसर का फायदा उठाते हुए प्रकृति अपनी मुरम्मत करती नजर आ रही है।

कम हुए कम्पन
बैल्जियम की रॉयल ऑब्जर्वेट्री के विशेषज्ञों के अनुसार विश्व के कई हिस्सों में जारी लॉकडाऊन के कारण धरती की ऊपरी सतह पर कम्पन कम हुए हैं। भूकम्प वैज्ञानिक यानी सीस्मोलॉजिस्ट को धरती के सीस्मिक नॉयज और कम्पन में कमी देखने को मिली है।

‘सीस्मिक नॉयज’ वह शोर है जो धरती की बाहरी सतह यानी क्रस्ट पर होने वाले कम्पन के कारण धरती के भीतर एक शोर के रूप में सुनाई देता है।

इस साऊंड को सटीक तौर पर मापने के लिए रिसर्चर और भूविज्ञानी एक डिटैक्टर की रीडिंग का सहारा लेते हैं जो धरती की सतह से 100 मीटर की गहराई में गाड़ा जाता है लेकिन फिलहाल धरती की सतह पर कम्पन पैदा करने वाली इंसानी गतिविधियां काफी कम होने के कारण इस साऊंड की गणना सतह पर ही हो पा रही है।

असल में भूकम्प जैसी किसी प्राकृतिक घटना में धरती के क्रस्ट में जैसी हरकतें होती हैं वैसी ही हलचलें थोड़े कम स्तर पर धरती की सतह पर वाहनों की आवाजाही, मशीनों के चलने, रेल यातायात, निर्माण कार्य, जमीन में ड्रिलिंग जैसी इंसान की तमाम गतिविधियों के कारण भी होती हैं। लॉकडाऊन के कारण ऐसी इंसानी हरकतें कम होने के कारण ही इसका असर धरती के आंतरिक कम्पनों पर पड़ता दिख रहा है।

इन कम्पनों को दर्ज कर वैज्ञानिक न केवल धरती के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाते हैं, बल्कि आने वाले भूकम्पों और ज्वालामुखी विस्फोट का आकलन करने की कोशिश भी करते हैं। अब तक कम्पनों में इस तरह की कमी साल के उस समय में भी दिखती आई थी जिस दौरान लोगों की लंबी छुट्टियां चल रही होती हैं। 1 से 20 हट्रज वाली इन्फ्रासाऊंड फ्रीक्वैंसी अधिकतर इंसानी गतिविधियों से पैदा होती हैं।

बैल्जियम के शहर ब्रसेल्स का ही उदाहरण देखें तो मध्य मार्च से लागू लॉकडाऊन के कारण अब तक इसमें 30 से 50 प्रतिशत की बड़ी कमी दर्ज हुई है। भूविज्ञानियों को ऐसे रुझान पैरिस, लंदन, लॉस एंजल्स जैसे तमाम बड़े शहरों में भी दिखे हैं।

नीला आसमान और दूर से दिखाई देते पहाड़
24 मार्च से भारत में लागू देशव्यापी लॉकडाऊन के कारण देश के कई हिस्सों में भी इंसानी गतिविधियों की रफ्तार थमी है और इस दौरान प्रकृति अपनी मुरम्मत खुद करती नजर आ रही है।
 
पंजाब के जालंधर में रहने वालों ने गत दिनों ऐसी तस्वीरें सांझा की थीं जिनमें वहां से लोगों को हिमाचल प्रदेश में स्थित धौलाधार पर्वत शृंखला की चोटियां दिख रही थीं।

प्रदूषण कम होने की वजह से लगभग पूरा देश नीला आसमान देख पा रहा है। राजधानी दिल्ली-एन.सी.आर. इलाके के निवासी ऐसी तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं।

दिल्ली से होकर बहने वाली यमुना नदी को इतना साफ देख कर लोग काफी हैरानी भी जता रहे हैं। इस नदी को साफ करने की कोशिश में सालों से अलग-अलग सरकारों ने कितनी ही योजनाएं और समितियां बनाईं और कितना ही धन खर्च किया लेकिन ऐसे नतीजे कभी नहीं दिखे जो लॉकडाऊन के दौरान अपने आप ही सामने आए हैं।

धरती को मिले सालाना ब्रेक
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से तमाम लोगों ने अपनी सरकारों को कोरोना संकट बीत जाने के बाद भी प्रकृति को हर साल कुछ दिनों का ऐसा ही ब्रेक देने के आइडिया पर विचार करने की सलाह दी है।

 

 

Niyati Bhandari

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