इस भावना से किया काम कभी नहीं होता निष्फल

Sunday, Sep 01, 2019 - 04:59 PM (IST)

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एक अच्छी कहावत है-‘मन चंगा तो कठौती में गंगा।’ हमारा मन अगर स्वच्छ और निर्मल है तो तन, मन से न कोई पाप होगा और न ही पाप धोने के लिए गंगा स्नान के लिए जाना होगा। सच्चाई और सफाई की गंगा हमारे मन-मस्तिष्क में नित्य प्रवाहित होगी इसलिए कहा गया है कि नीयत साफ तो मुराद हासिल। खोटी नीयत से किए गए अच्छे कर्म भी दिखावा मात्र होते हैं जो सफल नहीं होते। 

हो सकता है पहली नजर में ये कर्म थोड़ा-बहुत सफल होते प्रतीत हों लेकिन आखिरकार ये जीवन में सुख से ज्यादा दुख का कारण बनते हैं और आत्मिक प्रगति के मार्ग पर हमें पीछे की ओर धकेलते हैं। इसके उलट अच्छी नीयत से किए गए कर्म कभी विफल नहीं होते। जिन सांसारिक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए ये कर्म किए गए हों अगर वे हासिल न भी हो सकें तो नीयत की अच्छाई व्यर्थ नहीं जाती। किसी न किसी रूप में यह फायदा देती ही है। किसी के प्रति अच्छा भाव हमारे अंतर्मन को शुद्ध तो करता ही है, यह हमें आत्मिक उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ाने वाले बल के रूप में भी काम करता है। 

स्वामी विवेकानंद के अनुसार संकीर्ण स्वार्थ से प्राप्त लाभ अस्थायी और अल्पकालीन है जबकि नि:स्वार्थ कर्म की प्राप्ति अंतत: अति लाभदायक और सुखद है। नीयत और कर्मफल के बारे में 
पुराणों में भी उल्लेख है। 

असल में स्वचिंतन, शुभ चिंतन और प्रभु चिंतन ही सर्व प्रकार की चिंता, आशंका, भय और बंधन से मुक्त कर इंसान को स्वस्थ, शक्तिशाली, सुखी और वैभवशाली बनाते हैं। निष्पाप मन और निष्कपट हृदय से सांसारिक दायित्व निर्वाह करने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से ईश्वर के संरक्षण के साथ-साथ जीवन में सच्ची सुख-शांति, समृद्धि को प्राप्त करता है।

Lata

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