क्यों हम भगवान के समीप नहीं रह सकते?

Tuesday, Feb 07, 2017 - 03:31 PM (IST)

'उपवास' शब्द का अर्थ होता है उप + वास अर्थात् 'समीप रहना'। कहने का मतलब है कि एकादशी के दिन सभी को समस्त प्रकार के पाप-कार्यों से अपना ध्यान हटाना होता है व सभी प्रकार के संसारी कार्यों अथवा विषयों का त्याग करना होता है। इस दिन समस्त प्रकार के भोगों को वर्जित करके, मन में अच्छे विचार रखकर भगवान के निकट वास करना चाहिए। 


''उपावृत्तस्य पापेभ्यो यस्तु वासो गुणैः सह। उपवासः स विज्ञेयः सर्वभोगविवर्जितः ॥ 

(हः भः विः 13/35, कात्यायन स्मृति, विष्णुधर्म, ब्रह्मवैवर्त्तादि शास्त्र-वाक्य) 


भगवान श्री हरि प्रकृति की पहुंच से बाहर हैं, वे निर्गुण हैं। हमारे इस शरीर, मन व  दुनियावी बुद्धि की सहायता से उनके नजदीक वास करना सम्भव नहीं है। दुनियां के सभी बुद्ध जीव स्थूल व सूक्ष्म शरीरों की उपाधियों में फंसे हुए हैं। दुनियावी उपाधियों में फंसे जीव भला कैसे भगवान के समीप रह सकते हैं? 


भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के पार्षद, श्रील रूप गोस्वामीपाद जी ने भगवान की आराधना के लिए 64 प्रकार के मुख्य भक्ति-अंगों का वर्णन किया है। उनमें से एक भक्ति अंग है 'एकादशी व्रत' का पालन। 

श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com

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