Kundli Tv- जानें, क्यों नहीं करना चाहिए गणपति की पीठ का दर्शन

Thursday, Nov 01, 2018 - 12:06 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
देवों में प्रथमपूज्य गणेश जी की पूजा करते समय ध्यान रखें कि कभी उनकी पीठ का दर्शन न करें। गणपति ऐसे देव हैं जिनके शरीर के सभी अंगों पर सारे ब्रह्मांड का वास होता है। चारों वेद और उनकी ऋचाएं होती हैं इसलिए गणपति की पूजा सदा आगे से करनी चाहिए। उनकी परिक्रमा लें लेकिन पीठ के दर्शन नहीं करें। गणपति की सूंड पर धर्म का वास है। नाभि में जगत वास करता है। उनके नयनों में लक्ष्य, कानों में ऋचाएं और मस्तक पर ब्रह्मलोक का वास है हाथों में अन्न और धन, पेट में समृद्धि और पीठ पर दरिद्रता का वास है। इसलिए, पीठ के दर्शन कभी नहीं करने चाहिए।

गणेश जी के मंत्र-
नमस्ते योगरूपाय संप्रज्ञातशरीरिणे।
असंप्रज्ञातमूध्र्रे ते तयोर्योगमयाय च।
अर्थात, हे गणेश्वर सम्प्रज्ञात समाधि आपका शरीर तथा असम्प्रज्ञात समाधि आपका मस्तक है। आप दोनों के योगमय होने के कारण योगस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।

वामाङ्गे भ्रान्तिरूपा ते सिद्धि: सर्वप्रदा प्रभो।
भ्रांतिधारकरूपा वै बुद्धिस्ते दक्षिणाङ्गके।।
अर्थात, प्रभो आपके वामांग में भ्रांतिरूपा सिद्धि विराजमान हैं, जो सब कुछ देने वाली हैं तथा आपके दाहिने अंग में भ्रान्तिधारक रूपवाली बुद्धि देवी स्थित है।

मायासिद्धिस्तथा देवो मायिको बुद्धिसंज्ञित:।
तयोर्योगे गणेशान त्वं स्थितो ऽ सि नमो स्तु ते।।
अर्थात्, भ्रांति अथवा माया सिद्धि है और उसे धारण करने वाले गणेश देव मायिक हैं। बुद्धि संज्ञा भी उन्हीं की है। हे गणेश्वर! आप सिद्धि और बुद्धि दोनों के योग में स्थित हैं। आपको बारंबार नमस्कार है।

जगद्रूयों गकारश्च णकारो ब्रह्मवाचक:।
तयोर्योगे गणेशाय नाम तुभ्यं नमो नम:।।
अर्थात, गकार जगत्स्वरूप है और णकार ब्रह्म का वाचक है। उन दोनों के योग में विद्यमान आप गणेश-देवता को बारम्बार नमस्कार है।
दिन में भी लगाते हैं खर्राटे तो करें ये टोटका (VIDEO)

Niyati Bhandari

Advertising