आख़िर क्यों अपने पिता को भी श्रद्धांजलि देने नहीं आए लोहिया

Sunday, Aug 25, 2019 - 03:39 PM (IST)

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9 अगस्त 1942 को जब गांधी जी और कांग्रेस के अन्य नेता गिरफ्तार कर लिए गए तब महान विचारक एवं स्वतंत्रता सेनानी राम मनोहर लोहिया ने भूमिगत रहकर 'भारत छोड़ो आंदोलन' को पूरे देश में फैलाया। 20 मई 1944 को उन्हें मुम्बई में गिरफ्तार कर लाहौर किले की एक अंधेरी कोठरी में रखा गया था जहां लगभग 14 वर्ष पहले शहीद भगत सिंह को फांसी दी गई थी।

लाहौर के वकील जीवन लाल कपूर द्वारा 'बंदी प्रत्यक्षीकरण' की दख्र्वास्त लगाने पर लोहिया जी और जयप्रकाश नारायण को स्टेट प्रिजनर घोषित किया गया। 1945 में लोहिया जी को लाहौर से आगरा जेल भेज दिया गया। द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने पर गांधी जी और कांग्रेस के कई नेताओं को छोड़ दिया गया लेकिन लोहिया और जय प्रकाश नारायण अब भी जेल में ही थे।

इस बीच लोहिया के पिता हीरालाल की मृत्यु हो गई। मित्रों को जैसे ही इस बात का पता चला, उन्होंने प्रयास किया कि सरकार लोहिया जी को पैरोल पर छोड़ दे। मित्रों की कोशिश सफल हुई और सरकार लोहिया जी को पैरोल पर छोडऩे के लिए राजी हो गई। लोहिया जी जेल में पिता की मृत्यु के दुख से उबरने का प्रयत्न कर रहे थे। मिलने आए एक मित्र से उन्हें पैरोल पर रिहाई की खबर मिली। लोहिया जी बोले, ''रिहाई किसकी और क्यों?"

मित्र बोला, ''स्वर्गीय पिता को श्रद्धांजलि देने के लिए तुम्हें पैरोल पर छोडऩे को सरकार राजी हो गई है।'

लोहिया जी बोले, ''कर्तव्य से पलायन को श्रद्धांजलि का नाम मत दो। मुझे किसी का उपकार नहीं चाहिए। मेरे पिता सारी उम्र आदर्शों के लिए लड़ते रहे। इन आदर्शों को ठुकरा कर कर्तव्य से पलायन कर मैं उन्हें श्रद्धांजलि कैसे दे सकूंगा? मैं अपने आदर्शों का पालन करके जेल में रहते हुए यहीं से पिताजी को श्रद्धांजलि अर्पित करूंगा। पिता की मौत की आड़ में सरकार से सहानुभूति लेना मुझे मंजूर नहीं है।“

 

Jyoti

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