क्यों महाकाली ने लिया था उग्रतारा का अवतार ?

Wednesday, Feb 06, 2019 - 05:23 PM (IST)

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कल से गुप्त नवरात्रि शुरु हो चुके हैं। इन दिनों मां भगवती के 9 रुपों की पूजा पूरे विधि विधान के साथ की जाती है। ज्यादातर लोगों को शारदीय और चैत्र नवरात्रों के बारे में ही पता होता है। लेकिन आपको बता दें कि साल में 2 बार गुप्त नवरात्रि भी मनाए जाते हैं जोकि पहले माघ शुक्ल पक्ष में और दूसरा आषाढ़ शुक्ल पक्ष में। आज हम बात करेंगे देवी तारा के स्वरूप के बारे में। महाकाली ने हयग्रीव नमक दैत्य के वध के लिए नीला वर्ण धारण किया और उनका वे उग्र स्वरूप उग्र तारा के नाम से विख्यात हुआ। मां का ये रुप सर्वदा मोक्ष प्रदान करने वाला और अपने भक्तों को समस्त प्रकार के घोर संकटों से मुक्ति प्रदान करने वाला है।

भगवान शिव द्वारा, समुद्र मंथन के समय विष का पान करने पर, उनके शारीरिक पीड़ा के निवारण के लिए इन्हें देवी तारा ने माता के स्वरूप में शिव जी को अपना अमृतमय दुग्ध स्तन पान कराया था। जिसके कारण भगवान शिव को समस्त प्रकार के शारीरिक पीड़ा से मुक्ति मिली। जिस प्रकार महाशक्ति ने भगवान शिव के शारीरिक कष्ट का निवारण किया, वैसे ही देवी अपने उपासकों के घोर कष्टों और संकटों का निवारण करती हैं।

वैसे तो तारा देवी की आराधना-साधना मोक्ष प्राप्त करने के लिए या तांत्रिक पद्धति से की जाती हैं लेकिन आपको बता दें भक्ति भाव युक्त साधना ही सर्वोत्तम मानी जाती है। कहा जाता है कि तारा देवी का निवास स्थान श्मशान है। देवी नर खप्परों और हड्डियों के मालाओं से अलंकृत हैं और सर्पों को आभूषण के रूप में धारण करती हैं। तीन नेत्रों वाली देवी उग्र तारा स्वरूप से अत्यंत ही भयानक प्रतीत होती हैं।

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