श्री कृष्ण के इन जवाबों को सुनकार आप भी अपने हालातों के बारे में सोचने पर हो जांएगे मज़बूर
punjabkesari.in Thursday, Jun 18, 2020 - 05:48 PM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
आप में से लगभग लोगों ने अपनों से बड़ों को ये कहते सुना होगा कि संसार में होने वाली हर घटना के पीछे ईश्वर ही है। छोटी से छोटी, बड़ी से बड़ी बात के लिए भगवान की जिम्मेवार है। इन सब बातों के बाद आपके मन में फिर एक सवाल ज़रूर आता होगा, कि अगर ऐसा है संसार में पाप और दुख क्यों बढ़ रहे है? क्यों लोग एक-दूसरे के साथ अनीति करते हैं?
इसकी सबसे बड़ी उदाहरण है महाभारत, अगर सब कुछ भगवान के बस में था तो क्यों पांडवों को अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए इतना संघर्ष करना पड़ा? क्यों द्रोपदी को भरी सभी में अपमानित किया गया?
अगर आप सब के दिमाग में ये प्रश्न है तो चलिए आज श्री कृष्ण से जानते हैं कि आख़िर क्यों पांडवों ने सार्थी होने के बावजू़द उन्होंने पांडवों को गलती करने से नहीं रोका। दरअसल शास्त्रों में किए वर्णन के अनुसार उद्धव जी श्री कृष्ण पूछते हैं जिसके उत्तर में कान्हा उन्हें बताते हैं कि क्यों उन्होंने पांडवों की सहायता नहीं की तथा अन्य बातें भी-
उद्धव- आपने पांडवों द्रुत क्रीणा (जुआ) में हारने दिया?
श्री कृष्ण- उद्धव मैं असल में पांडवों के साथ था। मैंने सदैव उनका हित चाहा है। मैं अपने हर भक्त के साथ रहता हूं। न तुम मेरी उपस्थिति पर संदेह करो और न ही मेरी नीयत पर। उद्धव! युधिष्ठिर और दुर्योधन में सिर्फ एक ही अंतर था, जिस कारण गलत राह पर होते हुए भी दुर्योधन जीत गया और युधिष्ठिर हार गए। वह अंतर था विवेक का। और आखिर वह दुर्योधन को द्रुत क्रीणा नहीं आती थी लेकिन उसने अपने विवेक का उपयोग किया और कहा कि उसकी तरफ से शकुनी खेलेंगे। यह खेल आता पांडवों को भी नहीं था लेकिन वे स्वयं खेलने लगे। अगर युधिष्ठिर अपने विवेक का उपयोग करते हुए उनकी तरफ से यह खेल मैं खेलूंगा तो पासे शकुनी के अनुसार आते या मेरे अनुसार?
उद्धव- आप अपनी शक्ति से पासे क्यों नहीं पलटे?
श्री कृष्ण- कान्हा इसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि उद्धव मैं बिल्कुल ऐसा कर सकता था परंतु मैं करता कैसे? असल में पांडवों ने मुझे अपनी प्रार्थना में बांध लिया था। वे द्रुत क्रीणा मुझसे छिपकर खेलना चाहते थे। उन्हें लगा कि मुझे पता नहीं चलेगा कि वे लोग अंदर क्या कर रहे हैं। उन्होंने मुझे अपनी प्रार्थना में बांधकर कहा, जब तक आपको पुकारा न जाए आप अंदर नहीं आएंगे। अब तुम्हीं बताओ मैं अंदर कैसे आता?
उद्धव- क्यों नहीं रोका द्रौपदी का अपमान?
श्री कृष्ण- उद्धव! द्रौपदी ने भी मुझे कहां पुकारा था, जब उसे अपमानित करते हुए उसके कक्ष से सभा तक लाया गया तो वह अपनी सामर्थ्य से जूझती रही परंतु उसने भी मुझे नहीं बुलाया और वो मुझे भूल गई। हां! जब उसे लगा कि अब जो कुछ हो रहा है वो उसके वश से बाहर है तब उसने सभा के भीतर मुझे पुकारा। तब मैं तुरंत वहां उपस्थित हो गया।
उद्धव- क्यों पांडवों को गलती करने से नहीं रोका?
श्री कृष्ण- उद्धव मैं भी कुछ नियमों में बंधा हूं। जो अपने विवेक का उपयोग करता है, वही जीतता है। पांडव अपने भाग्य को कोसते रहे उन्होंने एक बार भी मुझे याद नहीं किया कि कृष्ण आओ सहायता करो। अगर वो ऐसा करते तब मैं उनकी सहायता नहीं करता तब मैं गलत होता।
उद्धव- क्या अपने भक्त को गलत कार्य करने से रोकना आपका दायित्व नहीं?
श्री कृष्ण- उद्धव, जिस समय लोग कोई भी कार्य करते हैं उन्हें इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि मैं उनके साथ हूं और सब देख रहा हूं। तो उद्धव तुम ही बताओ, इसके बाद कोई कोई गलत कार्य कर पाएगा क्या?
मनुष्य गलत कार्य तभी करता है, जब वह दुनियादारी में खोकर मुझे भुला देता है और मेरी उपस्थिति को अनदेखा करता है।
श्री कृष्ण- मिल गया अपने सवालों जवाब?
कान्हा की बातें सुनकर उद्धव बोलते हैं आपने आज मुझे बहुत गहरी बात कही है। यह सही है कि जब हर पल व्यक्ति के मन में यह भाव रहेगा कि आप उसके साथ हैं और उसके सब कार्यों को देख रहे हैं तो वह कोई गलत काम कर ही नहीं पाएगा। मैं आपके सभी प्रश्नों के उत्तर से सहमत हूं।